Monday, September 16, 2024
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“सिनेमा की अनोखी दास्ताँ सुचित्रा सेन”

लेखक : दिलीप कुमार

हिन्दी सिनेमा की दुनिया जितनी विचित्र है, सिनेमा की दुनिया के लोग भी थोड़ा अज़ीब ही है. हिन्दी सिनेमा में एक ऐसी ही अदाकारा सुचित्रा सेन हुईं हैं, जो अपनी अनोखी लाइफस्टाइल के लिए याद की जाती हैं. सुचित्रा सेन के बिना हिन्दी सिनेमा की दुनिया कभी पूरी ही नहीं हो सकती. फिल्मों में उनकी खूबसूरती भारतीय दर्शकों ने हमेशा देखा महसूस किया.मगर पर्दे के बाहर सुचित्रा से मुलाकात का कोई किस्सा, शायद ही किसी के पास मिले. सुचित्रा पर्दे से दूर हुईं तो यूं कि उनके दुनिया छोड़ जाने तक तक लोग उन्हें दोबारा नहीं देख सके. यह किसी दूसरे का निर्णय नहीं था, बल्कि यह उनका खुद का लिया गया निर्णय निजता के लिए था. वो अपनी निजता के साथ दुनिया छोड़ गईं थीं. अंतर्मुखी जीवन ही उनकी पहिचान था.कॅरियर के पीक पर होते हुए भी सुचित्रा सेन ने सिनेमा की दुनिया से अलविदा कह कर सभी को चौंका दिया था. सिल्वर स्क्रीन से गायब होने के बाद से फिर दिखीं ही नहीं. यह सिलसिला एक दो साल का नहीं था, लगभग पैंतीस साल तक  सुचित्रा सेन ने अपने आपको कोलकाता के बेलीगंज सरकुलर रोड के चार अपार्टमेंट्स में से एक में नजरबंद कर लिया था. किसी को पता भी नहीं था, कि सुचित्रा सेन की दिनचर्या कैसी है.

जीवन काल में इतने सालों तक सुचित्रा सेन को सार्वजनिक रूप से घर बाहर एक दो बार ही देखा गया है. पहली बार अपने घर से निकलीं जब  24 जुलाई 1980 को बांग्ला एवं  हिन्दी फिल्मों के महानायक उत्तम कुमार हो गया था. उत्तम कुमार के साथ सुचित्रा सेन की नायाब जोड़ी बनी थी. सुचित्रा सेन ने अपना अधिकांश काम उत्तम कुमार के साथ ही किया था. सुचित्रा सेन अपनी कार से उतरकर वे सीधे उत्तम कुमार के शव के नजदीक आकर मौन खड़ी रहीं, फ़िर उनके शव पर फूलों की एक माला शव पर समर्पित कर चुपचाप कार में बैठ वापस आ गईं, किसी से कोई बात नहीं हुई थी. दूसरी बार कलकत्ता में 1982 में चल रहे फिल्मोत्सव के दौरान एक फिल्म देखने आई थीं, तब दर्शकों-प्रशंसकों ने परिचित सनग्लास पहने सुचित्रा की झलक भर देखी थी. और वो फिर से अपने घर में जाकर नजरबंद हो गईं थीं. इन्हीं वजहों से सुचित्रा की तुलना हॉलीवुड की तीस-चालीस के दशक की सर्वाधिक लोकप्रिय तारिका रही ग्रेटा गार्बो से की जाती है. ग्रेटा ने फिल्मों से संन्यास लेने के बाद न्यूयॉर्क के एक मल्टीस्टोरी बिल्डिंग का एक पूरा माला खरीद लिया था. एक फ्लैट में वे रहती थीं. शेष में उन्होंने ताले लगवाकर बंद कर दिया था. उनके माले पर लिफ्ट नहीं ठहरती थी क्योंकि उन्होंने अपनी मंजिल का बटन भी बंद करा दिया था. पैंतीस वर्ष तक ग्रेटा गार्बो ने ग्लैमर से दूर गुमनामी के अंधेरे की जिंदगी अकेले बिताई थी. आम तौर पर ऐसी शख्सियत समझ नहीं आतीं, एकात्मकता भी एक प्रकार से बदलते हुए स्वभाव की उपज होता है.

