दिलीप कुमार
स्तंभकार
देव साहब, मधुबाला, एवं नलिनी जयवंत अभिनीत, राज खोसला के निर्देशन में देव साहब के नव केतन बैनर तले बनी फिल्म ‘काला पानी’ एक ऐसे व्यक्ति कि कहानी है, जो अपने निर्दोष पिता के उम्रकैद की सजा को गलत सिद्ध करना चाहता है। राज खोसला देव साहब की खोज थे। इनको पहला ब्रेक देव साहब ने ही दिया था। बाद में ये गुरुदत्त साहब के अस्सिटेंट के रूप में कार्य करते थे। देव साहब प्रतिभा पहचान लेने की पारखी नज़र के मालिक थे, उन्होंने बड़े – बड़े निर्देशकों के साथ कभी काम नहीं किया. उन्होंने जिसके साथ काम किया वो बड़े बन गए. गुरुदत्त साहब, विजय आनन्द, राज खोसला, आदि- आदि !
पचास के दशक में, निर्देशक राज खोसला को सीआईडी , वो कौन थी जैसी फिल्मों के साथ हिंदी सिनेमा में सस्पेंस थ्रिलर के अग्रदूत के रूप में जाना जाने लगा. मेरा साया, दूसरों के बीच में खोसला ने सस्पेंस, थ्रिलर बनाने की अपनी ट्रेडमार्क शैली की स्थापना की जिसने दर्शकों को अपना मुरीद बना लिया.
देव साहब मधुबाला और नलिनी जयवंत अभिनीत खोसला की 1958 की फिल्म काला पानी, उनकी सस्पेंस थ्रिलर की सूची में प्रमुख फिल्म है. जहां नायक खलनायक से लड़ने के लिए अपना घर-शहर छोड़ कर दूसरे शहर हैदराबाद के लिए निकल पड़ता है. बिना यह जाने कि खलनायक कौन हैं. सस्पेंस, थ्रिल से भरपूर फिल्म घूम जाती है, जैसे ही ‘आशा’ यानि मधुबाला की एंट्री होती है. चूंकि मधुबाला अपने निजी जीवन में भी बहुत खुशमिज़ाज महिला थीं. अधिकांश वो जिन्दादिली के रोल करती थीं,और पर्दे पर देव साहब को उनके साथ देखना अपने आप में आनन्द का चरम पर होना होता है. देव साहब रोमांस, के बादशाह कहे जाते थे. वहीँ मधुबाला रोमांस क्वीन कहीं जाती थीं. जब दोनों पर्दे पर आएंगे तो रोमांस, श्रंगार की पराकाष्ठा होती है. वास्तव में मधुबाला की जोड़ी पर्दे पर सबसे ज्यादा देव साहब के साथ पसंद की गई. देव साहब के साथ मधुबाला जी की शोखिय़ाँ एवं अल्हडपना अपने शीर्ष पर होता है. देव साहब को अगर आप दो रूपों में देखना चाहते हैं, तो उनको नूतन के साथ पर्दे पर देखिए, वहीँ मधुबाला के साथ पर्दे पर देखिए, देव साहब आपको दो रूपों में दिखेंगे. केंद्र में रोमांस ही होगा. कहने का मतलब है कि नूतन के नखरे देव साहब उठाते हैं, वहीँ देव साहब के नखरे मधुबाला उठाती हैं. ‘काला पानी’ फिल्म में मधुबाला देव साहब के खूब नखरे उठाती हैं… गीत तो याद ही होगा ‘अच्छा जी मैं हारी चलो मान जाओ न’ इस गीत में मधुबाला जी देव साहब को मनाती हुईं नखरे उठाते हुए दिखेंगी मगर प्यार से…..
