Sunday, September 8, 2024
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विधाता का तिलिस्म : संजीव और दिलीप कुमार ने अमर कर दिया

लेखक : दिलीप कुमार

संजीव कुमार बहुमुखी प्रतिभा के धनी अदाकार थे. जवानी में भी बुजुर्ग की भूमिका बड़ी सहजता से अदा कर दिया करते थे.  पहले थिएटर में अभिनय की बारीकियां सीखीं. बाद में हिन्दी सिनेमा में पदार्पण किया.आते हुए एक दो फ़िल्मों में उतने प्रभावी नहीं रहे. 1968 में आई फिल्म ‘शिकार’ से अपना सिक्का जमाया. संजीव कुमार इसके बाद रुके ही नहीं फ़िल्मों में एवं ज़िन्दगी में अनवरत दौड़ते रहे. संजीव कुमार जीते जी ही संतृप्त अवस्था को प्राप्त कर चुके थे. यह मुकाम बहुत कम ही कलाकारों को मिला होगा. बाद में हम हिंदुस्तानी, आओ प्यार करें, निशान, अली बाबा चालीस चोर, स्मगलर, राजा और रंक,पति-पत्नी, बादल, नौनिहाल आदि फ़िल्मों में दमदार अभिनय से खुद को स्थापित किया. फिर हरिभाई जेठालाल जरीवाला से  संजीव कुमार बन गए. हिन्दी सिनेमा के हरि भाई ही थे.

बात कर रहा हूं सुभाष घई निर्देशित ‘विधाता’ की 1982 में सुभाष घई ने विधाता फिल्म के लिए अभिनय सम्राट दिलीप कुमार, शम्मी कपूर, श्रीराम लागू, अमरीश पुरी, मदन पूरी, सुरेश ओबेरॉय, जैसे दिग्गजों की फौज खड़ी कर दी. फिल्म को दिलीप कुमार के इर्द-गिर्द गढ़ा गया था . यह तो तय ही होता था, कि फिल्म में अगर ग्रेट दिलीप कुमार जैसे उस्ताद हों तो दूसरे किसी किरदार को क्या तव्वजो मिलेगी? बिल्कुल नहीं! क्योंकि दिलीप कुमार जैसे अभिनय उस्तादों के सामने अपनी मौजूदगी दर्ज कराना हर किसी के बस की बात नहीं थी.

विधाता फिल्म में अबु बाबा का किरदार छोटा मगर अभिनय की गहराई से बहुत बड़ा ग्रेट संजीव कुमार के कद एवं उनकी शख्सियत को ध्यान में रखकर ही गढ़ा गया था.जवानी में ही त्रिशूल, कोशिश, ज़िन्दगी, मौसम, आँधी, शोले, आदि फ़िल्मों में उम्र से ज्यादा की दमदार भूमिकाएं निभा कर बॉलीवुड में सबसे ज्यादा बहुमुखी प्रतिभा के धनी अभिनेता माने जाने लगे थे. वहीँ सबसे मजबूत पिलर बन गए थे. वहीँ दिलीप कुमार भी अपनी दूसरी पारी शुरू कर चुके थे. विधाता फिल्म की परफॉरमेंस में दिलचस्पी रखने वालों को बस इंतज़ार था, कि दिलीप कुमार – संजीव कुमार कब आमने-सामने होते हैं, और एक्टिंग का कौन सा नया आयाम स्थापित होता है,य़ह देखने वाली बात होगी.

इससे पहले भी हरनाम सिंह रवैल, ने संजीव कुमार को दिलीप कुमार के सामने संघर्ष में अभिनय दिखाने के लिए निगेटिव शेड रोल ऑफर किया. यह रोल अकड़ू जानी राजकुमार मना कर चुके थे. अब कैरियर के शुरुआत में ही उनके सामने थे, ग्रेट अभिनय सम्राट दिलीप साहब, संजीव कुमार ने मौके को भुना लिया. शुरुआती दौर में ही उनके पास अपना अभिनय कौशल दिखाने का सुनहरा मौका था. इससे भी बड़ा चैलेंज था, कि दिलीप कुमार के साथ खुद की प्रतिभा के साथ न्याय कर पाएंगे! अंततः संजीव कुमार ने अपनी अभिनय क्षमता की ऐसी अमिट छाप छोड़ी की दर्शकों एवं समीक्षकों ने खूब सराहा. वहीँ एक ख़बर चलने लगी, जो एंटी दिलीप कुमार थे कि संजीव कुमार ने ग्रेट दिलीप साहब को असहज कर दिया. उस दौर में एक धारणा थी कि दिलीप कुमार अपने से बेहतर किसी को बर्दाश्त नहीं कर सकते, यह सब निरर्थक बातेँ थीं. हालाँकि वो अपना सुझाव दिया करते थे, तो उनका सुझाव न मानने की वज़ह नहीं हो सकती थीं क्यों कि दिलीप साहब से ज्यादा सिनेमैटिक समझ किसको हो सकती थी …. यह उनका कद था. फिर भी अगर ऐसा होता तो संजीव कुमार की दमदार सीन कटवाना उनके लिए बड़ी बात नहीं थी. अगर उन्होंने यह किया होता तो शायद संजीव कुमार को यह प्रतिभा निखारने का मौका न मिलता. ऐसा कुछ भी नहीं है, लेकिन यह दिलीप कुमार ही कह चुके थे, कि हिन्दी सिनेमा को सबसे बेह्तरीन अभिनेता मिल चुका है हरफ़नमौला संजीव कुमार…..

