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रायबरेली में राहुल गांधी की अग्नि परीक्षा

लेखक : डॉ मनीष शुक्ल

अस्सी के दशक में फिल्म में हीरो की इंट्री से पहले काफी संस्पेंस रखा जाता था| पर्दे पर पहले हीरो का जूता दिखाया जाता था| फिर उसकी चाल- ढाल और अंत में चेहरा सामने आता था| और सिनेमा हॉल दर्शकों की सीटियों से गूंज उठता था| 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने भी अमेठी और रायबरेली में अपने उम्मीदवारों की घोषणा से पहले यही सस्पेंस बनाया| नामांकन के आखिरी समय में रायबरेली में राहुल गांधी की इंट्री अस्सी के दशक के सुपर स्टार की हुई है| कांग्रेस को उम्मीद है कि गांधी परिवार के गढ़ में राहुल गांधी की फिल्म सुपरहिट होगी| उत्तर प्रदेश में पार्टी की वापसी का रास्ता खोलेगी| लेकिन इसके लिए राहुल गांधी को रायबरेली में अग्नि परीक्षा देनी होगी, जिसको देने से वो अमेठी में बच गए!

कांग्रेस के थिंक टैंक ने काफी गणित लगाने के बाद देश की ‘मोस्ट अवेटेड’ संसदीय क्षेत्र से अपने प्रत्याशियों का ऐलान किया है| राहुल गांधी भले ही अमेठी से चुनाव नहीं लड़ रहे हैं लेकिन रायबरेली के जरिये कांग्रेस ने यूपी में अपनी खोई जमीन हासिल का बड़ा दांव चला है| अमेठी से चुनाव लड़ने वाले केएल शर्मा शीला कौल के पौत्र हैं| उनका राजीव गांधी के समय से गांधी परिवार से गहरा नाता है| उन्होने 1999 से ही अमेठी संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस का चुनावी प्रबंधन संभाला है| शर्मा के चुनाव प्रबंधन की कमान खुद प्रियंका गांधी संभाल रही हैं| निश्चित रूप चुनाव केआर दौरान परोक्ष रूप से वो स्मृति ईरानी को चुनौती दे रही हैं| ऐसे में शर्मा को वीवीआईपी सीट से लड़ाकर कांग्रेस ने संदेश दिया है कि अमेठी में पार्टी भाजपा को वाकओवर देने नहीं जा रही है|

कांग्रेस के रणनीतिकार जानते हैं कि ये अस्सी का दशक नहीं है| अब दर्शक अपने हीरो का चेहरा देखने के लिए इतना लंबा इंतजार नहीं करते हैं| अमेठी और रायबरेली में भी चुनावी बयार बदल चुकी है| कांग्रेस की सर्वोच्च नेता सोनिया गांधी अब उतनी सक्रिय नहीं हैं| उन्होने 2004 के लोकसभा चुनाव में अपनी सक्रियता से भाजपा नित एनडीए सरकार के साइनिग इंडिया अभियान की हवा निकालकर यूपीए सरकार बनवा दी थी| इसके बाद तमाम उठापटक के बावजूद दस वर्षों तक सरकार चलाई बल्कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के जरिये सरकार पर नियंत्रण रखा| सोनिया गांधी 2014 में मोदी सरकार के उदय के बाद धीरे- धीरे सक्रिय राजनीति से दूर होती चली गईं| वहीं उनके बेटे राहुल गांधी की “कभी हाँ, कभी न” वाली राजनीति ने कांग्रेस को अधर में लटका दिया| मामला चाहें अध्यक्ष पद संभालने का रहा हो या फिर संसद में पार्टी के नेतृत्व का! राहुल गांधी हमेशा ही आगे बढ़कर कमान संभालने में सकुचाते रहे| आखिर में वो अमेठी से चुनाव हारने के बाद पीछे हट गए|

