Latest news : अंतर्राष्ट्रीय : प्रधानमंत्री मोदी ने ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की मौत पर जताया शोक| लोकसभा चुनाव : पांचवें चरण के लिए भीषण गर्मी के बीच मतदान| विकसित भारत को ध्यान में रखते हुए वोट किया: अक्षय कुमार| राजस्थान SI भर्ती 2021 पेपर लीक मामले में आरोपियों ने SC का दरवाजा खटखटाया|  प्रधानमंत्री मोदी ने पुरी के जगन्नाथ मंदिर में की प्रार्थना| जम्मू कश्मीर : जम्हूरियत में सबसे बड़ी चीज लोगों की आवाज: उमर अब्दुल्ला|  

मनोरंजन

शोहरत दिमाग ख़राब कर देती है

शोहरत दिमाग ख़राब कर देती है

CREATOR: gd-jpeg v1.0 (using IJG JPEG v80), quality = 82 लेखक : दिलीप कुमार दुनिया के खुशहाल देशों की लिस्ट में भारत अंतिम पायदान पर आता है. भारत दुःखी देशों की लिस्ट में ऊपर आता है. आम ज़िन्दगी भारत में अवसादपूर्ण होती जा रही है है, आम ज़िन्दगी के अपने संघर्ष भी हैं. अपनी चुनौतियां तो है ही, आजकल लोगों का टीवी देखना बहुत कम हो गया है, फिर भी लोग टीवी, मोबाइल के यूट्यूब पर चिपके हुए कपिल का शो देखते थे. आम लोगों की ज़िन्दगी में गुदगुदाने के लिए यह शो वाकई मददगार था. भले ही एक वर्ग…
Read More
जब रफ़ी साहब के लिए किशोर दा ने फटकार दिया यश जी को …

जब रफ़ी साहब के लिए किशोर दा ने फटकार दिया यश जी को …

लेखक : दिलीप कुमार किशोर दा, रफी साहब दोनों प्रतिद्वंद्वी नहीं थे. जब किशोर दा ने गाना शुरू किया था, तब तक रफी साहब महान बन चुके थे.. एक बार यश चोपड़ा ने रफी साहब का अपमान कर दिया था, तो किशोर दा ने  सभी के सामने यश चोपड़ा को फटकार लगाते हुए कहा था "हम सब रफी साहब का नाम चप्पल उतारकर लेते हैं, तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई उनके साथ ऐसे करने की जब कि भगवान जैसे रफी साहब के एहसान तुम कभी नहीं उतार सकते" .. उस एहसान का मतलब था, यश चोपड़ा को उनके बड़े भाई ने…
Read More
मुझे फ़क्र है मेरी शायरी, मेरी जिंदगी से जुदा नहीं … शकील बदायूंनी

मुझे फ़क्र है मेरी शायरी, मेरी जिंदगी से जुदा नहीं … शकील बदायूंनी

लेखक : दिलीप कुमार एक ऐसे गीतकार जिन्होंने इस नफ़रत भरी दुनिया में प्रेम के गीतों का संसार रचा, जिनके गीत दवा और दुआ का काम करते हैं. शकील साहब ने अपनी ज़िन्दगी मुहब्बत के नग्मो के नाम करते हैं, बाद में दर्द के हवाले कर दिया था. हिन्दी सिनेमा में गीतकार बनने से पहले उर्दू, अरबी अदब की दुनिया का बड़ा नाम बनकर मकबूलियत हासिल कर चुके थे. अपने समकालीन गीतकारों में सबसे अलग मुकाम रखते थे, प्रमुख चार गीतकारों साहिर, मजरुह, शैलेन्द्र, के साथ शकील साहब प्रख्यात थे. दरअसल यही चारों गीतकार सबसे महान माने जाते हैं. प्रेम,…
Read More
रोमांटिक फ़िल्मों के ब्लाक बस्टर फ़िल्मकार… शक्ति सामंत

रोमांटिक फ़िल्मों के ब्लाक बस्टर फ़िल्मकार… शक्ति सामंत

लेखक : दिलीप कुमार हिन्दी सिनेमा की रोमांटिक फ़िल्मों का सृजनकार जो खुद सिल्वर स्क्रीन पर अपनी अदाकारी का जादू बिखेरना चाहते थे, लेकिन नियति ने उन्हें फ़िल्मकार बना दिया. शक्ति सामंत ने खुद भी नहीं सोचा होगा जो खुद स्टार बनना  चाहते थे, वो खुद स्टार मेकर बन गए.  फ़िल्मों का अपना व्यावसायिक दर्शक वर्ग है. वहीँ कॉमिक, संजीदा, रोमांटिक, समान्तर, एक्शन सभी फ़िल्मों को रचने वाले फ़िल्मकार अपने - अपने योगदान के लिए याद किए जाते हैं. प्राकृतवाद  को सिल्वर स्क्रीन के धरातल पर उतारने वाले फ़िल्मकार शक्ति सामंत रोमांटिक फ़िल्मों के पुराने अग्रदूतों में से एक हैं.…
Read More
नहीं रहे हिंदी फिल्मों के ‘कैलेण्डर’ सतीश कौशिक

नहीं रहे हिंदी फिल्मों के ‘कैलेण्डर’ सतीश कौशिक

अभिनय से लेकर लेखन और निर्देशन तक वालीवुड में अपनी अलग छाप छोड़ने वाले फिल्मकार सतीश कौशिक का 6 साल की उम्र में बुधवार को दिल्ली में निधन हो गया| उनके निधन से हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में शोक की लहर दौड़ पड़ी है|  कौशिक का निधन तब हुआ जाब वो अपनी कार में थे| उसी समय दिल का दौरा पड़ने के बाद उनको नहीं बचाया जा सका|   अभिनेता और फिल्म निर्माता सतीश कौशिक का 66 साल की उम्र में बुधवार को दिल्ली में निधन हो गया. उनके निधन की खबर ने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को सदमे में डाल दिया…
Read More
हिन्दी सिनेमा के पुलिस कमिश्नर इफ्तिखार

