Sunday, September 8, 2024
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देव- दिलीप और राज की त्रिमूर्ति ने बनाया बालीवुड का रास्ता

लेखक : दिलीप कुमार

ग्रेट शोमैन राज कपूर साहब करिश्माई फ़िल्मकार, अदाकार थे. राज कपूर साहब सिनेमैटोग्राफी में जादूगर थे. सिनेमाई समझ ऐसी की सीन शूट करते हुए कैमरा पर्सन राजसाहब से पूछता कि साहब कैमरे का एंगल ठीक है. मासूमियत भरी अदायगी यथार्थ भाव के बादशाह राज कपूर साहब का न भोलापन जब पर्दे पर उकेरते थे, तो दर्शकों के मन में भावनाओं का निर्झर ज्वार उमड़ता था. सिने प्रेमी राज कपूर साहब की अदायगी के साथ बह पड़ते थे. राज कपूर का नाम जेहन में आता है, तो सबसे पहले श्री 420, मेरा नाम जोकर, आवारा, बरसात, अंदाज़, तीसरी कसम, जागते रहो, संगम आदि फ़िल्में जेहन में चलने लगती है. राज कपूर साहब जैसे लोग कभी मरते नहीं है, वो अपनी ऐसी दुनिया रच जाते हैं, कि उसमें आने वाली पीढ़ियों के लिए सीखने के लिए वो सब कुछ है, जो आज के दौर में आपार संसाधनो के बीच भी नदारद है..

यूँ तो राज कपूर साहब के लिए लिखता ही रहता हूं. सोचा हिन्दी सिनेमा की सुपरहिट त्रिमूर्ति देव – राज – दिलीप के आपसी संबंधों पर बहुत कुछ मसालेदार किस्से परोसे जाते हैं, तब आज राज कपूर साहब की पुण्यतिथि, पर उनके बारे में आज विमर्श किया जाए. तीनों में कड़ी परिस्पर्धा होते हुए भी तीनो महान अदाकार एक दूसरे से अपनी बातेँ शेयर करते थे. त्रिमूर्ति भले ही जश्न के मौके पर साथ न दिखते रहे हों, लेकिन दुख, तकलीफ़ में दूसरे दो तीसरे की तकलीफ़ को बांट लेते थे. जिसकी मिसाल आज कल देखने पर नहीं मिलती ये तीनों जब भी मिलते तो खूब बाते करते कुछ बातें उनकी फ़िल्मों की होती तो कुछ उनकी निज़ी ज़िन्दगी पर भी बातेँ करते थे.

फिल्म संगम में संगम में राज कपूर अपने साथ नरगिस और दिलीप कुमार को कास्ट करके ‘घरौंदा’ नामक फिल्म बनाना चाहते थे. बात नही बनी. दिलीप कुमार एवं राजकपूर साल 1949 में महबूब खान की फिल्म अंदाज़ में साथ में काम कर चुके थे. फिल्म दिलीप कुमार के इर्द – गिर्द थी, लेकिन पूरी फिल्म में दिलीप साहब से ज्यादा राजकपूर साहब को ज्यादा तवज्जो मिली थी, जिससे दिलीप कुमार निराश हो गए थे. ऐसे किस्से गढ़े जाते हैं, जिनमे कोई भी सच्चाई नहीं है. हालांकि सच्चाई है कि दिलीप साहब के इर्द – गिर्द फिल्म थी, लेकिन दोनों की यादगार ऐक्टिंग थी.  राज कपूर साहब देव साहब दिलीप साहब दोनों आजीवन मित्र रहे हैं.