2014 में अमेठी की टीवी की बहू स्मृति ईरानी के चुनाव लड़ने के बावजूद जनता ने राहुल गांधी को जिताकर उन पर पूरा भरोसा जताया| लेकिन 2019 में यहाँ से चुनाव हारते ही राहुल ने वायनाड का रास्ता पकड़ लिया| उन्होने पिछले पाँच वर्षों में अमेठी की जनता से दूरी बना ली| जबकि 2014 में यहाँ से चुनाव हारने वाली भाजपा नेत्री ने हर घर जाकर जनता का दरवाजा खटखटाया| जनता से भावनात्मक रिश्ता कायम करने में सफल रहीं| इसका परिणाम 2019 के चुनाव में साफ नजर आया और अमेठी के मतदाता ने अप्रत्याशित परिणाम देकर कांग्रेस के युवराज को हरा दिया| स्मृति ईरानी ने हाल के वर्षों में अमेठी में न सिर्फ अपना घर बनाया बल्कि यहाँ की मतदाता भी बन गईं| ऐसे में 2024 के चुनाव में लंबे समय तक जिस तरह से कांग्रेस ने अमेठी में प्रत्याशी के नाम को लेकर सस्पेंस बनाकर रखा उससे लगा कि गांधी परिवार यहाँ पर वापसी के लिए रणनीति बना रहा है| जल्द ही प्रियंका गांधी वाड्रा या राहुल गांधी में से एक यहाँ से चुनाव लड़कर भाजपा को सीधी टककर जरूर देगा लेकिन कांग्रेस के रननीतिकार एकबार फिर अमेठी में रिस्क लेने को तैयार नहीं हुए| उन्होने अमेठी से गांधी परिवार के सदस्य को न लड़ाकर ‘सेफ साइड’के रूप में रायबरेली चुन लिया| ऐसे में उस कांग्रेसी कार्यकर्ता को निराशा हाथ लगी जो राहुल गांधी को एकबार फिर अमेठी से मुक़ाबले में देखना चाहते थे|

निश्चित रूप से रायबरेली और अमेठी की जनता का आज भी कांग्रेस और गांधी परिवार से भावनात्मक जुड़ाव है| ऐसे में दोनों ही सीटों पर भाजपा के लिए मुक़ाबला आसान नहीं है| फिरभी पिछले दस वर्षों में भावनात्मक मुद्दे अब विकास की चाह में बदल चुके हैं| गांधी परिवार से भावनातक जुड़ाव का आज मोदी की गारंटी से मुक़ाबला माना जा रहा है| अमेठी में स्मृति ईरानी पहले ही जनता से भावनात्मक रूप से जुड़ चुकी हैं| रायबरेली संसदीय क्षेत्र में भी ‘इसका साइड’ इफैक्ट नजर आ रहा है| यहाँ भी जनता विकास के लिए व्याकुल है| जनता को लगता है कि भावनात्मक बातें तो ठीक हैं लेकिन विकास की रफ्तार भी अब रुकनी नहीं चाहिए| बल्कि लोगों को तेज विकास की आकांक्षा है| ऐसे में रायबरेली में सोनिया गांधी जैसा विश्वास राहुल गांधी हासिल कर पाते हैं| ये देखना रोचक होगा| महज गांधी नाम के कारण राहुल गांधी रायबरेली का किला फतह कर पाएंगे, ये भी देखना रोचक होगा|

कांग्रेस के रणनीतिकारों ने राहुल गांधी को अमेठी की जगह रायबरेली से लडाकर उत्तर प्रदेश में पार्टी की वापसी का सुरक्षित रास्ता बनाया हो लेकिन बदले माहौल में रायबरेली में राहुल गांधी की अग्नि परीक्षा तय है| ये भी देखना रोचक होगा कि इस रास्ते से राहुल गांधी कांग्रेस की सत्ता में वापसी करा पाते हैं या फिर रायबरेली दूसरा अमेठी साबित होगा| रायबरेली उत्तर प्रदेश के अस्सी संसदीय क्षेत्रों में महज एक सीट भर है| पर सोनिया गांधी के जाने के बाद हो रहे पहले चुनाव में भाजपा हो या कांग्रेस दोनों ही दलों के लिए प्रतिष्ठा का विषय है| रायबरेली के चुनाव परिणाम भविष्य की राष्ट्रीय राजनीति में दोनों दलों के लिए नया दरवाजा खोलेंगे|      

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