- उपराष्ट्रपति ने कहा, जबरन धर्मांतरण के जरिए आस्था को हथियार बनाने से सामाजिक सदभाव नष्ट होता है
- उपराष्ट्रपति ने मुंबई में अंतरराष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान (आईआईपीएस) के 65वें और 66वें दीक्षांत समारोह को संबोधित किया
मुंबई : उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने आज कहा, “कुछ भौगोलिक क्षेत्रों की संरचना को बदलने के उद्देश्य से सुनियोजित, व्यवस्थित एवं गलत तरीके से परिवर्तन किए जा रहे हैं। युवा मित्रों, हमारी जनसांख्यिकी में ये सुनियोजित परिवर्तन अक्सर ऐसे राजनीतिक या रणनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित होते हैं, जो निश्चित रूप से हमारे राष्ट्र के लिए ठीक नहीं हैं। ये हमारे सामाजिक और सांस्कृतिक संतुलन को बाधित करते हैं। इस तरह के खतरनाक प्रवृतियों पर सतर्क निगरानी और भारत की अखंडता एवं संप्रभुता की रक्षा हेतु निर्णायक कार्रवाई की आवश्यकता है। ये बेहद चिंताजनक प्रवृतियां हैं। धीमी और दीर्घकालिक जनसांख्यिकीय बदलावों के उलट, जो सामान्य व स्वाभाविक है, जनसांख्यिकीय परिवर्तन होते हैं। उन्हें होना ही है, लेकिन वे आमतौर पर धीमे और दीर्घकालिक होते हैं। नैसर्गिक जनसांख्यिकीय बदलाव धीरे-धीरे होते हैं, लेकिन कुछ क्षेत्रों की जनसांख्यिकीय संरचना में जानबूझकर एवं सुनियोजित परिवर्तन एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय है।”
मुंबई स्थित अंतरराष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान (आईआईपीएस) के 65वें एवं 66वें दीक्षांत समारोह को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए, श्री धनखड़ ने कहा, “शांति लोकतंत्र के अस्तित्व के लिए आवश्यक एवं मौलिक है। कभी न भूलें कि शांति मजबूत स्थिति से ही हासिल होती है। लोकतंत्र तभी फल-फूल एवं समृद्ध हो सकता है, जब शक्ति, प्रभावी सुरक्षा, आर्थिक सुदृढ़ता एवं आंतरिक सदभाव से अर्जित शांति हो। इतिहास इसका प्रमाण है। आक्रमणों को विफल किया जा सकता है और शांति तभी हासिल की जा सकती है, जब हम युद्ध के लिए सदैव तैयार रहें। भारत ने विश्व को संदेश दिया है। अब हम आतंकवाद को कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे। हम इसे समाप्त करेंगे और इसके स्रोत को नष्ट करेंगे। शांति का अर्थ संघर्ष का अभाव नहीं है। यह तैयारी की उपस्थिति है। लोकतंत्र सुरक्षा की उपजाऊ मिट्टी में पनपा एक नाजुक फूल है। यदि सुरक्षा नहीं है, तो लोकतंत्र समृद्ध नहीं हो सकता। आर्थिक अवसर की धूप और सामाजिक सदभाव के स्थिर राज के लिए भी शांति की आवश्यकता होती है।”
सुरक्षा और राष्ट्रीय दृढ़ता के मामलों पर, श्री धनखड़ ने कहा, “शांति के बिना, लोकतंत्र भय, अविश्वास और अराजकता में बदल जाता है। लेकिन हमें शांति को निष्क्रियता के रूप में नहीं समझना चाहिए। स्थायी शांति कभी दी नहीं जाती है – इसे अर्जित किया जाता है और इसका बचाव किया जाता है। एक राष्ट्र निर्णायक नीतियों द्वारा अपनी अर्थव्यवस्था में सुदृढ़ता लाकर अपनी सीमाओं को सुरक्षित करता है – तब राष्ट्र शांति का किला बन जाता है। हमें इस क्षेत्र में एक शक्तिशाली सैन्य शक्ति के रूप में उभरना होगा। हाल ही में उभरे गठबंधनों का उदय, जिन्हें हमने निर्णायक रूप से पराजित किया – हमें उनके बारे में हमेशा सजग रहना होगा। हमें प्राचीन ज्ञान को अपनाना चाहिए। और ध्यान रहे, भारत अपने प्राचीन शास्त्रों के कारण ज्ञान का एक वैश्विक खजाना है। शांति का मंत्र है। यदि हम शांति में विश्वास करते हैं, तो इस राष्ट्र ने कभी विस्तार में विश्वास नहीं किया है।“