1978 में फिल्मों से संन्यास लेने के बाद सुचित्रा सेन ग्रेटा गार्बो की तरह ऐसा ही जीवन जीती थीं. भारत सरकार ने सुचित्रा सेन को सिनेमा में उनके योगदान के लिए दादा साहेब फाल्क अवॉर्ड के लिए उनसे सम्पर्क किया गया था. सुचित्रा ने प्रस्ताव  ठुकरा दिया था. सुचित्रा सेन ने अवॉर्ड लेने से मना करने का कारण बताया घर से बाहर नहीं निकल सकती . भारतीय सिनेमा के इतिहास में सुचित्रा सेन एक नाम न रहकर अब एक अनोखा किस्सा बन गईं थीं. महान ऐक्ट्रिस को जब अवॉर्ड के लिए खास आमंत्रण भेजा गया, कि आपको खुद अवॉर्ड लेने आना होगा. तब सूचना एवं प्रसारण मंत्री रहे प्रिय रंजन दासमुंशी की दिली इच्छा थी कि एक्ट्रेस सुचित्रा सेन अपना अवॉर्ड लेने खुद आएं. मगर एक्ट्रेस ने भारत के सबसे प्रतिष्ठित सिनेमा सम्मान को छोड़कर, जनता की नजरों से दूर, अपने एकांत में रहना चुना. कहा जाता है, कि यह अवॉर्ड पाने के बाद किसी भी सिनेमाई कलाकार की कोई इच्छा नहीं बांकी रहती, लेकिन एकात्मकता की चादर ओढ़े सुचित्रा अपनी दुनिया में खुश थीं. सुचित्रा सेन की ‘बायोपिक’ बतौर सीरियल बनाया जा रहा था तो सुचित्रा सेन की आपत्ति पर उसका काम रोक दिया गया था. उनका बस चलता तो वह अपनी फिल्मों की टेलीकास्टिंग भी रुकवा देतीं. यह भी उनकी अपनी पर्सनालिटी थी, जो उनको बहुत अनोखा बनाती है.

सुचित्रा सेन  6 अप्रैल 1931 अविभाजित बांग्लादेश में जन्मी थीं . सुचित्रा का असली नाम रोमा सेन था. महज 15 साल की उम्र में सुचित्रा ने उद्योगपति दिबानाथ सेन से शादी कर ली. शादी के बाद ही उन्होंने अपने पति के प्रोत्साहन से अपने सिनेमाई सफ़र की शुरुआत की थी. सुचित्रा सेन के ऐक्ट्रिस बनने में सबसे बड़ा योगदान उनके पति और ससुर का था. उनके सपने को पूरा करने में दोनों ने उनका काफी साथ दिया, जिसके बाद उन्होंने ‘चौटोर’ नाम की फिल्म से एक्टिंग की दुनिया में कदम रखा. इस फिल्म के बाद सुचित्रा ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. इस फिल्म में वह अभिनेता उत्तम कुमार के साथ नजर आई थीं. दर्शकों को ये जोड़ी इतनी पसंद आई कि दोनों ने बाद में कई फिल्मों में साथ काम किया. सुचित्रा की खास बात यह थी कि वह फिल्मों का चुनाव अपने हिसाब से करती थीं. वह किरदार को समझने के बाद ही फिल्मों में काम करने का फैसला करती थीं. यही वजह है कि ‘आंधी’ से लेकर ‘देवदास’ तक एक्ट्रेस ने अपनी एक्टिंग से लोगों के दिलों में खास जगह बनाई. सुचित्रा ने उत्तम कुमार के साथ करीब 20 साल तक काम किया. उन्होंने अपने करियर में 61 फिल्मों में काम किया, जिनमें से 30 फिल्में उत्तम कुमार के साथ थीं.

हिंदी सिनेमा में सुचित्रा सेन का पदार्पण महान विमल रॉय की कल्ट फिल्म देवदास से हुआ था. हांलाकि देवदास में पारो के रोल के लिये बिमल राय की पहली पसंद मीना कुमारी थीं लेकिन वे दूसरी फिल्मों में बेहद व्यस्त थीं. फिर बिमल रॉय मधुबाला को कास्ट करना चाहते थे, लेकिन तब तक दिलीप और मधुबाला के रिश्त बेहद तनावपूर्ण हो चुके थे. आखिरकार मधुबाला जैसी खूबसूरती और मीना कुमारी जैसी संजीदा अभिनय की तलाश सुचित्रा सेन पर खत्म हुई. साल 1955 में रिलीज हुई देवदास में सुचित्रा सेन ने पारो की भूमिका से फिल्म में अपनी भूमिका से खुद को जीवंत कर दिया था.

सुचित्रा सेन हिन्दी सिनेमा में अपने योगदान के साथ अपने अंदाज़ के लिए जानी जाती है. इस बात को समझा जा सकता है. एक बार फिल्म निर्माता और निर्देशक महान सत्यजीत रे देवी चौधरानी के जीवन पर आधारित एक फिल्म बनाना चाहते थे, जिसमें वे मुख्य अभिनेत्री का किरदार सुचित्रा सेन को ऑफर किया. उस समय सुचित्रा फिल्मों में बहुत व्यस्त थीं. सत्यजीत रे की खूबी थी, कि उनकी फिल्म में काम करने वाले सितारों के लिए पाबन्दी रहती थी कि जब तक फिल्म पूरी न हो जाए तब तक कोई दूसरी फिल्म में काम नहीं करेगा, क्योंकि कितना कोशिश करें, किरदार मिक्स हो जाते हैं. अतः सुचित्रा सेन ने मना कर दिया था. सत्यजीत रे की भी जिद थी कि अगर वे फिल्म बनाएंगे तो सुचित्रा सेन के साथ वरना नहीं बनाएंगे. अंत में वह फिल्म बनी ही नहीं. सुचित्रा सेन ने जब महान सत्यजीत रे को मना कर दिया था, उस दौर में कोई भी उनके साथ काम करते हुए खुद को धन्य समझते थे. कुलमिलाकर सुचित्रा सेन का व्यक्तित्व अनोखा है.

