लेखक : डॉ आलोक चांटिया
वर्ष 1961 में फ्रांस के जीन काक ट्यू द्वारा 27 मार्च को पहला विश्व रंगमंच दिवस मनाने का संकल्प आरंभ किया गया था जिसका उद्देश्य था कि रंगमंच और शांति की संस्कृति को बढ़ावा दिया जाए और बस तभी से इसी थीम पर हर वर्ष विश्व रंगमंच दिवस मनाया जाता है लेकिन ऐसा नहीं है कि रंगमंच मानव संस्कृति के लिए कोई नया शब्द हो क्योंकि छठी ईसवी पूर्व से ही रंगमंच के प्रमाण मिलने लगे और यह रंगमंच जिसे आप अंग्रेजी में थिएटर कहते हैं या एक ग्रीक शब्द थियोट्रान शब्द से उत्पन्न हुआ है जिसका अर्थ होता है प्रदर्शन का स्थान और जैसा कि सभी जानते हैं कि रंगमंच एक प्रदर्शन का ही स्थान होता है भारत में भी राष्ट्रीय रंगमंच का आरंभ भारतीय हरिश्चंद्र द्वारा आरंभ किया गया था पहला रंगमंच अंधेर नगरी उन्हीं का वह नाटक था जिसमें अंधेर नगरी चौपट राजा का मंचन किया गया था लेकिन जब रंगमंच के बारे में हम विस्तार से जानने का प्रयास करते हैं तो विमर्श के धरातल पर समाजशास्त्र में रंगमंच का बहुत ही ज्यादा प्रयोग किया गया है केनेथ बर्क ने 1945 में नाट्यशास्त्र नाम का सिद्धांत दिया और उन्होंने हम माना की जीवन पूरी तरह से एक नाटक ही होता है और हम सभी भी एक फिल्मी गाने में अक्सर यह सुनते हैं जिंदगी एक नाटक है और नाटक में हम काम करते हैं वास्तव में मनुष्य जिस जैविक रूप में पैदा होता है उस जैविक रूप के आधार पर वह जीवन कभी नहीं जीता है बल्कि वह अनुकरण की प्रणाली में बहुत कुछ ऐसा सीखता है जो जैविक परंपराओं और जैविक प्रणाली से बहुत भिन्न होता है यही कारण है कि हम यह भी कहते हैं कि एक चेहरे पर कई चेहरे लगा लेते हैं लोग क्योंकि हम वास्तव में वह नहीं जीते हैं जो हम अंदर से होते हैं जो हमने सीखा होता है उसी को हम जीते हैं और इसी अर्थ में जीवन एक नाटक है यदि इस नाटक को हटा दिया जाए तो मनुष्य पूर्ण रूप से उतना ही जैविक है जितना दूसरे प्राणी लोग और इसी बात को समझते हुए 1956 में इर्विंग गाफ मैन देख किताब लिखी द प्रेजेंटेशन ऑफ सेल्फ इन एवरीडे लाइफ और उसमें उन्होंने नाटक और रंगमंच को मनुष्य के जीवन में एक रूपक के रूप में इस्तेमाल किया और अपने सिद्धांत में उन्होंने यह बताया कि जिस तरह से कोई मनुष्य किसी नाटक में अपने अभी नहीं को करने के लिए उस किरदार के भूमिका को सीखता है और उसी को आकर रंगमंच पर प्रदर्शित करता है जबकि वह मनुष्य मूल रूप से कोई दूसरा होता है उसकी भावना दूसरी होती है उसका व्यवहार दूसरा होता है लेकिन उसने दोस्ती का होता है या जिस व्यक्ति का उसे किरदार निभाना होता है उसी को आकर वह मंच पर प्रदर्शित करता है यही कारण है कि मानव के बारे में वास्तविकता जानने के लिए हमें यह समझने की आवश्यकता है कि मानव किस तरह के किरदार को निभाने के लिए तैयार हुआ है और इस स्थिति में जल रंगमंच