शासन में परिवर्तनकारी सुधार का उल्लेख करते हुए, उपराष्ट्रपति ने भारत सरकार के निर्णय की सराहना की। उन्होंने कहा, “भारत सरकार द्वारा हाल ही में लिया गया निर्णय – एक परिवर्तनकारी निर्णय एवं शासन के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है – आगामी दशकीय जनगणना में जाति-आधारित गणना को शामिल करने से संबंधित है। यह परिवर्तनकारी साबित होगा। यह हमें समानता लाने हेतु न्यायसंगत तरीके से आकांक्षाओं को पूरा करने में मदद करेगा और सामाजिक न्याय की दिशा में एक निर्णायक कदम होगा। आंकड़े उपलब्ध होने पर यह हमें असमानताओं के बारे में हमारी समझ को समृद्ध करने में भी मदद करेगा। क्योंकि अगर असमानताएं हैं, तो वे गैर-बराबरी पैदा करती हैं और उसका प्रसार करती हैं। यह शासन का सार नहीं है। और इसलिए, ये जाति-आधारित जनगणनाएं जो आंकड़े देंगी, वे हमें लक्षित विकास के लिए मार्गदर्शन करेंगी। विकास उन क्षेत्रों में पहुंचेगा जहां इसकी आवश्यकता है। मैं गर्व के साथ कह सकता हूं कि आईआईपीएस जैसी संस्थाएं ऐसे आंकड़ों की व्याख्या करने और समावेशी समाधान सुझाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने हेतु असाधारण रूप से तैयार हैं।”
उन्होंने भारत के सामाजिक ताने-बाने को खतरे में डालने वाली गहरी चिंताजनक प्रवृत्तियों के बारे में चेतावनी देते हुए कहा, “भारत जनसांख्यिकीय बदलावों के संबंध में चिंताजनक एवं कठिन परिस्थितियों का सामना कर रहा है, जो अनियंत्रित अवैध प्रवासियों द्वारा संचालित है और साथ ही एक अन्य भयावह तंत्र – आकर्षक व चालाकीपूर्ण धर्मांतरण – भी है, जो हमारे सामाजिक ताने-बाने को विकृत कर रहा है। ये सामान्य चुनौतियां नहीं हैं। ये अस्तित्व से जुड़ी ऐसी चुनौतियां हैं जिनके लिए तत्काल, दृढ़ और कारगर राष्ट्रीय प्रतिक्रिया की आवश्यकता है। अब कार्रवाई करने का समय है। स्पष्टता और दृढ़ विश्वास के साथ कार्रवाई करने का समय है, क्योंकि यह टाइम बम विस्फोट की कगार पर है। हमें अपनी सभ्यता की प्रामाणिकता, पवित्रता और अखंडता को बनाए रखने हेतु अटूट, अदम्य एवं दृढ़ प्रतिबद्धता का प्रदर्शन करना होगा।”
सुनियोजित जनसांख्यिकीय हस्तक्षेप की गंभीरता पर प्रकाश डालते हुए, उपराष्ट्रपति ने कहा, “जब जनसांख्यिकीय संतुलन में जैविक विकास द्वारा नहीं बल्कि भयावह सुनियोजित तरीकों द्वारा हेरफेर किया जाता हो, तो यह प्रवासन का सवाल नहीं रह जाता है – यह जनसांख्यिकीय आक्रमण का सवाल है। भारत ने इसे झेला है। लाखों अवैध प्रवासी हैं। क्या हम उनसे पीड़ित हो सकते हैं? हमें इस देश में ऐसे लोगों की आवश्यकता है जो हमारी सभ्यता के प्रति प्रतिबद्ध हों, जो भारतीयता में विश्वास रखते हों, जो हमारे राष्ट्रवाद में विश्वास रखते हों, जो देश के लिए अपना जीवन बलिदान करने के लिए तैयार हों।”
उन्होंने धर्मांतरण पर आधारित उन रणनीतियों पर चिंता जताई, जो सामाजिक एकता को खंडित करती हैं। उन्होंने कहा, “जबरन या प्रलोभन के माध्यम से धर्मांतरण के जरिए आस्था को हथियार बनाना भी उतना ही परेशान करने वाला, कष्टप्रद और गहरी चिंता का विषय है। जहां विश्वास की जगह प्रलोभन ने ले ली हो, वहां हर विश्वास स्वैच्छिक एवं वैकल्पिक होना चाहिए। यह प्रलोभन से प्रेरित है और एजेंडा के अनुसार इसका चुनाव किया जाता है। ये छिटपुट घटनाएं नहीं हैं। वे सामाजिक सदभाव एवं सांस्कृतिक सामंजस्य को नष्ट करती हैं और राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ समझौता करती हैं। हमेशा याद रखें, और भारत दुनिया में इसके लिए जाना जाता है, लोकतंत्रों को दयालु होना चाहिए, लेकिन लोकतंत्र आत्मसंतुष्ट होने का जोखिम नहीं उठा सकता।”