रचनात्मक लोग ज्यादा समझ नहीं आते, वहीँ यही बात हिन्दी सिनेमा की अदाकारा सुचित्रा सेन का जिक्र आता है तो एक धारणा यह है कि वो बहुत अंतर्मुखी रही हैं. जिस दौर में बड़ी से बड़ी ऐक्ट्रिस ग्रेट शो मैन राज कपूर साहब के साथ स्क्रीन साझा करने का ख्वाब रखती थीं, वहीँ सुचित्रा सेन ने राज कपूर साहब को मना कर दिया था, इससे उनकी शख्सियत को समझा जा सकता है, कि बहुत ज्यादा महत्वकांक्षी भी नहीं थीं. हुआ यह कि राजकपूर साहब एक बार सुचित्रा सेन से उनके कोलकाता स्थित आवास पर मिलने पहुंचे. आरके बैनर के तहत एक अपनी फिल्म में एक रोल के लिए प्रस्ताव लेकर आए थे. सुचित्रा सेन को राज कपूर की फिल्म पसंद नहीं आई. फिल्म की स्क्रिप्ट पसंद न होने के बाद मिलने का अंदाज़ भी पसन्द नहीं आया. दरअसल हुआ यह कि राज कपूर साहब ने इम्प्रेस करने के लिए अपने हाथ में एक गुलदस्ता लेकर जमीन पर घुटने के बल बैठ कर सुचित्रा सेन को भूमिका की पेशकश करने लगे. इस तरह एक महिला के सामने एक पुरुष को क्यों झुकना पड़ता है? सुचित्रा सेन ने राज कपूर के प्रस्ताव को विनम्रता से मना कर दिया था.

1975 की फ़िल्म ‘आंधी’ में सुचित्रा का रोल पीएम इंदिरा गांधी से प्रेरित बताया गया था. सुचित्रा ने इतना जबरदस्त अभिनय किया था. आज के दौर में ऐसी फ़िल्में एवं ऐसे नायक – नायिकाओं का अकाल पड़ गया है. इस कालजयी फिल्म को आपातकाल के भेंट चढ़ गई थी. आँधी को बैन कर दिया गया था, आपातकाल हटने के बाद जब आँधी रिलीज हुई, तो उसे हर वर्ग के दर्शकों का भरपूर समर्थन मिला. इस फिल्म के लिए सुचित्रा हमेशा याद की जाती हैं. सुचित्रा की हिन्दी के उच्चारण ठीक नहीं थे. यूनिट वालों ने गुलजार से संवाद डब करने के लिए कहा गुलजार ने कहा सु”चित्रा सेन जो हैं ठीक है, और जैसे उनके उच्चारण हैं, उसके साथ छेड़छाड़ करना एक महान अभिनेत्री के साथ नाइंसाफी होगी. इस फिल्म को बनने के पीछे गुलजार की महान रिसर्च उनका लेखन, फिल्म का गीत – संगीत, फिल्म की कहानी फिल्म ने सफ़लता का आसमान छू लिया था. गुलजार साहब सुचित्रा सेन को सर कहकर संबोधित करते थे इसके पीछे सुचित्रा सेन की शालीन व्यक्तित्व  कारण है दरअसल आँधी फिल्म की शूटिंग के समय सुचित्रा फ़िल्मकार गुलजार को सर कहकर संबोधित करती थीं, गुलजार से इतनी सीनियर सुचित्रा सेन सर कहकर पुकारें उन्हें असहजता होती, तो उन्होंने कहा ‘आप मुझे सर कहकर संबोधित करेंगी तो मैं और पूरी यूनिट आपको सर कहकर ही पुकारेंगे, सुचित्रा हंसकर बोलीं ठीक है! अन्तर्मुखी सुचित्रा का यह अंदाज भी अपने आप में एक अजूबा है.

सुचित्रा सेन ने बहुत कुछ हासिल किया, अपने यादगार अभिनय से हमेशा याद रहेंगी. फिर भी उनके एकाकीपने का सम्मान करना चाहिए. उन्होंने जितना भी सिनेमा में अपना योगदान दिया काफी है, आज भी उनकी फ़िल्मों के जरिए हम उनको याद करते हैं. भले ही दादा साहब फाल्के सम्मान लेने से मना कर दिया हो, मना करने वाले लोग भी बिरले होते हैं. सुचित्रा सेन कभी मर नहीं सकतीं, वो किसी भी सम्मान से भी ज्यादा थीं. कोई उनकी तिलिस्मी दुनिया आज भी आज भी बरकरार है. महान अदाकारा को मेरा सलाम..

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