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विशेष : क्या सबसे बड़ा रुपैया ?

वर्ष 1976 में हिन्दी सिनेमा के सुप्रसिद्ध हास्य अभिनेता महमूद द्वारा निर्मित फिल्म ‘’ सबसे बड़ा रुपैया ‘’ का टाइटल सॉन्ग ‘’ ना बीवी ना बच्चा, ना बाप बड़ा ना मैया, द होल थिंग इज़ दैट के भैया सबसे बड़ा रुपैया’’ भले ही कॉमेडी के अंदाज़ में फिल्माया गया हो लेकिन इस गीत के बोल कानों में पड़ते ही लोग अकसर किसी सोच में पड़ जाते हैं। यह फिल्म भले ही बॉक्स ऑफिस पर कमाल ना कर सकी हो लेकिन इसके गाने बेहद लोकप्रिय रहे ।

इस फिल्म में इंसान के जीवन में धन – दौलत, मानवीय भावनाओं और रिश्तों पर बहुत सहजता से प्रकाश डाला गया है। फिल्म का नायक अमित राय एक बेहद रईस व्यक्ति है लेकिन रईस होने के साथ – साथ वह उदार, सहृदय और ईमानदार भी है । वो हमेशा सबकी सहायता के लिए तैयार रहता है। वह लोगों की व्यक्तिगत रूप से और व्यवसाय में काफी मदद करता है । उसकी इस दरियादिली के लिए उसका दोस्त नेकीराम उसे आगाह करता है लेकिन वह उसकी बात सुनी – अनसुनी कर देता है। एक दिन उसकी सारी संपत्ति चली जाती है । यहाँ तक कि उसका घर और समान तक नीलम हो जाता है । ऐसे बुरे वक़्त में कोई उसका साथ नहीं देता । उसने कारोबार में जिन लोगों की मदद की होती है वो उससे मुह मोड़ लेते हैं। उसकी मंगेतर भी उसे छोड़ जाती है । अगर कोई उसके साथ रह जाता है तो उसकी विधवा माँ और अविवाहित बहन । वह उनके साथ समुद्र के किनारे जा कर रहने लगता है और मछली पकड़ कर अपनी आजीविका चलाने लगता है। कुछ समय बाद उसे पता चलता है की उसकी बर्बादी भाग्यवश नहीं हुई थी बल्कि कुछ लोगों ने जानबूझ कर उसे इस कगार पर पहुंचाया था।

दरअसल इस दुनिया में हर इंसान के मानवीय मूल्य और भावनाएं एक जैसी नहीं होती । आज के आधुनिक युग में हर कोई पद – प्रतिष्ठा, ऐशो- आराम और सुख- सुविधाएं पाना चाहता है। जो जिस काम के लायक नहीं है वो काम करना चाहता है । प्रतिभाहीन, मूल्यविहीन और दुश्चरित्र लोग सच्चे, ईमानदार और प्रतिभाशाली लोगों को छल – बल से जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में हराने की कोशिश करते हैं । लोग रिश्तों का आवरण ओढ़ कर किसी व्यक्ति का आर्थिक शोषण करने के लिए किसी भी हद तक चले जाते है। ऐसे में कोमल भावनाएं रखने वाले परोपकारी और सहृदय व्यक्ति को कदम – कदम पर चोट लगती है और दुःख सहना पड़ता है।

जीवन में अक्सर हम खुद को इस कशमकश में फंसा पाते हैं कि हमारी प्राथमिकता आखिर क्या है? हमारे लिए रिश्ते अधिक महत्वपूर्ण हैं या पैसा ? यह सवाल आसान नहीं है । पैसा निसंदेह हमारी बहुत सी जरूरतों को पूरा करता है । धन या पैसे से ही हमारी पारिवारिक और सामाजिक प्रतिष्ठा होती है लेकिन पैसे से क्या सब कुछ हासिल किया जा सकता है ? क्या पैसे से प्यार खरीदा जा सकता है? क्या पैसा किसी निस्वार्थ और सच्चे रिश्ते की बुनियाद हो सकता है? अगर किसी औरत का पति उसे तमाम ऐशो- आराम और धन-दौलत देता है लेकिन समय नहीं देता और दूसरी औरतों में दिलचस्पी लेता है तो क्या वो खुश रह सकती है? यह हम सभी जानते है कि नहीं ऐसा बिलकुल संभव नहीं है । दरअसल किसी रिश्ते के पनपने और कायम रहने के लिए दोनों पक्षों में एक चाहत, एक लगाव और प्यार होना अनिवार्य है सिर्फ पैसे के आधार पर रिश्ते नहीं बनाए जा सकते और ना ही निभाए जा सकते हैं।
जब हम इस दुनिया में आते हैं तो हमारे कुछ रिश्ते तो जन्मजात होते हैं । जन्म से ही माँ की हम पर स्नेहवर्षा करने लगती हैं। हमारी हर ज़रूरत का हर पल ध्यान रखती है। पिता हमारे लिए एक संबल होते हैं । माता- पिता चाहे अमीर हों या गरीब अपने बच्चे का लालन – पालन बेहद लाड़-प्यार से करते हैं। हो सकता है कि अमीर पिता अपने बच्चे के लिए कुछ ज़्यादा सुख सुविधाएं जुटाने में सक्षम हो लेकिन गरीब पिता भी जहां तक संभव होता है अपने बच्चे के लिए सबकुछ करता है। दरअसल मातृत्व और पितृत्व एक भावना है। ये अनमोल रिश्ते हैं, जो हर किसी को ईश्वर का वरदान हैं लेकिन क्या माता-पिता के अलावा अन्य रिश्ते चाहे वो खून के हों या दुनियावी निस्वार्थ होते हैं ? मेरे खयाल से नहीं। पैसे के अभाव में बहुत से रिश्ते टूट जाते हैं , बिखर जाते हैं।

अरसल पैसे की अपनी अहमियत है और रिश्तों का अपना महत्व है लेकिन दोनों सापेक्ष हैं। बहुत बार हमारे करीबी रिश्तेदारों या दोस्तों को किसी गंभीर बीमारी के लिए महंगे इलाज की आवश्यकता होती है। हम उसकी मदद करना चाहते हैं लेकिन धन के अभाव में नहीं कर पाते । ऐसे में हमें उसकी हालत को देख कर जितना दुःख होता है उतना ही दुःख अपनी तंगहाली पर भी होता है। पर सवाल यह उठता है कि क्या हमारे अलावा उस व्यक्ति का कोई अन्य रिश्तेदार, मित्र या सगा संबंधी क्या इतना सक्षम नहीं था कि उसकी सहायता कर पाता? निसंदेह ऐसे लोग थे जिनके पास लाखों क्या करोड़ों रुपये थे पर अगर कुछ नहीं था तो सहायता करने कि इच्छाशक्ति या जज़्बा । स्पष्ट है कि धन हमें किसी के जीवन को बेहतर बनाने या उसकी मदद करने के लिए सामर्थ्यवान ज़रूर बनाता है लेकिन इसके लिए इच्छाशक्ति नहीं प्रदान करता । यह इच्छाशक्ति प्रेम, लगाव, समर्पण, त्याग और ज़िम्मेदारी की भावना से उत्पन्न होती है और बलवती होती है।
समाज में चलन है कि ज़्यादातर लोग धनी, नामचीन और रसूख वाले लोगों के साथ बोलचाल, दोस्ती या रिश्तेदारी रखना चाहते हैं। यदि आप अच्छी कमाई करते हैं और लोगों को समय नहीं दे पते तो भी ज़रूरी नहीं कि आपके उनसे संबंध विच्छेद हो जाएँ। समाज में लोग इस बात को अच्छी तरह समझते हैं कि कोई व्यक्ति अगर काम – काज में व्यस्त है और रोजाना उसे फोन नहीं कर पा रहा है तो इसमें उसकी कोई गलती नहीं है। काम के दबाव और अति व्यस्तता के कारण वह ज़्यादा लोगों से संपर्क नहीं कर पा रहा होगा।
अखबारों में और आम जिंदगी में हम अक्सर यह सुनते हैं कि अमुक विवाहित महिला या लड़की को उसके ससुराल वाले तंग करते हैं । पिछले दिनों मुझे अपनी एक सहेली से पता चला कि हमारी एक अन्य बचपन की सहेली काफी दिक्कत में है । उसका पति और सास उससे घरेलू नौकर की तरह व्यवहार करते हैं । पति उसे घर के खर्च के लिए एक –एक पैसा गिन कर देता है। उसके खाने-पीने पर भी टोका – टाकी की जाती है। जो कपड़े वो पहनती है वो भी उसकी बड़ी बहन उसे खरीद कर भेजती है। यह सब सुन कर मुझे बहुत दुःख हुआ । मैंने मन में सोचा इतने अच्छे घर की लड़की जिसकी बहन एक प्रतिष्ठित डॉक्टर है और भाई एक बड़ा इंजीनियर आखिर इस हालत में क्यों और कैसे है? एक दिन उसने मुझे खुद फोन किया और अपनी पिछली और वर्तमान ज़िंदगी के बारे में बहुत कुछ बताया। उसने बताया कि उसके पति काफी पढे लिखे हैं । वो देश के शीर्ष प्रबंधन संस्थान आई .आई. एम से पढे हैं । सरकारी नौकरी में अच्छे पद पर हैं । शादी के बाद वो स्वयं भी शहर के एक प्रतिष्ठित स्कूल में अध्यापिका थी लेकिन छोटा बेटा होने के बाद उसके पति और सास ने उस पर नौकरी छोडने के लिए दबाव डाला । उसने उनकी बात मान कर नौकरी छोड़ दी । इसके बाद बच्चे की देखभाल के साथ – साथ घर की सारी ज़िम्मेदारी उस पर आ गयी । चाय – पानी पकड़ाने में उसे अगर एक मिनट की भी देरी हो जाती तो सास खरी खोटी सुनाती और शाम को पति से शिकायत भी करती । धीरे- धीरे पति -पत्नी के संबंध खराब होते गए। आजीविका का अपना कोई साधन ना होने और दो बच्चों की माँ होने के कारण अब वो पति को तलाक भी नहीं दे सकती । मजबूरन बुरा बर्ताव सहना और अपशब्द सुनना उसकी नियति बन गयी है। स्पष्ट है कि विवाहित महिलाएं या लड़कियां अगर आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर ना हों और ससुराल वाले बुरे निकाल जाएँ तो उन्हें एक दयनीय जीवन जीना पड़ता है। तो पैसा वास्तव में शक्ति है। यह आपको विकल्प प्रदान करता है। अगर कोई महिला आप अपनी आजीविका स्वयं चला सकती हैं तो वह अपेक्षाकृत आसानी से अपमानजनक रिश्ते से बाहर निकल सकती हैं।
आर्थिक स्वतन्त्रता दरअसल जीवन जीने की स्वतन्त्रता है हालांकि अक्सर लोगों को यह भी कहते सुना है ‘’ पैसे से खुशी नहीं खरीदी जा सकती।‘’ पैसा एवं दुनिया भर के ऐशो – आराम मिलने के बाद भी लोग खुश नहीं होते। उन्हें जीवन में प्यार की, स्नेहिल स्पर्श की, ममता की या अन्य भावनाओं की ज़रूरत होती है। हम जिन्हें प्यार करते हैं पैसे से कुछ चीजें ला कर उन्हें खुश करने की कोशिश करते हैं लेकिन क्या हमारे सारे संबंधियों को हमारे पैसे या उपहारों की ही ज़रूरत होती है? इस दुनिया में बहुत से ऐसे लोग हैं जिनके पास बहुत कम पैसा और संसाधन हैं लेकिन फिर भी वो खुश है। पर तमाम अभावों में भी वो खुश कैसे रह पते हैं? दरअसल उनके पास परिवार, दोस्त और प्यार है। बहुत से लोगों के लिए प्रेम दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण चीज़ है। अगर किसी के पास बहुत सारा पैसा है लेकिन खुशियाँ बांटने वाला कोई नहीं तो वह व्यक्ति खुश नहीं रह सकता ।

यह सच है कि निस्वार्थ प्रेम से बड़ी इस दुनिया में कोई चीज़ नहीं लेकिन इंसान को इस बात की समझ अवश्य होनी चाहिए कि कौन वास्तव में उससे प्यार करता है और उसका शुभचिंतक है । इस बात को लेकर हमेशा सतर्क रहना चाहिए कि कहीं कोई रिश्तों की आड़ ले कर उसका नाजायज फायदा तो नहीं उठा रहा? हर व्यक्ति को सबसे पहले अपनी सेहत पर फिर अपने काम पर और उसके बाद अपने रिश्तों पर ध्यान देना चाहिए । प्राथमिकता के इस क्रम को निर्धारित करने के पीछे मेरा यह मानना है कि अगर कोई शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ होगा तभी वह काम कर सकेगा और धनार्जन कर सकेगा। स्वस्थ और आर्थिक रूप से सम्पन्न व्यक्ति ही दोस्तों और रिशतेदारों की मदद कर सकता है । जो स्वयं लाचार होगा वो दूसरों के लिए क्या करेगा? निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं कि जीवन में पैसा और रिश्ते दोनों आवश्यक है और यद्यपि आज के समय में रिश्ते पैसे पर अधिक अवलंबित हैं क्योंकि दुनिया ने काफी भौतिक तरक्की कर ली है और इस दुनिया में हर कोई हर किसी से निस्वार्थ प्रेम नहीं करता।

राखी बख़्शी

By Rakhi Bakshi

3 thoughts on “विशेष : क्या सबसे बड़ा रुपैया ?

  • Arvind Sharma -

    हृदयस्पर्शी और मार्मिक लेख। हर व्यक्ति अपने आपको इस लेख में एक पात्र के रूप में महसूस करेगा।

  • डा शिल्पी -

    अच्छा लेख। सहज अभिव्यक्ति। पैसा निश्चित रूप से बहुत कुछ है पर सब कुछ नही।

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