हिन्दी सिनेमा के पुलिस कमिश्नर इफ्तिखार

लेखक : दिलीप कुमार किशोर कुमार का एक गीत है – ‘जाना था जापान पहुँच गए चीन समझ गए ना’ – इफ्तेखार पर यह गीत सटीक बैठता है. आज के दौर में हो सकता है सिनेप्रेमी इफ़्तेख़ार को न जानते हों  लेकिन पुरानी फ़िल्मों में पुलिस की वर्दी में एक रुआबदार आवाज़ लगभग हर फिल्म में सुनाई देती थी.  इफ्तेखार की दुनिया अलहदा थी. रुचि पेंटिंग में, शौक गाने का और बन गए एक्टर, नियति पहले से ही तय कर चुकी होती है, कौन क्या करेगा! अंततः नियति ने इफ्तिखार को रंगमंचन के लिए चुना. इफ्तिखार फिल्मो में हीरो बन…
Read More
लखनऊ से निकली थी मौसीक़ी सम्राट तलत महमूद की गायिकी

लखनऊ से निकली थी मौसीक़ी सम्राट तलत महमूद की गायिकी

लेखक दिलीप कुमार तलत महमूद' एक ऐसा नाम, जो ग़ज़ल, मौसीक़ी, संगीत की दुनिया का सबसे बड़ा नाम है, जिनकी शख्सियत का तिलिस्म आज भी कायम है. तलत महमूद साहब ग़ज़ल की दुनिया के तानसेन कहे जाते हैं, जिनकी आवाज़ में एक सौम्य लहजा, उनकी जुबां से लखनवी नफासत टपकती थी. बेहद मजाकिया, जिनका मन घुमक्कड़ी की ऐयाशी में रमता था, बेहद लोकप्रिय होते हुए कॅरियर छोड़कर विश्व भ्रमण पर निकल जाते थे. आम तौर पर ऐसे बेपरवाह जियाले इंसान मुझे बहुत प्रभावित करते हैं. भारत के प्रसिद्ध पार्श्व, एवं ग़ज़ल गायक और फ़िल्म अभिनेता थे. इन्होंने ग़ज़ल गायक के…
Read More
देवानंद- सुरैया : प्रेम जो अधूरा होकर भी मुकम्मल हो गया

देवानंद- सुरैया : प्रेम जो अधूरा होकर भी मुकम्मल हो गया

लेखक : दिलीप कुमार इस निरंकुश दुनिया में अगर रोमियो - जूलिएट, हीर - रांझा थे, तो हमारे प्रिय देव साहब एवं सुरैय्या जी भी थे. वैसे भी इस निरंकुश दुनिया में प्रेम करना सबसे ज्यादा ख़तरनाक रहा ख़ासकर भारतीय परिवेश में जहां इंसानो से ज्यादा ग़ुरूर को तरजीह दी जाती हो. देव साहब एवं उनकी प्रेयसी सुरैय्या जी की अमर प्रेम कहानी का जिक्र आज भी बड़ी अदब के साथ किया जाता है. यूँ तो देवानंद साहब को खुशमिजाज, उदासी में भी खुशी ढूंढ लाने वाले महबूब थे, लेकिन अपनी प्रियतमा सुरैय्या जी के लिए देव साहब ने बेशुमार…
Read More
कहानी गीत की : खोया खोया चाँद…

कहानी गीत की : खोया खोया चाँद…

खोया हुआ चाँद, कविराज शैलेन्द्र ढूंढकर लाए थे, जिसको मशहूर संगीतकार बर्मन दादा ढूढ़ रहे थे. फिल्म काला बाजार के लिए विजय आनन्द ने एस डी बर्मन और शैलेंद्र की जोड़ी को मौका दिया गया था. साहिर लुधियानवी से अलग होने के बाद मजरुह सुल्तानपुरी के साथ बर्मन दादा की जोड़ी जमती थी, लेकिन मजरुह सुल्तानपुरी अत्यंत व्यस्त होने के कारण बर्मन दादा ने कविराज को चुन लिया. शैलेंद्र जी को गाना लिखने का समय नहीं मिल पा रहा था, शैलेन्द्र जी अत्यंत व्यस्त थे. बर्मन दादा की संगीत को लेकर दीवानगी देखने लायक होती थी. बर्मन दादा ने  अपने…
Read More
यादें : निर्देशकों के लिए सिलेबस हैं ऋषिकेश दा…

यादें : निर्देशकों के लिए सिलेबस हैं ऋषिकेश दा…

दिलीप कुमार स्तंभकार सत्यजीत रे को सिनेमा का पूरा संस्थान कहते हैं, तो विमल रॉय को सिनेमा का अध्यापक कहते हैं. वही ऋषिकेश दा को उस विद्यालय का स्टूडेंट कह सकते हैं. सत्यजीत, विमल रॉय, ऋषिकेश दा आदि का सिनेमा की यात्रा अपने आप में मुक्कमल सिलेबस है. फिल्म निर्देशन की दुनिया में गहराई, अध्यापन, सामजिक मूल्यों को दर्शाती फ़िल्मों के निर्देशक ऋषिकेश दा संजीदा अभिनय से हंसी के साथ आंसुओं को मिलाकर मानवीय संवेदनाओं का ऐसा कॉकटेल तैयार करते थे, कि फिल्म देखकर निकल रहे मजबूत दिल वाले दर्शकों की आंखें भी नम हो जाती थी. ऋषिकेश दा  का…
Read More