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स्वर्णिम दौर का नायाब सिनेकार… गुरुदत्त

स्वर्णिम दौर का नायाब सिनेकार… गुरुदत्त

लेखक : दिलीप कुमार गुरुदत्त साहब का नाम जेहन में आते ही  आता है, एक अधूरापन, कुछ टूटा बिखरा हुआ... सिनेमा का वो स्वर्णिम दौर जिसमें गुरुदत्त साहब का अविस्मरणीय योगदान हमेशा याद रहेगा.. कहते हैं प्रतिभा उम्र की पाबंद नहीं होती...गुरुदत्त साहब के लिए यह बात उस दौर में सटीक बैठती थी. फिर चाहे महबूब खान, विमल रॉय, बलराज साहनी, सोहराब मोदी, सत्यजीत रे, देव साहब हो, या दिलीप साहब, या राज कपूर साहब ही क्यों न हों... गुरुदत्त साहब लगभग सभी से उम्र में छोटे ही थे, लेकिन इन सभी बड़े - बड़े धूमकेतुओ के बीच गुरुदत्त साहब…
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हिंदी सिनेमा का “जेन्टलमैन” विलेन अमरीश पुरी

हिंदी सिनेमा का “जेन्टलमैन” विलेन अमरीश पुरी

लेखक : दिलीप कुमार अमरीश पुरी भारतीय सिनेमा के सबसे प्रभावशाली खलनायकों में से एक थे. रुआबदार आवाज़, ऐसी की छोटा मोटा कोई रोल उन्हें जचता ही नहीं था. वो फ़िल्मों में ज्यादातर जमीदार, रॉयल भूमिकाएं ही प्ले करते थे.. हर कोई उन्हें ऐसे ही किरदारों में देखना चाहता था. उनकी विलेन की छवि ऐसी कि हम बचपन में खेलते थे तो डाकू - पुलिस बनकर खेलते थे. कई बार स्टंट भी करते थे...गर्मियों की छुट्टियों में धूप में खेलते रहते थे... फिर घर में फटकार लगती थी. पैरेंट्स से छिपकर रात में फ़िल्में देखते थे. अमरीश पुरी हमेशा फ़िल्मों…
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आदिपुरूष जैसा सिनेमा आने वाली पीढ़ी के लिए घातक

आदिपुरूष जैसा सिनेमा आने वाली पीढ़ी के लिए घातक

चंद्रभूषण सिंह लेखक फिल्म अभिनेता, निर्देशक व चर्चित नाटककार हैं जब तक आप अपनी संस्कृति का संरक्षण नहीं करेंगे । तब तक आप के साहित्य को, संस्कृति को तोड़ा जाएगा, मोड़ा जाएगा और उस को वहाँ तक ख़त्म करने और परिवर्तन करने की कोशिश की जाएगी , जहां तक आप की सहिष्णुता ख़त्म न हो जाए । फिलहाल कुछ ऐसी ही साजिश हो रही है फिर चाहे इतिहास में औरंगजेब और टीपू सुलतान का महिमामंडान हो या फिर आदि पुरूष जैसी फिल्म के जरिये हिन्दू आस्था पर चोट की जाए| हमें समझना होगा कि ये महज एक फिल्म या इतिहास…
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फारुख शेख : भरोसेमंद सदाबहार कलाकार

फारुख शेख : भरोसेमंद सदाबहार कलाकार

लेखक : दिलीप कुमार हिन्दी सिनेमा की भी अज़ीब सी दुनिया है, यहां कला फ़िल्मों को बोरिंग कहकर खारिज कर दिया जाता है, वहीँ समानान्तर सिनेमा के कलाकारों को एक रस का कलाकार कहकर सीमाओं में बाँध दिया जाता है, लेकिन कई बार सिद्ध हो चुका है, कि समानान्तर सिनेमा ही प्रमुख सिनेमा है. समानान्तर सिनेमा में एक ऐसा अदाकार हुआ है, जो न अमिताभ बच्चन की तरह स्टार था, न ही नसीरूद्दीन शाह की तरह बुलन्द आवाज़ का मालिक और न ही कोई देखने में बहुत प्रभावी फिर भी अपनी शालीन, शख्सियत के साथ, अपनी हवा में बहते हुए…
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शोमैन राज कपूर की जन्म जयंती : जीना यहाँ, मरना यहाँ…

शोमैन राज कपूर की जन्म जयंती : जीना यहाँ, मरना यहाँ…

हिन्दी सिनेमा के महान शिल्पकार   लेखक- दिलीप कुमार ग्रेट शो मैन स्वः राज कपूर साहब आज निन्यानवे वर्ष की उम्र हो जाने के बाद इस भी सिल्वर स्क्रीन सहित भारत ही नहीं वैश्विक सिने प्रेमियों के दिलों में धड़कते हैं. राज कपूर साहब की सिनेमाई यात्रा अभूतपूर्व रही है.  मेरा जूता है जापानी, यह पतलून इंग्लिश्तानी, सर पे लाल टोपी रुसी…फिर भी दिल है हिंदुस्तानी”सुनते ही राज कपूर साहब की तस्वीरें जेहन में झूलने लगती हैं.हिन्दी सिनेमा के ग्रेट शोमैन केवल एक अभिनेता नहीं थे, आज वो किसी के लिए महान फ़िल्मकार हैं, तो किसी के लिए गोल्डन एरा…
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हिन्दी सिनेमा के नायाब फनकार… कन्हैयालाल

हिन्दी सिनेमा के नायाब फनकार… कन्हैयालाल

लेखक- दिलीप कुमार कन्हैया लाल जी ने खुद को पूर्णतः बनारसी रंग में ढाल रखा था, उनकी शख्सियत को आवरण पूरी तरह से गंवई बुजुर्ग का था. आम तौर पर चमक - दमक वाला हिन्दी सिनेमा ऐसी सादगीपूर्ण शख्सियत को कभी स्वीकार नहीं करता. कैरियर के शुरुआती दौर में कन्हैयालाल संघर्ष करते रहे. बाद में कन्हैया लाल ने अपने अभिनय की एक लकीर खींच दी, बाद में रूपहले पर्दे पर बहुत से लोग उनके तरह भी अभिनय करना चाहते थे,  सिल्वर स्क्रीन पर यह मुकाम बहुत कम ही लोगों को नसीब हुआ है, लिहाजा इसके लिए संघर्ष, मेहनत की पराकाष्ठा…
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‘सीआईडी’ ने तैयार की थी सस्पेंस थ्रिलर सिनेमा की जमीन  

‘सीआईडी’ ने तैयार की थी सस्पेंस थ्रिलर सिनेमा की जमीन  

लेखक- दिलीप कुमार गोल्डन एरा का एक - एक गीत एक - एक फ़िल्म कई कहानियों को समेटे हुए है. सिनेमा के इस दौर को स्वर्णिम काल कहां जाता है. इस सस्पेंस थ्रिलर फ़िल्म से हिन्दी सिनेमा में तीन - तीन धूमकेतुओ का उदय हुआ था.  एक तो मिस्ट्री मेकर राज खोसला, वहीदा रहमान, एवं महमूद इसके साथ ही गुरुदत्त साहब एवं देव साहब की मित्रता और प्रगाढ़ हो चली थी.  गुरुदत्त साहब ने अपने असिस्टेंट राज खोसला को बतौर डायरेक्टर ब्रेक दिया था. 'सीआईडी' के बाद खोसला ने तीन और फिल्मों में देव साहब के साथ काम किया लेकिन…
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संगीतकारों के लिए संगीत का पूरा पाठ्यक्रम.. सचिन दा

संगीतकारों के लिए संगीत का पूरा पाठ्यक्रम.. सचिन दा

दिलीप कुमार लेखक हरदिल अजीज संगीतकार सचिनदेव बर्मन का मधुर संगीत आज भी श्रोताओं को भाव-विभोर करता है. उनके जाने के बाद भी बर्मन दादा के प्रशंसकों के दिल से एक ही आवाज निकलती है- 'ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आना.... यह बर्मन दादा के संगीत का अपना प्रभाव है. दरअसल उससे बाहर कोई संगीत प्रेमी निकलना चाहता भी नहीं है. बर्मन दादा के संगीत को सुनते हुए, ख़ासकर कालजयी फिल्म 'गाइड' का उन्हीं के द्वारा गाया गया गीत' यहां कौन है तेरा मुसाफ़िर जाएगा कहाँ' यह गीत हर किसी को भी मंत्रमुग्ध तो करता ही है.…
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विधाता का तिलिस्म : संजीव और दिलीप कुमार ने अमर कर दिया

विधाता का तिलिस्म : संजीव और दिलीप कुमार ने अमर कर दिया

लेखक : दिलीप कुमार संजीव कुमार बहुमुखी प्रतिभा के धनी अदाकार थे. जवानी में भी बुजुर्ग की भूमिका बड़ी सहजता से अदा कर दिया करते थे.  पहले थिएटर में अभिनय की बारीकियां सीखीं. बाद में हिन्दी सिनेमा में पदार्पण किया.आते हुए एक दो फ़िल्मों में उतने प्रभावी नहीं रहे. 1968 में आई फिल्म 'शिकार' से अपना सिक्का जमाया. संजीव कुमार इसके बाद रुके ही नहीं फ़िल्मों में एवं ज़िन्दगी में अनवरत दौड़ते रहे. संजीव कुमार जीते जी ही संतृप्त अवस्था को प्राप्त कर चुके थे. यह मुकाम बहुत कम ही कलाकारों को मिला होगा. बाद में हम हिंदुस्तानी, आओ प्यार…
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बासु दा की आविष्कार ने सुपर स्टार राजेश खन्ना को दिया कलाकार का दर्जा!

बासु दा की आविष्कार ने सुपर स्टार राजेश खन्ना को दिया कलाकार का दर्जा!

दिलीप कुमार स्तंभकार आविष्कार बासु भट्टाचार्य द्वारा निर्देशित कला फिल्म आज भी प्रासंगिक है, और अपनी अनोखी शैली एवं पारिवारिक पृष्ठभूमि पर बनी फिल्म आज भी बड़े चाव से देख जाती है. सभी को ज्ञात है कि साठ के दशक  से लेकर सत्तर के दशक तक हिन्दी सिनेमा में राजेश खन्ना के सुपर स्टारडम का ऐसा तूफान आया, तब तक उन्होंने 17 सोलो सुपरहिट फ़िल्में दी कुलमिलाकर लगातार 19 सुपरहिट फ़िल्में देने का न टूटने वाला रिकॉर्ड राजेश खन्ना के नाम आज भी दर्ज है निश्चित-अनिश्चित कुछ नहीं होता, फिर भी अब तक किसी भी हीरो की सिर्फ तीन साल…
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