राजकपूर साहब एवं दिलीप साहब की मित्रता तमाम मूल्यों को समेटे हुए थी. दिलीप साहब ने एक बार इंटरव्यू में कहा “मेरा नाम जोकर की असफ़लता के बाद राज कपूर पूरी तरह से टूट गए थे. उन्होंने मुझे फोन करते हुए बोले “आपसे मिलना चाहता हूं”, अपने मित्र के लिए मैंने ज्यादा समय न खर्च करते हुए खुद ही अगली सुबह उनके घर पहुंच गया. ‘मेरा नाम जोकर’ फिल्म राज जी ने बड़ी ही शिद्दत से बनाया था. उन्होंने इस फिल्म में पूरी हैसियत खर्च कर दिया था, दुर्भाग्यपूर्ण फिल्म नहीं चली, क्योंकि अपने समय से बहुत पहले की फिल्म थी. यह फिल्म केवल राजकपूर साहब ही बना सकते थे. मैंने पूछा “मित्र आप ने मुझे दुःखी मन से क्यों याद किया”. राज कपूर साहब ने अपना मंतव्य प्रकट किया, कहा ” दिलीप साहब इस फिल्म से मुझे बहुत उम्मीदें थीं, चूंकि फिल्म में कोई कमी नहीं थी, लेकिन इस फिल्म की असफ़लता ने मुझे कंगाल कर दिया’. मैं इतने मजबूत शख्सियत को दुखी देखकर टूटने ही वाला था. राज कपूर साहब ने कहा “मुझे कुछ मानसिक रूप से परेशानी महसूस हो रही है” तब दिलीप साहब ने कहा कि आपको अपना इलाज करवाना चाहिए, मानसिक तनाव की समस्या कोई बड़ी बात नहीं है, शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग है, वो भी थक जाता है, इसलिए आप पहले ईलाज कराएं”. फिर भी राज कपूर साहब नहीं माने…. दिलीप साहब इस बात को समझे की शायद त्रिमूर्ति के एक और अहम कड़ी देव साहब को बुलाया जाए तब हो सकता है राज कपूर मान जाएं. दिलीप साहब ने देव साहब को फोन से आमंत्रित किया तीनों राज कपूर साहब के यहां बैठकी करेंगे, बड़े दिन हुए. अगले दिन देव साहब एवं दिलीप साहब दोनों ने राज कपूर साहब को समझाया कि यह आम सी बात है, कोई कमज़ोरी नहीं है, हालांकि दोनों ने राज कपूर साहब से कहा “इस बात को पूरी तरह से गुप्त रखा जाएगा, कि राजकपूर साहब मनोचिकित्सा करा रहे हैं, क्योंकि अगर यह खबर लीक हुई तो आपके कैरियर को नुकसान पहुंचेगा. इस वायदे के साथ ही राजकपूर साहब विदेश चले गए, इलाज के बाद वापस लौटे, फिर से उन्होंने बेह्तरीन फ़िल्मों का निर्माण किया….. बेमतलब की गॉसिप चलती रहती है कि तीनों परस्पर एक दूसरे के प्रतिस्पर्धी रहे हैं, स्पर्धा होने का मतलब यह नहीं था कि तीनों में दुश्मनी थी, बल्कि इस सकारात्मक पहलू को देखा जाए तो पता चलता है कि देव – राज – दिलीप की त्रिमूर्ति एक दूसरे को कितना मानते थे.

राजकपूर साहब आर.के स्टूडियो में अपना मेकअप रूम किसी और को इस्तेमाल नहीं करने देते थे, लेकिन सिर्फ देव साहब एवं दिलीप साहब को ही इज़ाज़त थी, कि राज साहब के  मेकअप रूम को इस्तेमाल कर सकते थे. राजकपूर के आर.के स्टूडियो में देव साहब की कई फ़िल्मों की शूटिंग हुई है, लेकिन देव साहब एवं राजकपूर साहब दोनों ने एक साथ स्क्रीन साझा नहीं किया. क्या पता दोनों के कद को ध्यान में रखते हुए हो सकता है, कोई स्क्रिप्ट ही न लिखी गई हो. नरगिस जी के साथ राज कपूर साहब के प्रेम प्रसंग के बीच देव साहब ने नरगिस के साथ कभी स्क्रीन साझा नहीं किया, क्योंकि भले फिल्म में ही सही, देव साहब राज कपूर की प्रेमिका को अपनी प्रेमिका कहना पसंद नहीं करते थे, ऐसी मित्रता दुर्लभ होती है.

राज कपूर साहब एवं देव साहब को हमेशा से ही दिलीप साहब का शादी न करना खलता था, हमेशा से ही दोनों उनको चिढ़ाते हुए मज़ाक करते थे. हालाँकि दिलीप साहब की शादी की ख़बर पुख्ता हुई तो हिन्दी सिनेमा सहित देश में चर्चा का विषय ज़रूर बनी थी, लेकिन त्रिमूर्ति के लिए यह शादी यादगार थी. दिलीप साहब की बारात का दृश्य बारात की अगुवाई श्री पृथ्वीराज कपूर करते हुए आगे – आगे चल रहे थे, जैसे मुगल ए आज़म में चल रहे थे. वहीँ घोड़ी में दिलीप साहब बैठे वहीँ घोड़ी के एक तरफ़ राज कपूर साहब दूसरी तरफ़ देव साहब घोड़ी की लगाम पकड़े चल रहे थे. शादी सम्पन्न हो जाने के बाद देव साहब एवं राज कपूर साहब दोनों दिलीप साहब का हाथ पकड़कर उन्हें उनके कमरे तक छोड़ते हुए सारी रस्मे निभाई थीं. राज कपूर साहब एवं दिलीप साहब की मित्रता थोड़ा अनोखी थी. दोनों पाकिस्तान के पेशावर शहर में पड़ोसी थे. दिलीप साहब फ़ुटबॉल खिलाड़ी बनने का ख्वाब रखते थे. खालसा कॉलेज में उनके साथ पढ़ने वाले राज कपूर जब पारसी लड़कियों के साथ फ़्लर्ट करते थे, वहीँ शर्मीले दिलीप साहब चुपचाप देखते रहते थे…उनके शर्मीले स्वभाव को दूर करने में राज साहब ने ही मदद की थी.