उपराष्ट्रपति ने भारत के सभ्यतागत मूल्यों में निहित प्रामाणिक सार्वजनिक संवाद का पुरजोर आह्वान किया। उन्होंने कहा, “प्रामाणिक संवाद हमारा मूल सभ्यतागत मूल्य है। हम बयानबाजी नहीं कर सकते। हम अंध-राष्ट्रवाद नहीं कर सकते। सार्वजनिक संवाद प्रामाणिक होना चाहिए। उपनिषदों और धर्मशास्त्रों से मिली हमारी विरासत हठधर्मिता के बजाय संवाद और क्रोध के बजाय संयम का सम्मान करती है। मुझे कभी-कभी दुख होता है जब हठधर्मिता और क्रोध हावी हो जाते हैं। देश के नौजवानों, देश के युवाओं और देश के भावी कर्णधारों को सार्वजनिक संवाद को अधिक तर्कसंगत, समझदार और हमारी सभ्यतागत मूल्यों के अनुरूप बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी। जनता के साथ संवाद की प्रामाणिकता मौलिक है। सुरक्षा से जुड़े पहलुओं जैसे कुछ अपवाद हैं, लेकिन बाकी के लिए, इससे समझौता नहीं किया जा सकता है। आइए हम फिर से दोहराएं कि लोकतंत्र की आत्मा ईमानदार, सच्चे, तथ्यात्मक रूप से संतुलित और सही संवाद में बसती है।”
भारत की समावेशी भावना और सभ्यतागत मूल्यों के बारे में, उन्होंने कहा, “दुनिया में कौन सा देश समावेशी विकास, समावेशी जीवन और सदभाव का दावा कर सकता है? सभ्यतागत भावना में गहराई से निहित हिंदू धर्म का बहुमत कभी भी बहुसंख्यकवाद से निर्देशित नहीं हुआ है। लोग इसे गलत समझते हैं। हिंदू धर्म का बहुमत बहुसंख्यकवाद नहीं है। ये आवेग हमारे लिए विरोधाभासी हैं। और दुनिया भर की अन्य परंपराओं में अंतर देखें। उनकी असहिष्णुता का स्तर, उनकी कट्टरता का स्तर। वे जनसांख्यिकीय विस्फोट के जरिए नियंत्रण करने के मिशन को निर्धारित करते हैं। हिंदू धर्म में विस्तारवाद का कोई स्थान नहीं है। सनातन में इसका कोई स्थान नहीं है। यह एक विचार है क्योंकि हम जीतना नहीं, बल्कि सह-अस्तित्व चाहते हैं।”
अपने भाषण का समापन करते हुए, उपराष्ट्रपति ने विकास के लिए जनसंख्या के आंकड़ों के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने कहा, “जनसांख्यिकी, लोकतंत्र और विविधता। ये तीन डी नए भारत की आत्मा को परिभाषित करते हैं। ये तीन स्तंभ भारत की पहचान और आकांक्षाओं के सार को समाहित करते हैं। जनसांख्यिकी प्रगति के इंजन को ईंधन देने वाली गतिशील मानव पूंजी का प्रतिनिधित्व करती है। लोकतंत्र सामूहिक निर्णय लेने के लिए एक मजबूत ढांचा प्रदान करता है। किसी भी अन्य शासन में, निर्णय लेने की प्रक्रिया में लोगों की भागीदारी नहीं होती है। उस दृष्टिकोण से, लोकतंत्र अनूठा है। और विविधता? भारत पूरी दुनिया को दर्शाया है कि विविधता क्या होती है। हमारे पास एक शानदार परिदृश्य, संस्कृतियों, परंपराओं और दृष्टिकोणों का एक स्पेक्ट्रम है जो हमारे महान ‘भारत’ को दुनिया में अनूठा बनाता है। जनसंख्या के आयामों, इसकी वृद्धि, वितरण और संरचना को समझना, ऐसी नीतियों को तैयार करने की दृष्टि से मौलिक है जो सतत विकास, आर्थिक प्रगति और सामाजिक सदभाव सुनिश्चित करती हैं। यह पहलू राष्ट्रीय सुरक्षा और सदभाव की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। मुझे पता है कि आप चुनौतियों से अवगत हैं। आपके आंकड़े उन लोगों को जागृत करेंगे, जिन्हें राक्षसी आयाम ग्रहण कर चुकी इन चुनौतियों का समाधान करने की आवश्यकता है।”
इस अवसर पर केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण तथा रसायन एवं उर्वरक राज्यमंत्री श्रीमती अनुप्रिया पटेल, महाराष्ट्र के प्रोटोकॉल एवं विपणन मंत्री श्री जयकुमार रावल, आईआईपीएस के निदेशक एवं वरिष्ठ प्रोफेसर (अतिरिक्त प्रभार) प्रोफेसर डी. ए. नागदेवे तथा अन्य गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे।