Thursday, September 19, 2024
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श्रधांजली : हिन्दी सिनेमा को अपनी खुशबू से महका गईं नर्गिस  

लेखक : दिलीप कुमार

हर किसी को नहीं मिलता यहां प्यार ज़िन्दगी में…. यह गीत सिल्वर स्क्रीन की सबसे नायाब जोड़ी राज कपूर साहब – नरगिस जी पर फिट बैठता है. जिन्होंने जुनून की हद तक प्रेम किया है, लेकिन मुकम्मल नहीं हुआ. हिन्दी सिनेमा में बहुत सी जोड़ियां बनी, बहुत सी यादगार भी हैं. वहीँ गोल्डन एरा से अब तक सबसे यूनिक कपल के रूप में राज कपूर साहब एवं नरगिस जी आज भी स्क्रीन पर मुहब्बत का स्मारक है. दोनों जब भी स्क्रीन पर आए छा गए. दोनों की उपस्थिति दर्शकों को सिल्वर स्क्रीन पर खींच लाती थी. दोनों की जोड़ी में एक चुम्बकीय आकर्षण था. नरगिस जी का जीवन सामजिक जीवन था, नरगिस जी का जुड़ाव अपने अलग – अलग क्षेत्रों के ज़रिए मानवीय मूल्यों के प्रति खुद को समर्पित भी किया था. जिससे वो किसी के लिए अदाकारा थीं, तो किसी के लिए नेत्री थीं, तो किसी के लिए समाजसेविका थीं. नरगिस अपनी बेहतरीन अभिनय शैली के लिए जानी जाती थीं. नरगिस जी ताकतवर अभूतपूर्व महिला रहीं हैं, जिनका सशक्त जीवन आज की महिलाओं के लिए भी प्रेरणा है.

यूँ तो राजकपूर साहब और नरगिस दत्त दोनों पहली बार नरगिस जी के घर में इत्तेफ़ाक से मिले थे. सिल्वर स्क्रीन की सबसे सफल जोड़ी का मिलन भी किसी फिल्म की कहानी से भी ज्यादा दिलचस्प है. जब नरगिस और राज कपूर की पहली मुलाकात हुई थी, तब नरगिस महज 20 साल की थीं. राज कपूर भी उस समय कोई बड़ा नाम नहीं थे. वहीँ नरगिस इन 20 सालों में आठ फिल्मों में काम कर चुकी थीं. वहीँ राज कपूर साहब अपने फिल्मी कॅरियर की शुरुआत ही कर रहे थे. नरगिस से मुलाकात के वक्त तक भी राज कपूर साहब को कोई फिल्म निर्देशित करने का मौका भी नहीं मिला था. राज कपूर को अपनी पहली फिल्म के लिए एक फ़िल्म स्टूडियो की तलाश थी. उन्हें पता लगा कि नरगिस की मां फेमस स्टूडियो में रोमियो एंड जूलिएट की शूटिंग कर रही हैं, तो राज साहब नरगिस की माँ से जानना चाहते थे, कि स्टुडियो कैसा है. इस सिलसिले में राज कपूर जब उनके घर पहुंचे तो नरगिस ने खुद दरवाजा खोला. वो रसोई से दौड़ती हुई आई थीं, जहां वो पकौड़े तल रही थीं. अनजाने में उन्होंने बेसन से सने हाथों को अपने बालों में लगा लिया. जिससे हाथों में लगा बेसन उनके बालों में लग गया. नरगिस जी की इस अदा पर राजकपूर साहब उस समय ही आसक्त हो गए थे. कहते हैं कि राज कपूर साहब इस पहली अमर मुलाकात को आजीवन भूले ही नहीं थे. राज कपूर साहब को नव यथार्थवादी सिनेमा के अग्रदूत के रूप में याद किया जाता है. राज कपूर साहब असल ज़िन्दगी को पर्दे पर उतारने के लिए भी जाने जाते हैं, वही हूबहू सीन 25 साल बाद सन 1973 में फ़िल्म बॉबी पर उतार दिया था.

जद्दनबाई को बेटी नरगिस का यूं एक शादीशुदा राज कपूर से प्रेम करना बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता था. जद्दनबाई हर फिल्‍म में दखल देने लगी थीं. हालाँकि नरगिस के मन में राज कपूर साहब के लिए जो मोहब्बत जवां हो रही थी, उसे वो रोक नहीं पा रहीं थीं. देखा जाए तो इश्क़ को रोक भी कौन पाया है. आवारा, आग, अंदाज़, चोरी – चोरी, श्री 420, जैसी कई सुपरहिट फ़िल्मों में अपनी अदाकारी का जलवा बिखरने वाली नरगिस अभी तक इतने बोल्ड किरदार करती नहीं थीं, लेकिन नरगिस जी राज कपूर साहब के लिए कितनी समर्पित थीं, उन्होंने अपनी परंपरा को अपनी मुहब्बत के लिए तोड़ दिया था. राज कपूर साहब बोल्डनेस से परहेज़ नहीं करते थे, दरअसल खुद को अश्लीलता का पुजारी कहते थे.

कई बार अपनी उदारवादी सोच के चलते वो आर्थिक रूप से परेशान भी हुए हैं, हुआ यूं कि फिल्म ‘आवारा’ की शूटिंग के दौरान राज कपूर ने 12 लाख रुपए का बजट तय किया था. लेकिन फिल्‍म के एक गाने के लिए उन्होंने 8 लाख रुपए खर्च कर दिए थे. इस फिल्‍म को सफल बनाना राजकपूर साहब के लिए जरूरी ही नहीं मजबूरी भी हो गया था. तब उस दौर में नरगिस ने फिल्‍म को सफल बनाने के लिए अपनी लीक से हटकर बिकिनी पहनी थी. हालाँकि यह प्रेम का रूप नहीं अपितु युवावस्था का पागलपन ही था. यह फिल्म सुपरहिट हुई थी. राजकपूर साहब फिल्म निर्माण के दौरान आर्थिक संकट से गुजर रहे थे. और आरके स्टूडियो को बेचने की नौबत आ गई थी, तब नरगिस जी ने ही अपने सोने कंगन बेच आरके स्‍टूडियो को बिकने से बचा लिया था. राज कपूर नरगिस के बारे में कहते थे, ‘मेरे बीवी मेरे बच्‍चों की मां है मगर मेरी फिल्‍मों की मां नरगिस है. नरगिस जी एवं राज साहब को किसी भी वास्तविक बात का इल्म नहीं था.. दत्त साहब ठीक ही कह्ते थे “यह महज युवावस्था का आकर्षण था”. दत्त साहब से हमेशा नरगिस जी के अफेयर के बारे में पूछा जाता था, लेकिन उन्होंने कभी भी आपा नहीं खोया, एक संवेदनशील इन्सान की तरह जवाब देते थे, ऐसे कोई अति संवेदनशील ग्रेट इंसान ही बोल सकता था..

नरगिस जी एवं राजकपूर साहब के अफेयर के कारण राज कपूर साहब की ज़िन्दगी भी खासी प्रभावित हुई.’ खुद राज कपूर साहब की पत्नी कृष्‍णा कपूर’ ने इसका जिक्र किया. “राज कपूर साहब और नरगिस के अफेयर के दिनों में वह पलंग पर लेट कर रेडियो चला लेती थी. और गाना सुनती थीं. ‘आजा रे अब मेरा दिल पुकारे’ कृष्‍णा ने यह भी कहा था कि, ‘यह गाना तो जैसे मेरे लिए ही बना था. मैं पलंग पर लेट कर हमेशा यही सोचती थी कि वो घर कब आएंगे”. ऋषि कपूर ने अपनी बायोग्राफी ‘खुल्लम खुल्ला में बताया है “फिल्म ‘जागते रहो’ की शूटिंग के खत्म होने के बाद नरगिस जी ने आरके स्‍टूडियो से अपना रिश्ता तोड़ लिया था. राजकपूर साहब और नरगिस जी के बीच हुई एक छोटी सी बात ने बड़ा रूप ले लिया था. राज कपूर साहब ने एक साक्षात्कार में कहा था “नरगिस मुझसे बातेँ छिपाने लगीं थीं, एक बार वो कोई काग़ज़ पढ़ रहीं थीं, तो मैंने पूछा यह क्या है, पढ़ने के बाद उन्होंने उसे ऐसे फाड़कर फेंक दिया था. दरअसल उसमें उन्हें एक निर्देशक ने शादी का प्रस्ताव दिया था, नरगिस ने मुझे दूसरी बार भी झूठ बोला. पहले मदर इंडिया मैं ही बनाने वाला था, राजेंद्र बेदी से वह स्क्रिप्ट लेकर आया. मैंने नरगिस को स्क्रिप्ट पढ़कर सुनाया तब नरगिस ने हुए इस फिल्म को करने से इंकार कर दिया था, कि बूढ़ी औरत का किरदार करने से मेरा कॅरियर खराब हो जाएगा. हालाँकि अगले दिन नरगिस ने बिना बताए मदर इंडिया साइन कर लिया और चुपचाप कोल्हापुर चली गईं, जहां मदर इंडिया की शूटिंग चल रही थी. राज कपूर साहब ने कहा जब उन्होंने इस बारे में नरगिस से पूछा तो नरगिस ने बताया कि कि उन्हें पता नहीं था, कि कहानी क्या थी और फिल्म मदर इंडिया थी. यहीं से दोनों के रिश्तों में खटास आ गई थी. वहीँ एक – दूसरे को भूल नहीं पा रहे थे.