देव साहब की फिल्म ‘हरे राम हरे कृष्णा’ फिल्म की शूटिंग नेपाल के पशुपतिनाथ मन्दिर में होना था, वह विवाद यह था, कि फिल्म की दोनों नायिकाएं मुस्लिम थीं, तब देश के हिन्दू संगठन ने देव साहब को काठमांडू जाने से रोका था, लेकिन दिलीप साहब, एवं राज कपूर साहब ने पूरे हिन्दी सिनेमा को एयरपोर्ट पर इकट्ठा कर दिया था… तब देव साहब ससुरक्षित नेपाल पहुँच पाए थे.. यह भी मित्रता का यादगार संस्मरण है.

राज कपूर साहब के हस्पताल में भर्ती होने के खबर सुनकर दिलीप साहब पाकिस्तान से मुंबई आने के बाद दिल्ली पहुँच गए थे. उन्होंने एक कुर्सी ली और राज कपूर के बेड के पास बैठ गए. उन्होंने राज साहब हाथ पकड़ कर कहा, ‘राज आज भी मैं देर से आया, माफ कर दो मुझे, कि मुझे मालूम है कि तुझे लाइम लाइट में रहना पसंद है, लेकिन अब बहुत हो गया. उठो और मुझे सुनो एक बात बताता हूं, “मैं अभी पेशावर से आया हूं और वहां के चपाती कबाब की खुशबू तुम्हारे लिए लेकर आया हूं. मैं और तुम साथ में वहां चलेंगे और वहां की कबाब रोटी का आनंद उठाएंगे.” राज उठो और एक्टिंग करना बंद करो, मैं जानता हूं कि तुम बहुत उम्दा एक्टर हो. राज मुझे तुझे पेशावर के घर के आंगन में ले जाना है.”  राज कपूर से बात करते-करते दिलीप कुमार की आवाज फंसने लगीं और उनकी आंखों से आंसू गिरते जा रहे थे. यह संस्मरण ऋषि कपूर ने अपनी आत्मकथा में साझा किया था.

गाइड फिल्म हिन्दी सिनेमा को बदल कर रख देने वाली साबित हुई. यह कालजयी फिल्म रिलीज हुई तो राज कपूर साहब विदेश में थे, लेकिन जैसे ही लौटे उन्होंने देव साहब को गाइड की सफलता की शुभकामनाएं दीं एवं फिल्म के प्रिंट घर भेजने के लिए कहा.. देव साहब ने फिल्म के प्रिंट भेजे.. राज कपूर साहब ने फिल्म देखने के बाद देव साहब से कहा था “गाइड फिल्म केवल देवानंद की नहीं हिन्दी सिनेमा की विरासत है. आज पीछे मुड़कर देखते हैं तो लगता है कितना लम्बा सफ़र तय कर लिया, हम कभी नहीं मरेंगे… दुनिया बदलती रहेगी, लेकिन हम अपनी कला के जरिए ज़िन्दा रहेंगे”. देव साहब दोनों की अपेक्षा ज्यादा जिन्दादिल थे. वहीँ खुश रहते थे.. देव साहब हमेशा ही दिलीप साहब एवं राज कपूर साहब को समझाते थे “तुम दोनों फिल्मी दुनिया को  अपने दिमाग में बिठाए घर मत ले जाया करो.. हमें हर बार नया रोल करना होता है, अगर अपने दिमाग में हावी करेंगे तो अवसाद में टूट जाएंगे… हुआ भी यही राज कपूर साहब बहुत जल्दी आज ही के दिन 02 मई 1988 को दुनिया छोड़ गए… वहीँ दिलीप साहब के स्वास्थ्य में गिरावट आ रही थी, एवं हिन्दी सिनेमा बिल्कुल ही छोड़ चुके थे… फिर भी देव साहब अपनी अंतिम साँस तक सक्रिय थे… देव साहब अपनी आत्मकथा दिलीप साहब से लॉन्च कराना चाहते थे, लेकिन दिलीप साहब का स्वास्थ्य इजाजत दे न सका, तो देव साहब को बहुत दुःख हुआ था… दिलीप साहब ने बाद में, अपनी आत्मकथा में, अपने भाइयों-नूर साहब अयूब साहब के रूप में एक ही पैराग्राफ में अपने दो समकालीन सुपरस्टारों को याद करते हुए लिखा था. “मैं उन्हें उतना ही याद करता हूँ जितना मैं अपने उन भाइयों को याद करता हूँ, जो अब नहीं रहे. दुर्लभ है यह प्रतिस्पर्धा एवं यह प्रेम, यह दोस्ती, यह भाईचारा… आज त्रिमूर्ति के फैन्स के रूप में एक के फैन्स दूसरे दोनों के बारे में अनाप – शनाप लिखते – कह्ते हैं तो दुख होता है कि हम कितने संकीर्ण सोच के इंसान हैं…. सौ वर्षो के सिनेमा में सिनेमा की सबसे बड़ी उपलब्धि देव – राज- दिलीप के रूप में यह त्रिमूर्ति ही है. आज त्रिमूर्ति में से एक ग्रेट शो मैन राज कपूर साहब की पुण्यतिथि पर मेरा सलाम…

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