Thursday, November 21, 2024
Homeसाहित्यकहानीलघु कथा : मेरे साहिर...

लघु कथा : मेरे साहिर…

पवन जैन

सडक की तरफ खुलती बालकनी , डूबता सूरज , अदरक की चाय और कारवां पे चलते मेरे पसंदीदा गीत ..कहने को ये मेरे बेहद सुकून के पल होते हैं ..ऑफिस से घर लौटते लोग ,सभी को जल्द से जल्द घर पहुँचने की जल्दी ..जहाँ उनका कोई इन्तिज़ार कर रहा होता है .

अक्सर सोचती हूँ कि बालकनी में बैठ कर चाय की हल्की हल्की चुस्कियों के साथ वक़्त गुज़ारना क्यों अच्छा लगता है , क्या मैं भी किसी का इन्तिज़ार कर रही हूँ ..लेकिन किसका …??

क्या तुम्हारा ..? क्या सच में तुम्हारा इन्तिज़ार करती हूँ कि तुम एक दिन अनायास पीछे से आकर मेरी पलकों को अपनी हथेलियों से ढांप कर कहोगे “ बताओ तो कौन है’ और फिर तुम्हारे जन्मो जन्मो से चिरपरिचित स्पर्श से सिहर कर मैं बोल उठूंगी ‘ “ मुझे पता था , तुम एक दिन आओगे ..ज़रूर आओगे “

तुम्हारे ख्यालो में खोये खोये मुझे याद आती है अपनी कही वो बात , जब हम दोनों के मिलने पे कोई पाबन्दी नहीं थी और हम दोनों घंटो बात किया करते थे , “काश तुम्हे सिगरेट पीया करते और तुम्हरे जाने के बाद तुम्हारे सिगरेट के टुकडो को समेटा करती , उन्हें सुलगाती और पिया करती और महसूस करती कि वो सिर्फ सिगरेट के टुकड़े ही नहीं हैं बल्कि तुम्हारे होठ हैं जो मेरे होठो से मिल कर मुझे मदहोश कर रहे हैं” हाँ …मैं तुम्हारी अमृता ही तो हूँ .. मेरे साहिर ….!!!

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments