Friday, November 22, 2024
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पश्चिमी उत्तर प्रदेश : किसान आंदोलन के बाद भाजपा का टेस्ट

11 जिलों की 58 विधानसभा सीटों पर कुल 623 प्रत्याशियों के भाग्य का होगा फैसला

सपा- रालोद गठबंधन की भाजपा को चुनौती, बसपा और कांग्रेस पुराना गढ़ वापस लेने की कवायद में 

पश्चिम उत्तर प्रदेश में मतदाता अपने मूड का इजहार कर देगा। यहाँ के 11 जिलों की 58 सीटों पर वोट डालकर बता देंगे कि किसान आंदोलन की कितनी तपिश भाजपा को झेलनी पड़ेगी। एनसीआर और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दस फरवरी को पहले चरण का मतदान होगा। इसमें शामली,  मुजफ्फरनगर,  बागपत, मेरठ,  गाजियाबाद,  गौतमबुद्ध नगर,  हापुड़,  अलीगढ़,  बुलंदशहर,  आगरा और मथुरा शामिल हैं।  2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को पश्चिमी यूपी के 14 जिलों की 71 विधानसभा सीटों में से 52 सीटों पर कामयाबी मिली थी। लेकिन तब कैराना से हिंदुओं के पलायन का मुद्दा हावी था। भाजपा इस बार विकास की उपलब्धियों को गिना रही है। प्रचार समाप्त होने के पहले बिजनौर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्चुअल रैली कर विकास कार्यों को गिनाया। उन्होने किसानों का भी उल्लेख किया तो जातिवाद और परिवारवाद पर निशाना साधते हुए पूरे प्रदेश को बीजेपी का परिवार बताया। 

प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी कहा कि भाजपा सरकार ने व्यापारी और आम आदमी का पलायन रोका। किसानों को गन्ने का मूल्य दिया। लेकिन साथ ही कैराना कांड की याद भी दिला दी। उन्होने कहा कि दूसरी सरकार आई तो माफिया, दंगाई फिर माहौल बिगाड़ देंगे। पिछले चुनाव में भी भाजपा ने इन्हीं मुद्दों पर वोट मांगे थे। यही कारण था कि पिछले विधान सभा और लोकसभा चुनावों में 90 फीसद जाट मतदाताओं ने बीजेपी को वोट दिया। जाटों के वोट की बदौलत लगातार दो चुनावों में राष्ट्रीय लोकदल के नेता दिवंगत अजित सिंह और उनके बेटे जयंत सिंह बीजेपी से चुनाव हार गए। लेकिन इस बार गन्ना बेल्ट में किसान नाराज बताए जा रहे हैं। यानि जाट और किसान नाराज तो भाजपा का थिंक टैंक परेशान। पश्चिमी यूपी की 70 फीसदी आबादी खेती और किसानी से जुड़ी है। यहां बड़े काश्तकार और किसान हैं। वैसे भी पश्चिमी यूपी में एक मशहूर कहावत है- जिसके किसान और जाट, उसी के ठाठ… लेकिन जाट और किसान नेता राकेश टिकैत खुलेआम भाजपा के खिलाफ मुहिम चला रहे हैं। नरेश टिकैत तो एकबार समाजवादी पार्टी को समर्थन देने का ऐलान भी कर गए लेकिन फिर जोड़- घटाने के बाद ऐलान को वापस ले लिया। रालोद सुप्रीमो चौधरी जयंत चुनाव से ठीक पहले एक बार फिर नरेश टिकैत से मिले हैं। इसी वोटबैंक की बदौलत पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने एक अलग मुकाम हासिल किया तो उनके बेटे चौधरी अजित सिंह हर बार सत्ता का स्वाद चखते रहे। अब चौधरी परिवार की विरासत संभाल रहे तीसरी पीढ़ी के जयंत चौधरी सपा अखिलेश यादव के साथ भाजपा के मुक़ाबले में खड़े हैं। इस बार बीजेपी ने यहाँ ‘पलायन’ और ‘‘80 बनाम 20’’ जैसे मुद्दों को उठाकर ध्रुवीकरण की कोशिश की है। अमित शाह ने पिछले दिनों कैराना का दौरा कर इन मुद्दों को धार देने की भी कोशिश की। जाटों की नाराज़गी को दूर करने के लिए गृह मंत्री दिल्ली में 250 से ज्यादा जाट नेताओं से मुलाकात की। जिसमें राष्ट्रीय लोक दल के सुप्रीमो जयंत चौधरी को अपने पक्ष में लाने पर भी बात हुई लेकिन जयंत चौधरी ने बीजेपी के इस ऑफर को ठुकरा दिया।