मदर इन्डिया से पहले नरगिस जी राज कपूर साहब से सलाह मशविरा करने के बाद ही दूसरी फ़िल्में साइन करतीं थीं, लेकिन मदर इन्डिया में नरगिस जी की एंट्री ने ख़बर पुख्ता कर दिया, कि दोनों का ब्रेक – अप हो चुका था. दोनों के रास्ते अलग हो चुके थे. वहीँ नरगिस जी को भी समझ आ गया था कि राज कपूर अपने बीवी – बच्चों को थोड़ा ही छोड़ देंगे. आज भी उम्र के फर्क़, सामाजिक हैसियत को देखते हुए लोग समझ नहीं पाते कि महिलाओं को रोने के लिए एक संवेदनशील कांधे की जरूरत होती है. प्रेम में पैसा, दौलत, शोहरत तो बाहरी, आवरण पूँजीपति जुगाड़ है, वहीँ नरगिस जैसी महानतम अभिनेत्री सुनील दत्त जैसे नए लड़के से शादी करने के लिए मान गईं, प्रेम में ठगी गई महिला हमेशा एक संवेदनशील इन्सान की उम्मीद में होती हैं. फिर चाहे, निक – प्रियंका हों, या विकी – कटरीना हों या नरगिस – सुनील दत्त ही हो. मदर इन्डिया के सेट पर असल में लगी हुई आग में नरगिस जी घिर गईं, तब संवेदनशील सुनील दत्त जो उसी फिल्म में उनके बेटे बिरजू का किरदार निभा रहे थे. सुनील ने अपनी जान की परवाह न करते हुए नरगिस जी की जान बचाई. एक दिन नए-नवेले सुनील दत्त ने नरगिस जी की गाड़ी से उनके घर छोड़ने का जिक्र किया, तो नरगिस जी ने कहा ठीक है, तब सुनील दत्त ने हिम्मत करते हुए इतनी बड़ी ऐक्ट्रिस को सीधा शादी के लिए प्रपोज कर दिया था… नरगिस ने कहा ‘कुछ समय चाहिए. सुनील दत्त ने भी सोच लिया था कि अगर इन्होंने मना कर दिया तो मैं जाकर गांव में खेती करूंगा. मैंने इतनी  हिम्मत करते हुए प्रेम प्रस्ताव तो दे दिया, लेकिन रिजेक्शन नहीं झेल पाउंगा… आख़िरकार नरगिस जी ने दो दिन बाद हाँ कर दिया, और शादी कर ली. मदर इन्डिया फिल्म की रिलीज तक शादी छिपा ली गई थी, कि फिल्म पर असर न पड़े. यह सुनकर राज कपूर साहब शराब की लत में डूब गए थे, बहुत महीने उबरने के लिए लगे. इतनी गहरी, सच्ची मुहब्बत को भुला पाना तो आसान नहीं था, लेकिन एक बेहतर कल के लिए बीते कल को जेहन से निकाल कर स्मृतियों में टांका ही जाता है. तब तक राज कपूर साहब अपनी सिनेमा की दुनिया में व्यस्त हो चुके थे. वहीँ नरगिस जी भी घर – गृहस्थी में व्यस्त हो चुकी थीं.

एक रोचक संस्मरण है, नरगिस जी घर – गृहस्थी सम्भालने में व्यस्त हो गईं थीं, वहीं सुनील दत्त फ़िल्मों के जरिए बुलन्दियों को छू रहे थे, दत्त साहब जब भी शूटिंग टूर से वापस आते तो एक साड़ी ज़रूर लाते. नरगिस जी के पास महंगी – महंगी साड़ियों का बेहतरीन कलेक्शन होते हुए भी साधारण साड़ी ही पहनती थीं. एक बार दत्त साहब ने पूछा “आपके लिए साड़ियां लाता हूं, फिर भी आप साधारण साड़ियां ही पहनती हैं, वो हँसकर टाल देती थीं”. उनके देहांत के बाद टूट चुके दत्त साहब ने उनकी डायरी उठाकर पढ़ना चाहा, उसमे यही बात लिखी थी, कि बिरजू को कैसे समझाऊं, कि तुम जो महँगी साड़ियां लाते हो, वो मुझे बिल्कुल पसंद नहीं है, हालांकि मैं मना कर दूंगी तो शायद बिरजू को अच्छा न लगे. इसलिए एक बार जरूर पहन लेती हूं. हालाँकि तुम्हारा साड़ी सेलेक्शन उम्दा है”. दत्त साहब ने एक साक्षात्कार में साझा किया था, कहते हुए भावुक हो गए थे, सच है कोई भी स्त्री के मन को पढ़ नहीं सका.

24 साल बाद ऋषि कपूर की संगीत सेरेमनी के लिए कृष्‍णा कपूर ने खुद नरगिस को पूरे परिवार के साथ आमंत्रित किया था. बेहद हिचकिचाहट के साथ उन्होंने आरके स्‍टूडियो में दाखिल हुईं. ऋषि कपूर की शादी के सारे फंक्शन आरके स्‍टूडियो में हुए थे और 7 दिन तक शादी का जश्न मनाया गया था. ऋषि कपूर ने किताब में लिखा है, ‘मेरी मां नरगिस जी की हिचकिचाहट को समझ रही थीं, इसलिए उन्हें अलग लेकर गई और कहा “आप अपने ऊपर अतीत को हावी न होने दें. आप मेरे घर खुशी के मौके पर आई है. आज हम दोस्तों की तरह यहां मौजूद हैं” तब नरगिस ने कृष्‍णा कपूर से माफी मांगी. कृष्‍णा कपूर ने उनसे कहा, ‘वह सारी बातें अब खत्म हो चुकी हैं उन्हें दोबारा याद न करिए, हम सब बढ़ चुके हैं. सुनील दत्त फ़िल्मों के साथ ही असल ज़िन्दगी में भी महानायक थे. उन्होंने नरगिस जी के साथ एवं असल ज़िन्दगी में राजनेता होने के बाद भी एक जेन्टलमैन के रूप में याद किए जाते हैं. वहीँ नरगिस जी अभिनय से खुद को दूर कर लिया था. नर्गिस जी समाज सेविका के रूप में काम करने लगीं थीं. नर्गिस ने पति सुनील दत्त के साथ अजंता आर्ट्स कल्चरल ट्रूप की स्थापना किया. यह दल सीमाओं पर जाकर जवानों के मनोरंजन के लिए स्टेज शो करता था. इसके अलावा वे स्पास्टिक सोसाइटी से भी जुड़ी रहीं. बाद में नरगिस को राज्यसभा के लिए भी नामित किया गया, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था. वे अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकीं. इसी कार्यकाल के दौरान वे गंभीर रूप से बीमार हो गईं और 3 मई 1981 को कैंसर के कारण असमय इस फानी दुनिया से रुख़सत कर गईं थीं. अपने बेटे संजय दत्त की डेब्यू फिल्म देखने से कुछ समय पहले ही गुज़र जाने के बाद भी उनके लिए एक सीट खाली छोड़ दी गई थी. सुनील दत्त ने उनकी याद में याद में 1982 में नरगिस दत्त मेमोरियल कैंसर फाउंडेशन की स्थापना की. उनके निधन के बावजूद भी नरगिस जी अपनी रचनात्मक, फिल्मी जीवन, सामाजिक जीवन में किए गए महान कार्यो के लिए याद की जाती रहेंगी. फर्स्ट लेडी सुपरस्टार नरगिस जी को मेरा सलाम..

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