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व्यंग्य

व्यंग्य : लोकतन्त्र की खूबसूरती के लिए आंदोलन में हिंसा

व्यंग्य : लोकतन्त्र की खूबसूरती के लिए आंदोलन में हिंसा

मनीष शुक्ल सत्ता की सही- गलत नीतियों का विरोध करना लोकतन्त्र में अधिकार भी है और कर्तव्य भी है । कहा जाता है कि विरोध लोकतन्त्र को मजबूत बनाता है और खूबसूरत भी। इसीलिए लोकतन्त्र की खूबसूरती को चार चंद लगाने के लिए विरोध करने वालों की नई प्रजाति तैयार हुई है। जिसका मकसद विरोध के लिए विरोध किया जाए और इतना तेज किया जाए कि देश सबकुछ छोडकर उनका तमाशा देखने लगे। सत्ता पक्ष ऐसे क्रांतिवीरों को आन्दोलनजीवी का नाम देती है तो विपक्ष उन्हें आंदोलनकारी मानकर उनके पीछे खड़ा हो जाता है। फिर चाहे ये जुझारू पत्थर फेंके,…
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व्यंग्य यात्री 2022 व कविता संग्रह ‘जि़ंदगी इतनी आसान नहीं का लोकार्पण

व्यंग्य यात्री 2022 व कविता संग्रह ‘जि़ंदगी इतनी आसान नहीं का लोकार्पण

लखनऊ पुस्तक मेले में लोकार्पण समारोह लखनऊ पुस्‍तक मेले में सोमवार को वरिष्‍ठ पत्रकार एवं कथाकार मनीष शुक्‍ल के संपादन में प्रकाशित व्‍यंग्‍य संग्रह ‘व्‍यंग्‍य यात्री 2022’ एवं डॉ.शिल्‍पी बख्‍शी शुक्‍ला के काव्‍य संग्रह ‘जि़ंदगी इतनी  आसान नहीं’ का लोकार्पण किया गया। लोकार्पण कार्यक्रम के मुख्‍य अतिथि डॉ. सूर्य कुमार पाण्‍डेय, अति विशिष्‍ट अतिथि महेन्‍द्र भीष्‍म व संजीव कुमार ‘संजय’ काव्य और व्यंग्य के संगम को साहित्य धारा का नया प्रतीक बताया। मुख्‍य अतिथि  डॉ. सूर्य कुमार पाण्‍डेय ने ‘व्‍यंग्‍य यात्री 2022’ पुस्‍तक पर चर्चा करते कहा कि व्‍यंग्‍य संग्रह ‘‘व्‍यंग्‍य यात्री 2022’ में एक से बढ़ कर एक चुटीले…
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लोकतंत्र  का ‘महापर्व’ और ‘सलीब’ पर टंगा लोक

लोकतंत्र  का ‘महापर्व’ और ‘सलीब’ पर टंगा लोक

योगेश भट्ट वरिष्ठ पत्रकार आम चुनाव, कहने को लोकतंत्र का महापर्व । न जाने कैसा महापर्व है यह ? जिसमें तंत्र तो उत्सव में लीन होता है, मगर लोक 'सलीब' पर टंगा होता है। आम लोक की तो छोड़िये इस महापर्व में अब तो सियासी दलों का झंडा डंडा उठाने वाले आम राजनैतिक कार्यकर्ता की भी कोई अहमियत नहीं रह गयी है।  राजनैतिक दलों से मोटी रकम लेकर जनमत तैयार करने का काम चुनाव प्रबंधन करने वाली इवेंट मैनेजमेंट और सोशल मीडिया कंपनियां कर रही हैं। कभी जो चुनावी नारे और भाषण आम जनता के बीच से निकल कर आते…
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जनता की जय-जयकार, वोट की दरकार

जनता की जय-जयकार, वोट की दरकार

मनीष शुक्ल वरिष्ठ पत्रकार जनता एकबार फिर जनार्दन है। चारों ओर उसकी जय जयकार हो रही है। चाहे कोई राजनीतिक दल हो या फिर नेता आजकल सपने में भी सारे मिलकर जनता का गुणगान गा रहे हैं। दिन हो रात, हर पल नेता जी जनता की सेवा में खुद को बिजी बता रहे हैं। मरहम लेकर जनता के दर्द के पीछे पीछे घूम रहे हैं। पाँच सालों तक जनता मोहल्ले की ओर मुंह भी न फेरने वाले अब जनता के पैर दबा रहे हैं। जी हाँ चुनाव का मौसम जो लौट आया है। नेताजी को वोटों की दरकार है, इसीलिए…
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व्यंग्य : भैंसे की व्यथा कथा

व्यंग्य : भैंसे की व्यथा कथा

संजीव जायसवाल ‘संजीव’ आ. सम्पादक जी, सादर प्रणाम, मैं कालू राम अध्यक्ष, अखिल भारतीय भैंसा संघ इस पत्र के माध्यम से अपने भैंसा समुदाय की व्यथा कथा सुनाना चाहता हूँ. इस देश में रंगभेद की कुरीति का सबसे बड़ा शिकार हम लोग ही हुए है लेकिन किसी ने भी कभी हमारी कोई सुध नहीं ली. अब देखिये अक्खा इंडिया दूध पीता है हमारी घरवालियों का और जयकारा बोला जाता है गऊ माता का. हमारी भैसों को माता तो दूर कोई मौसी या बुआ तक नहीं बोलता. गली-गली गो-रक्षक मुस्तैद हैं. गऊ माता की रक्षा के लिए वे प्राण ले भी…
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व्यंग्य : करोना और भूकंप, मच गया हड़कंप

