–आर्यावर्ती सरोज “आर्या”
लखनऊ
स्मरण हो उठती हैं
पिता की वो त्याग भावना,
मेरे लिए, वाहन प्रबंध
और,स्वयं बस से जाना,
स्कूटर, मोटरसाइकिल से
विद्यालय छोड़ कर आना,
मेरी सभी इच्छाएं पूर्ण करना
माथे पर सिकन तक न लाना,
संघर्षों को स्वयं ही साधा,
मुख पर ले प्रभामंडल की आभा,
सुख -सुविधाओं का प्रबंध करना
आचार- व्यवहार में पूर्ण रहना,
गम्भीर व्यक्तित्व और एकनिष्ठ कर्तव्य,
मन में ममत्व, सभी से अपनत्व,
भीतर से सहज -सरल और
बाहर से कठोर बन जाना,
पूरे घर की जिम्मेदारियों का
बोझ उठाना…..
आसान नहीं है पिता बन जाना।