को हम परिभाषित करते हैं तो यह पाते हैं कि रंगमंच आज भी मानव के जीवन में उसकी एक अटूट कड़ी बना हुआ है कोई भी मनुष्य वही कर रहा है जो उसने संस्कृति के रंगमंच से सीखा है अनुकरण के द्वारा उसने अपनाया है हम अपने को जिस भी जाति धर्म प्रजाति का कहकर उसके लिए खड़े होते हैं उसके लिए लड़ते हैं वह हमारे द्वारा अनुकरण के माध्यम से सीखा गया वह अनुभव है जो हम समाज के रंगमंच पर निभाते हैं इसलिए विश्व रंगमंच दिवस हर व्यक्ति के जीवन में रचा बसा है लेकिन जब व्यवसायिकता के आधार पर विश्व रंगमंच दिवस को हम परिभाषित करते है तब इसका अर्थ बदल जाता है क्योंकि रंगमंच के माध्यम से हम ना सिर्फ व्यक्ति को उन क्षणों के बारे में जीवंत रूप में अनुभव कराते हैं जो अब उसके सामने उपस्थित नहीं है बल्कि अपने जीवन को भी एक रंगकर्मी के रूप में नशे पर स्थाई तो देते हैं बल्कि पहचान देते हैं और इसी के साथ-साथ अपने जीवन जीने के अभिनय को भी स्थापित करते हैं यही कारण है कि जीवन में इतिहास को जीवंत रूप में दिखाने के लिए जब रंगकर्मी अपने जीवन को एक योद्धा की तरह समर्पित करता है समाज के लिए तो उसके जीवन में स्वयं के बहुत सी परेशानियां और चुनौतियां सामने खड़ी होती हैं इसीलिए पूरे विश्व में रंग कर्मियों के लिए बहुत सी योजनाएं हैं उन को आर्थिक सहायता दी जाती है उन्हें पुरस्कार दिए जाते हैं ताकि रंग कर्मियों के माध्यम से रंगमंच का स्थायित्व बना रहे बल्कि मानव अपनी एक ही जीवन में अपने अतीत वर्तमान सभी में घटी घटनाओं को मंच के माध्यम से जीवंत रूप में देख सके समझ सके आज जिस तरह से फिल्म उद्योग बनता है वह भी रंगमंच का ही एक ऐसा पक्ष है जिसने मानव जीवन को रंगमंच की उस स्वरूप का अध्ययन कराया है दिखाया है जो घर में बैठकर भी देखा जा सकता है लेकिन सच यह भी है कि रंगमंच से जुड़े जीवन में सभी व्यक्ति प्रसिद्ध रंगकर्मी बन पाए उनकी समाज में स्थापना हो पाए वह सम्मान पाएं यह जरूरी नहीं है कई बार उसी रंगमंच को अपने जीवन में उतारने के लिए उनके सामने जीवन जीने की बहुत कठिन समस्या पैदा हो जाती है गरिमा पूर्ण जीवन उनसे दूर हो जाता है और यह कहना अतिशयोक्ति नहीं है कि मानवाधिकार उल्लंघन उनके जीवन में स्पष्ट हो जाता है यही कारण है कि विश्व रंगमंच दिवस को मना कर लोगों के बीच में उस रंगमंच की महत्ता प्रासंगिकता और जागरूकता को बनाए रखने का प्रयास किया जाता है जिससे आने वाली पीढ़ी आना सिर्फ अपने अतीत को नाटक के माध्यम से मंचों पर देखकर जीवन की संपूर्णता को प्राप्त कर सके बल्कि जो रंगकर्मी इस में जुड़े हुए हैं उनके जीवन में भी एक निरंतरता स्थायित्व और गरिमा पूर्ण जीवन का सार बना रहे यही विश्व रंगमंच दिवस का यथार्थ है|
अखिल भारतीय अधिकार संगठन (लेखक विगत दो दशक से मानवाधिकार विषय पर जागरूकता कार्यक्रम चला रहे हैं)