Sunday, November 24, 2024
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विशेष : परमाणु युद्ध का खतरा पैदा करता चीन

आनन्द अग्निहोत्री

हमें इस बात की खुशफहमी हो सकती है कि सीमा पर विवाद की स्थिति में हम अब चीन को खदेड़ देते हैं। हमारे देश का नेतृत्व इतना प्रभावशाली हो गया है कि उसके सामने चीन को झुकना पड़ता है लेकिन एक कॉमर्शियल सैटेलाइट से भेजी गयी तस्वीरों से जो खुलासा हुआ है, वह भारत के लिए तो चौंकाने वाला है ही, पूरी दुनिया के लिए बड़ा खतरा बनता नजर आ रहा है। यह खतरा है चीन जो अंतर महाद्वीपीय बैलेस्टिक मिसाइल से परमाणु हथियार दागने के लिए अपने दो रेगिस्तानों में अंडरग्राउंड ठिकाने बना रहा है। तस्वीरें बयां करती हैं कि दोनों ही रेगिस्तानों में गहरे गड्ढे खोदे जा रहे हैं। वस्तुत: रेगिस्तान में गड्ढे खोदना किसी रचनात्मक प्रोजेक्ट का हिस्सा तो हो नहीं सकता। निश्चित रूप से ये गड्ढे किसी खौफनाक इरादे को लेकर खोदे जा रहे हैं। बताते हैं कि इन गड्ढों में आईसीबीएम तैनात की जा रही हैं जिनसे परमाणु हथियार दागे जा सकें। रबड़ से ढके इन गड्ढों को साइलो कहते हैं और जहां ये गड्ढे बनाये जा रहे हैं, उन्हें साइलोज ग्राउंड।

सवाल यह है कि जब जमीन से मिसाइलें दागी जा सकती हैं तो चीन को साइलो बनाने की जरूरत क्यों महसूस हुई। वह इस तरह की खतरनाक तैयारियां क्यों कर रहा है। कभी दुनिया की दो महाशक्तियों  अमेरिका और तत्कालीन सोवियत संघ के बीच परमाणु हथियार बनाने की होड़ चल रही थी। दोनों देशों ने इसके भयावह परिणामों को समझा और 1 जुलाई 1968 को परमाणु अप्रसार संधि की जिसके तहत सीमित संख्या में ही परमाणु हथियार रखने थे। दुनिया में यह होड़ न बढ़े, इसके लिए अन्य देशों को भी इसमें शामिल करना शुरू किया गया। अब तक 190 से ज्यादा देश इस संधि पर हस्ताक्षर कर चुके हैं। इनमें चीन भी शामिल है। इसके बाद अमेरिका और रूस के बीच वर्ष 2010 में न्यू स्टार्ट संधि हुई जो दोनों देशों के परमाणु हथियारों पर लगाम लगाने के लिए है। हाल ही में इसकी अवधि पांच वर्ष के लिए और बढ़ा दी गयी है। जाहिर है दोनों महाशक्तियां परमाणु हथियारों की संख्या सीमित ही रखना चाहती हैं। वहीं चीन न केवल परमाणु हथियार बढ़ा रहा है अपितु इनके इस्तेमाल के नये-नये तरीके भी ईजाद कर रहा है। साइलो उसकी नयी ईजाद है। वस्तुत: चीन का मानना है कि जमीन पर तैनात मिसाइलें दुनिया की निगाह में होती हैं और किसी भी जंग के समय इन्हें तबाह किया जा सकता है। लेकिन अंडरग्राउंड मिसाइलों को नष्ट करना इतना आसान नहीं होगा।

इसी सोच के तहत उसने दो साइलोज ग्राउंड तैयार किये हैं। एक ग्राउंड है चीन के उत्तर पश्चिमी प्रांत यूमेन के पास रेगिस्तान जो सैकड़ों किलोमीटर लम्बा-चौड़ा है। यहां अब तक तकरीबन 110 साइलो तैयार किये जा चुके हैं। दूसरा ग्राउंड है यूमेन से 500 किलोमीटर दूर हामी का रेगिस्तान। इस मैदान में भी 100 के करीब साइलोज तैयार किये जा चुके हैं। यहां जो अंतर्महाद्वीपीय बैलेस्टिक मिसाइल तैनात की जा रही हैं, उनकी मारक क्षमता 5,500 किलोमीटर से ज्यादा की है। यानि दूसरे शब्दों में कहें तो इनकी रेंज में समूचा भारत तो है ही, दुनिया का काफी हिस्सा इनकी मारक क्षमता में आ जाता है। यानि चीन की यह करतूत पूरी दुनिया के लिए खतरा बनकर उभरने वाली है।

हाल ही में तलाशा गया यह साइलो फील्ड चीन के झिंजियांग क्षेत्र के पूर्वी हिस्से में है। यह इलाका हामी शहर में चीन के कुख्यात रीएजुकेशन शिविरों से ज्यादा दूर नहीं है। पिछले हफ्ते द फेडरेशन ऑफ अमेरिकन साइंटिस्ट ने ‘प्लैनेट लैब्स सैटेलाइट्स’ की तस्वीरों के जरिए इसकी पहचान की। फेडरेशन ने ये तस्वीरें न्यूयॉर्क टाइम्स से भी शेयर की हैं। यह हामी शहर से 60 किमी दक्षिण-पश्चिम में उइगर मुसलमानों के लिए बनाए गए सरकारी रीएजुकेशन सेंटर के करीब है। इन सेंटर्स में उइगर मुसलमानों को कट्टरता से बाहर निकालने के नाम पर कैद में रखा जाता है। अगर अमेरिकी विशेषज्ञों की मानें तो चीन ने इन साइलोज पर पर्दा डालने की कोई कोशिश तक नहीं की है। सम्भवत: उसका स्वयं का इरादा दुनिया में इनके प्रदर्शन का है ताकि पूरी दुनिया जान सके कि चीन कितना ताकतवर है। यह प्रदर्शन कर आखिर चीन क्या संदेश देना चाहता है। अभी तक अमेरिका और रूस को ही सुपर पावर के रूप में स्वीकार किया जाता है। आर्थिक और तकनीकी क्षेत्र में चीन स्वयं को किसी से कम नहीं समझता लेकिन अभी यह स्वीकार्य नहीं है। उसका यह कदम सम्भवत: इसी लक्ष्य को लेकर है कि अमेरिका और रूस भी इस बात को मान सकें कि चीन किसी से कम नहीं है और बाकी देश भी उसके आगे नतमस्तक हों।

इसके परिणाम कितने भयावह हो सकते हैं, चीन का इससे कोई लेना-देना नहीं। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग संविधान में संशोधन कराकर स्वयंभू आजीवन राष्ट्रपति बन बैठे हैं। उनके कदमों पर उनके देश में कोई सवालिया निशान नहीं लगा सकता। उनका एकमात्र सर्वोपरि इरादा सुपर पावर बनने का है। उनकी इस कोशिश का परिणाम क्या होगा, इससे उन्हें कोई मतलब नहीं। यह ठीक है कि अमेरिका और रूस परमाणु हथियारों के मामले में स्वयं के साथ शेष दुनिया को भी संयमित करने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन अगर चीन इस तरह की बेजां हरकत करता है तो वे मूकदर्शक की तरह तो नहीं देखते रहेंगे। खासकर रूस जिसकी सीमाएं चीन से सटी हुई हैं, वह कुछ न कुछ तो जरूर जवाबी तैयारी करेगा। नतीजा क्या होगा, एक बार फिर परमाणु हथियार तैयार करने की होड़ शुरू होना। चीन ने जो मिसाइलें तैनात की हैं, वह सिर्फ प्रदर्शन के लिए नहीं हैं। जरूरत पड़ने पर वह इनका इस्तेमाल करेगा और इसके लिए जरूरत होगी परमाणु हथियारों की जो वह तेजी के साथ तैयार करेगा। अगर चीन परमाणु हथियार बनाने की मनमानी करेगा तो अन्य देश भी शक्ति संतुलन के लिए इस होड़ में शामिल होंगे ही। इन हालात में परमाणु अप्रसार संधि और न्यू स्टार्ट संधि के कोई मायने नहीं रह जायेंगे। दुनिया में एक बार फिर परमाणु हथियार निर्माण की होड़ शुरू हो जायेगी और महाविध्वंस का खतरा सामने आ जायेगा। चीन की जो नीतियां हैं, उनमें सबसे प्रमुख है विस्तारवाद। वह अपने देश का विस्तार करने के लिए हर हिकमत का इस्तेमाल करता आ रहा है। भारत के सीमावर्ती क्षेत्रों में उसकी गतिविधियां इसका प्रमाण हैं। हिन्द महासागर के साथ वह प्रशांत महासागर में भी स्वयं को स्थापित करना चाहता है। इसके लिए वह तरह-तरह की चालें चल रहा है। चीन की इन गतिविधियों को अमेरिका और रूस खामोश देखते रहें, ऐसा तो मुमकिन नहीं। अगर वे सक्रिय हुए तो नये सिरे से परमाणु युद्ध खतरा पैदा हो जायेगा। द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर हुए अमेरिकी अणु बम हमले का असर कितना भयानक था, सभी जानते हैं। अब जो परमाणु युद्ध होगा उसके नतीजे कल्पना से परे होंगे।

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