विधाता फिल्म में कुनाल (संजय दत्त) के पिता का पुलिस का फर्ज निभाते हुए इंतकाल हो जाता है. वहीँ उनकी माँ कुनाल को जन्म देकर दुनिया से रुख़सत कर जाती हैं. दिलीप कुमार (शमशेर सिंह) माफ़िया बन जाते हैं, लेकिन वो चाहते हैं कि उनका पोता कुनाल (संजय दत्त) अच्छी तरबियत हासिल करे. अचानक जंगल में उन्हें उसूलवादी अबु बाबा (संजीव कुमार) मिल जाते हैं. दिलीप कुमार कुनाल की जिम्मेदारी अधेड़ अबु बाबा को सौंपकर चले जाते हैं. कुनाल बड़ा हो जाता है, उसको पता चलता है कि मेरे दादा जी शमशेर सिंह (दिलीप कुमार) हैं, लेकिन वह अपना माई – बाप अबु बाबा को ही मानता है, हालांकि दादा के प्रति आदर का भाव है. कहानी में आगे एक मछुवारिन (पद्मिनी कोल्हापुरे) से प्रेम हो जाता है दादा दिलीप कुमार मना कर देते हैं कि यह शादी नहीं हो सकती….. चूंकि अबु बाबा (संजीव कुमार) उसूलों वाले हैं, वो संजय दत्त(कुनाल) का साथ देते हैं. अब लाज़िमी है कि दोनों में मतभेद होगा. यहीं दोनों शमशेर सिंह दिलीप कुमार अबु बाबा (संजीव कुमार) में एक ड्रामेटिक सीन होता है जहां दोनों की दमदार ऐक्टिंग देखने मिलती है.

दादा शमशेर सिंह कहते हैं, अबु बाबा आप अपनी हैसियत से बढ़कर बात कर रहे हैं, मैं आपको कुनाल की जिम्मेदारी की नौकरी से निकालता हूं…. वहीँ संजीव कुमार अबु बाबा जवाब देते हैं बहुत पैसा कमा लिया साहब जी जहां आप ज़िन्दगी के उसूल ही भूल गए दो प्यार करने वालों के प्यार को आप अपने रुतबे की भेट चढ़ा देंगे,संजीव कुमार फिर से दोहराते हैं अरे जाओ साहब आप क्या निकालोगे मुझे नौकरी से मैं ही आपको अपने मालिक की हैसियत से बेदखल करता हूँ. यह हिन्दी सिनेमा की सबसे दमदार अभिनय की बानगी है. सीन खत्म होते तक दिलीप कुमार (शमशेर सिंह) जा चुके थे, लेकिन यह दिलीप कुमार की हार एवं संजीव कुमार की जीत नहीं थी, यह केवल अभिनय का एक नायाब नमूना था.इस सीन के खत्म होते ही संजीव कुमार को बेशुमार तालियां मिलीं. तब तक हिन्दी सिनेमा में एक ख़बर फैल गई थी कि संजीव कुमार ने दिलीप कुमार को फीका कर दिया.

उस दौर में एक बात बहुत मानी जाती थी कि दिलीप कुमार अपनी हैसियत का फायदा उठाकर दूसरों के सीन कटवा देते थे, हालांकि इसमे कोई सच्चाई नहीं है. अगर अबु बाबा यानि संजीव कुमार की यह क्लिप दिलीप साहब कटवाना चाहते तो कटवा सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. ये सब अफवाहें ही थीं. सिर्फ गॉसिप, लेकिन यह क्लिप विधाता फिल्म की जान थी. अगर यह क्लिप नहीं होती तो शायद फिल्म उतनी तो प्रभावी नहीं होती….. अगर आप फिल्म देखेंगे तो आपको शम्मी कपूर अमरीश पुरी, मदन पूरी संजय दत्त, आदि सब दिखते ही नहीं है… फिल्म में कोई दिखता है तो केवल दिलीप कुमार एवं संजीव कुमार….

फिल्म के क्लाईमेक्स मेंअंत में शमशेर सिंह (दिलीप कुमार), शम्मी कपूर (गुरुबख्श) कुनाल (संजय दत्त) मिलकर अबु बाबा की मौत का बदला लेते हैं. वहीँ पूरी फिल्म में अबु बाबा एक आदर्श मिसाल के रूप में रहे ऐसा लगता था कि फिल्म में अबु बाबा (संजीव कुमार) के बिना क्या दिलीप कुमार का रोल प्रभावी होता?

यूँ तो फिल्म के केन्द्र में दिलीप साहब हैं… लेकिन दिलीप कुमार के होते हुए भी अगर उनके मुकाबले अपनी कड़ी मौजूदगी दर्ज कराने की कला की गहराई केवल संजीव कुमार में ही थी. कई बार दिलीप साहब ने भी कहा था कि जो रोल मैं भी नहीं कर सकता वो रोल बड़ी सहजता से संजीव कुमार कर सकता है. विधाता फिल्म भी संजीव कुमार की बेमिसाल अदायगी का एक नमूना है…. आज भी अगर अभिनय की बारीकियों के लिहाज से देखा जाए तो ‘विधाता’ फिल्म का अभिनय जोड़ी दिलीप साहब – संजीव कुमार के रूप में पूरा का पूरा सिलेबस है. सिनेमेटोग्राफी सीखने वालों के लिए विधाता फिल्म एक पूरा पीएचडी है. वहीँ सुभाष घई जैसे निर्देशक ही मेढक तौल सकते हैं, क्यों कि एक ही फिल्म में दिलीप कुमार, संजीव कुमार, शम्मी कपूर, अमरीश पुरी, मदन पूरी आदि की फौज के साथ न्याय करना आसान नहीं है. फिल्म को आज भी देखा जा सकता है उससे भी ज्यादा सीखा जा सकता है. ‘विधाता’ फिल्म की यादों के साथ सिनेमा का सफ़र जारी रहेगा…..

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