लेखक : मनीष शुक्ल अरे यार! खाली ही चाय ले आई हो... चिप्स या पापड़ ही भून लेती तो कसम से मजा आ जाता... जैसे ही अभिषेक ने अपनी फरमाइश ‘इन्दु’ को सुनाई तो तुरंत झल्लाकर बोली- बारात में नहीं आए हो तुम लोग, जो दिनभर ऑर्डर मारा करते हो। कभी पानी ले आओ, कभी चाय ले आओ, अब चिप्स और पापड़ ले आओ। ऊपर से आपके साहबजादे... बिलकुल तुम पर ही गए हैं, कभी ममा मोमोज बना दो, कभी मैगी बना दो, कभी इडली बना दो... लॉक डाउन न हो गया, होम पिकनिक हो गया !  ‘अरे भागवान !…
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व्यंग्य : इल्जाम क्रिकेट पर

व्यंग्य : इल्जाम क्रिकेट पर

लव कुमार सिंह देवियों और सज्जनों! हमारे 50 साला पड़ोसी के घुटने बोल गए हैं। वे अपने दिल से भी लाचार हो गए हैं। पता है इल्जाम किस पर आया है? पहले महेंद्रि सिंह धोनी, अब विराट एंड कंपनी का नाम आया है। आपको भले ही इस पर हंसी आए, पर पड़ोसी इस इल्जाम पर पूरी तरह गंभीर हैं। चलिए कुछ विस्तार से बताते हैं कि असल में क्या तस्वीर है। हमारे पड़ोसी कहते हैं क्रिकेटर खुद तो दौड़कर अल्ट्रा फिट रहते हैं मगर हमसे कहते हैं- सारा दिन बैठकर मैच देखो। फुटबालर मैसी भी नब्बे मिनट में छुट्टी दे…
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व्यंग्य : डोन्ट बरी ! फूड और प्वाइजन दोनों हो जायेंगे सस्ते ….!

व्यंग्य : डोन्ट बरी ! फूड और प्वाइजन दोनों हो जायेंगे सस्ते ….!

डोन्ट बरी ! फूड और पोआईजन दोनों हो जायेंगे सस्ते ....! रवीन्द्र प्रभात कल दफ्तर से लौटा, निगाहें दौड़ाई, हमारा तोताराम केवल एक ही रट लगा रहा था- "राम-नाम की लूट है लूट सकै सो लूट.........!" कुछ भी समझ में न आया तो मैंने तोते को अपने पास बुलाया और फरमाया- मुंह लटकाता है, पंख फडफडाता है, कभी सिर को खुजलाता तो कभी उदास सा हो जाता है, तू केन्द्र सरकार का मंत्री तो नही?  फ़िर कौन सी समस्या है जो इसकदर रोता है? तू तो महज एक तोता है, आख़िर क्यों तुम्हे कुछ-कुछ होता है? तोताराम ने कहा, अब…
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आजादी के प्लेटिनम जुबली साल में आम आदमी

आजादी के प्लेटिनम जुबली साल में आम आदमी

मनीष शुक्ल दोस्तों, आजादी के इस समारोह के साथ ही हमने स्वतंत्रता के प्लेटिनम जुबली वर्ष में कदम रख दिया है। आजादी के इतने सालों में हम बैलगाड़ी से राफेल युग में फूंच चुके हैं। देश ने खूब तरक्की की। कई उतार चढ़ाव देखे हैं। लेकिन इस तरक्की और उतार चढ़ाव के बीच आम आदमी यानि कॉमन मैन खुद को कहाँ खड़ा महसूस करता है। इस सालों में उसने कितनी तरक्की की है और किन किन समस्याओं का सामना किया है। इस बात 2टूक बात करने के लिए खुद मौजूद है आम आदमी। तो आइए मिलते हैं आम आदमी से।…
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व्यंग्य : एडमिनासुरों से मुक्ति

व्यंग्य : एडमिनासुरों से मुक्ति

संजीव जायसवाल ‘संजय’ बचपन से उनकी ख्वाहिश अपना साम्राज्य स्थापित करने की थी. मगर नोन-तेल-लकड़ी के चक्कर में ऐसा उलझे कि पैरों की जूतियां तक घिस गईं. हाकिमों की जी-हुजूरी और चाकरी करते-करते ज़मीर मुर्दा हो गया. सारी ख्वाहिशें, सारी तमन्नाएं कहीं गहरे में दफन हो गई थी. बेज़ार जिंदगी के हाल देख वे ज़ार ज़ार रोते. मगर कूडे के भी दिन कभी न कभी बहुरते हैं तो उनके भी बहुरे. बच्चों से व्हाट्सएप चलाने का गुर सीख उन्होंने एक दिन अपना ग्रुप बना लिया. कुछ रिश्तेदारों, कुछ मित्रों को जोड़ा. चुनी हुई लेखिकाओं और बेहतरीन कवयित्रियों को भी जोड़ा…
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