यहां 58 विधानसभा सीटों पर कुल 623 प्रत्याशी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। मथुरा और मुजफ्फरनगर दो सीट ऐसी हैं, जहां से सबसे ज्यादा 15-15 प्रत्याशी मैदान में हैं। पहले चरण में मैदान में उतरे 46 फीसदी उम्मीदवार करोड़पति हैं। प्रत्याशियों की औसतन आय 3.72 करोड़ रुपये है। अगर दल बदलओं की बात करें तो आगरा के फतेहाबाद से भाजपा के विधायक रहे जितेंद्र वर्मा अब समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए हैं। सपा ने उन्हें आगरा का जिलाध्यक्ष बना दिया है। जितेंद्र फतेहाबाद और आगरा की अन्य सीटों पर भाजपा को नुकसान पहुंचा सकते हैं। मुजफ्फरनगर के बड़े कांग्रेस नेता और चार बार के विधायक रहे हरेंद्र मलिक के बेटे को इस बार चरथापल सीट से सपा-रालोद गठबंधन ने टिकट दिया है। चुनाव से ठीक पहले पंकज और हरेंद्र दोनों ही कांग्रेस छोड़कर सपा में शामिल हो गए थे। खैरागढ़ से बसपा के विधायक रह चुके भगवान सिंह कुशवाहा इस बार भाजपा से चुनाव लड़ रहे हैं। इसी प्रकार एत्मादपुर में विधायक रहे और सपा के बड़े नेताओं में शुमार डॉक्टर धर्मपाल सिंह भाजपा में शामिल हो गए हैं। इस बार भाजपा ने उन्हें एत्मादपुर से टिकट दिया है। ऐसे में ये नेता उलटफेर कर सकते हैं।

पश्चिम उत्तर प्रदेश में जातीय फैक्टर भी हर चुनाव में हावी है। ऐसे में यहाँ 25 फीसदी मुसलमान और 17 फीसदी जाट मतदाताओं की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। 2014 के चुनाव में यहाँ 90 फीसदी जाट मतदाताओं ने भाजपा को वोट देकर रिकार्ड जीत दिलाई थी। लेकिन किसान आंदोलन के बाद यहाँ रालोद और सपा गठबंधन इस वोट बैंक पर अपना दावा कर रहा है। यहाँ जाटव वॉटर 20 फीसदी के करीब है। यह वोटर बसपा का स्वाभाविक वोट बैंक माना जाता रहा है। बसपा ने यहाँ पर मुस्लिमों को भी बड़ी तादात में टिकट दिये हैं। ऐसे में अगर जाटव मुस्लिम वोट एकमुश्त गिरा तो बसपा यहाँ बड़ा उलटफेर कर सकती है। 

भाजपा इस बार यहाँ विकास के नाम पर वोट मांग रही है। जाट, गुर्जर, दलित, ब्राह्मण आउट ठाकुर वोटों को पार्टी के दिग्गज मनाने में जुटे हैं। गन्ना बेल्ट में किसानों को नियमित भुगतान का दावा किया जा रहा है। केंद्र सरकार ने बागपत, शामली, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर होते हुए 12 हजार करोड़ की लागत से बनने वाले दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेस वे बनाने की ऐलान किया गया है। गंगा-एक्सप्रेस-वे का लोकार्पण, जेवर एयरपोर्ट, मेरठ में ध्यानचंद विश्वविद्यालय, राजा महेंद्र प्रताप सिंह विश्वविद्यालय का शिलान्यास कर भाजपा ने विपक्षी दलों को विकास की पिच पर लाने की कोशिश की है। कुल मिलाकर सभी राजनीतिक दल अपनी नीति और रणनीति को लेकर जनता के सामने खड़े हैं। जनता सभी प्रत्याशियों को अपने तराजू पर तौल रही है। अब वो किसके सिर पर ताज बांधती है और किसको हर मिलती है। इसका खुलासा 2022 के चुनाव परिणाम के साथ हो जाएगा।  

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पोलिटिकल हिस्ट्री

वर्ष : 2017  जिले: 11 : चुनाव परिणाम

जिला : शामली

कुल विधानसभा सीट : तीन

परिणाम  

भाजपा : एक

सपा  : दो

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जिला : मेरठ

कुल विधानसभा सीट : सात   

परिणाम  

भाजपा : छह

सपा  : एक

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जिला : मुजफ्फरनगर

कुल विधानसभा सीट : पाँच   

परिणाम  

भाजपा : सभी सीट भाजपा

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जिला : बागपत

कुल विधानसभा सीट : तीन   

परिणाम  

भाजपा : दो

रालोद : एक

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जिला : बुलंदशहर

कुल विधानसभा सीट : सात   

परिणाम  

भाजपा : सभी सीट भाजपा

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जिला : हापुड़  

कुल विधानसभा सीट : तीन

परिणाम  

भाजपा : दो

बसपा  : एक

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जिला : गाजियाबाद

कुल विधानसभा सीट : पाँच  

परिणाम  

भाजपा : सभी पाँच सीटें

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जिला : नोएडा (गौतमबुद्ध नगर)

कुल विधानसभा सीट :  तीन

परिणाम  

भाजपा : सभी सीट

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जिला : अलीगढ़

कुल विधानसभा सीट : सात

परिणाम  

भाजपा : सभी सीट भाजपा

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जिला : आगरा

कुल विधानसभा सीट : नौ   

परिणाम  

भाजपा : सभी सीट भाजपा

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जिला : मथुरा

कुल विधानसभा सीट :  पाँच

परिणाम  

भाजपा : चार सीट भाजपा

बसपा : एक सीट

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प्वाइंटर

पहले चरण का चुनावी गणित

जातीय और धार्मिक समीकरण

मुसलमान – 27 फ़ीसदी

दलित – 18 फ़ीसदी

जाट – 17 फ़ीसदी

गुर्जर-  4 फीसदी

राजपूत- 8 फीसदी

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