कालजयी फिल्म ‘काला पानी’ की कहानी एक बूढ़ी औरत की असहाय अभिव्यक्ति के साथ खुलती है. जिसका सामना उसके बेटे करण
(देव साहब) से होता है, करण (देव साहब) जिसे उसके पिता की मृत्यु के बारे में बताया गया था, अब करण को पता चलता है कि उसके पिता पर 15 साल पहले हत्या का आरोप लगाया गया था, और तब से वह हैदराबाद की जेल में ‘कालापानी’ की सज़ा काट रहे हैं.
यहाँ ‘काला पानी’ शब्द के प्रयोग से पता चलता है कि उनके पिता एकांत कारावास में काल कोठरी में निर्दोष होते हुए भी कैद हैं. वह अपने पिता को देखने के लिए हैदराबाद चला जाता है. पिता करण के प्रति दयालु नहीं है, लेकिन बताता है कि उस पर गलत आरोप लगाया गया है,इसलिए अब यह करण पर निर्भर है कि वह अपने पिता का नाम पर लगा कलंक को साफ करे. काला पानी एक व्होडुनिट (जासूसी) के रूप में शुरू होती है, क्योंकि करण अपने पिता की बेगुनाही साबित करने के लिए सबूत इकट्ठा करने की कोशिश करता है. हालाँकि, फिल्म में कुछ ही मिनटों में, कहानी का प्रेम त्रिकोण पहलू हावी हो जाता है. फिल्म करण को एक रूढ़िवादी नायक के रूप में पेश करती है. वह न्याय के लिए लड़ रहा है, लेकिन एक ही समय में दो महिलाओं के साथ रोमांस भी कर रहा है. वैसे भी देव साहब को रोमांस करते देखना अपना अलग ही आनन्द है. वह जिस पहली महिला से मिलते हैं, वह आशा – (मधुबाला) एक पत्रकार हैं जो करण (देव साहब) की मदद करती हैं. जिसकी मौसी भी गेस्ट हाउस चलाती है. जहाँ वह रह रही है. वहीँ देव साहब गेस्ट हाउस में रहने के लिए पहुंच जाते हैं. आशा – करण
(देवानंद – मधुबाला) का रोमांस शुरू होता है. रूठना मनाना आदि चरम पर होता है, वहीँ कारण (देव साहब) के पास अपने रूम का किराया चुकाने के पैसे नहीं होते हर बार आशा (मधुबाला) अपने पैसे दे देती हैं कि मौसी को पैसे दे दो जिससे किराया चुक जाएगा. वह दिल को छू लेने वाला होता है, कि देव साहब वो पैसे ले लेते हैं. इगो आड़े नहीं आता, आता भी क्यों रोमांस कैसे आगे बढ़ता.
आशा का पेशा कथानक की प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. जो उस समय काफी दुर्लभ था. करण (देव साहब) जिस दूसरी महिला से मिलता है ,वह किशोरी (नलिनी जयवंत) है. एक महिला जो करण के पिता को सलाखों के पीछे डालने में प्रमुख गवाहों में से एक थी. काला पानी में गीत और नृत्य का पूरा कंप्लीट पैकेज शामिल है. जो कथानक में बहुत सारे ट्विस्ट द्वारा समर्थित है. वास्तव में, इतने सारे ट्विस्ट हैं, कि आपको कभी-कभी आश्चर्य होता है कि क्या अब्बास-मस्तान किसी तरह राज खोसला के कामों से प्रेरित थे. 1950 के दशक में देव साहब का विपुल आकर्षण अपने चरम पर था. इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है, कि जब वह फिल्म में दो महिलाओं के साथ रोमांस कर रहे होते हैं, तब भी आप उन्हें धोखेबाज के रूप में नहीं देखते हैं. यही उनका चार्म था. जो अभी तक कायम है.
मधुबाला, जो उन दिनों अक्सर हास्य भूमिकाओं में दिखाई देती थीं, एक हिस्सा है जो उन्हें अपने अभिनय मूल का बेहतरीन प्रदर्शन दिखता है. उनका आगे की सोच वाला चरित्र आपको आश्चर्यचकित करता है, कि अधिक फिल्म निर्माताओं में पेशेवर महिलाएं उनके प्रमुख पात्रों के रूप में क्यों नहीं थीं. मजरूह सुल्तानपुरी के गीतों के साथ “अच्छा जी मैं हरी चलो मान जाओ ना” और “हम बेखुदी में तुमको” जैसे गीतों के साथ एसडी बर्मन (बर्मन दादा) का संगीत इसे एक संगीत पैकेज बनाता है. बनाता है.
यूँ तो कालापानी अपने सस्पेंस, थ्रिलर, अंदाज़ के लिए जानी जाती है, उसमे अहम योगदान फिल्म यादगार गीतों से सुसज्जित है. नज़र लागी राजा तोरे बंगले पर ‘ यह गीत इतना लोकप्रिय हुआ कि आम जनमानस की जीवन शैली का हिस्सा बन गया आज भी कई संदर्भ में गीत याद किया जाता है. वहीँ’ अच्छा जी मैं हारी चलो मान जाओ न’ गीत देव साहब – मधुबाला का गीत है यह कहना काफी नहीं है. आज भी प्रेमिकाएं पत्नी अपने महबूब को मनाने के लिए यह गीत गाती हुईं आम बात है.
आज भी ‘कालापानी’ फिल्म आपको पूरी तरह से आश्चर्यचकित कर देगी,और कुछ जगहों पर, यह आपका ध्यान बनाए रखने के लिए कहानी आपको बांधे रखती है. इसका मुख्य कारण यह है कि हिंदी सिनेमा के दर्शकों को सस्पेंस, थ्रिलर्स के साथ युगों से मिश्रित किया गया है. काला पानी अभी भी एक लोकप्रिय कालजयी फिल्म के रूप में जानी जाती है. काला पानी ‘ की शूटिंग चल रही थी तब ख़बर आयी कि इण्डोनेशिया के तत्कालीन राष्ट्रपति ‘सुकर्णो’ शूटिंग देखने आने वाले हैं. देव साहब, राज खोसला सहित यूनिट के सारे लोग उनके स्वागत की तैयारी में जुट गये. उस दिन ‘ हम बेख़ुदी में तुमको पुकारे चले गये ‘ गीत की शूटिंग चल रही थी. देव साहब और नलिनी जयवंत ने गीत की रिहर्सल कर अपने को तैयार कर लिया. लगभग दो घण्टे की प्रतीक्षा के बाद जब राष्ट्रपति सुकर्णो नहीं पधारे तो गीत की शूटिंग पूरी कर ली गयी. जैसे ही अंतिम शॉट पूरा हुआ,हुआ ख़बर आई कि ‘सुकर्णो’ साहब अपने दल बल सहित स्टूडियो पहुँच गये हैं. सेट पर पहुँचते ही सबने उनका स्वागत किया. फिर उन्हें शूटिंग दिखाने के लिये वह गीत जिसका फ़िल्मांकन पूरा हो चुका था , फिर से फ़िल्माने का नाटक किया गया. राज खोसला के लाइट , कैमरा , एक्शन के साथ देव आनन्द व नलिनी जयवंत ने गीत पर फिर अभिनय किया. ‘ कट’ और शॉट ओके होते ही देव साहब फिर से ‘सुकर्णो’साहब के पास पहुँचे. राष्ट्रपति ने खुले दिल से उनके अभिनय की तारीफ़ की. देव साहब सहित यूनिट के सारे सदस्यों ने इस ड्रामे का मन ही मन ख़ूब आनन्द लिया. देव साहब अपनी जिंदादिली के साथ ड्रामे, सहजता, गंभीरता में भी उस्ताद थे. ‘कालापानी’ में उनका यादगार अभिनय मील का पत्थर है, सस्पेंस, थ्रिलर, के साथ रोमांस केंद्र में होना अपने आप में देव साहब को एक मुकम्मल नायक बनाती है. यह रोल हर किसी के बस की बात नहीं है.