दिलीप कुमार
स्तंभकार
आविष्कार बासु भट्टाचार्य द्वारा निर्देशित कला फिल्म आज भी प्रासंगिक है, और अपनी अनोखी शैली एवं पारिवारिक पृष्ठभूमि पर बनी फिल्म आज भी बड़े चाव से देख जाती है.
सभी को ज्ञात है कि साठ के दशक से लेकर सत्तर के दशक तक हिन्दी सिनेमा में राजेश खन्ना के सुपर स्टारडम का ऐसा तूफान आया, तब तक उन्होंने 17 सोलो सुपरहिट फ़िल्में दी कुलमिलाकर लगातार 19 सुपरहिट फ़िल्में देने का न टूटने वाला रिकॉर्ड राजेश खन्ना के नाम आज भी दर्ज है
निश्चित-अनिश्चित कुछ नहीं होता, फिर भी अब तक किसी भी हीरो की सिर्फ तीन साल में 17 फिल्में रिलीज नहीं होने वाली हैं, और न ही ये रिकॉर्ड टूटने वाला है. वैसे देखा जाए तो रिकॉर्ड टूटने के लिए ही बनते हैं फिर भी यह रिकॉर्ड पचास साल से कायम है.
आयुष्मान खुराना ने बीच में लगातार आधा दर्जन हिट फिल्में लगातार देकर उम्मीद की लौ जलाई. अंततः ‘गुलाबो सिताबो’ फ्लॉप हो गई, जिससे वह उम्मीद खत्म हो गई. एक मैग्जीन के मुताबिक अब वह दुनिया की सौ प्रभावशाली लोगों की फेहरिस्त में शामिल हो चुके हैं. सिनेमा में प्रभावशाली हीरो कितने बचे हैं, यह विमर्श का विषय है, और लंबा भी है. इस पर सिनेमाई पण्डित विमर्श कर भी रहे हैं. अच्छी-खासी बात है मूल्यांकन होना भी जरूरी है. वैसे राजेश खन्ना ने कथानक आधारित फिल्में करने का सबक अपनी फ्लॉप फिल्मों से ही सीखा राजेश खन्ना की गाड़ी सरपट दौड़ रही थी. रूपेश कुमार जैसे लोग ‘ऊपर आका, नीचे काका’ जैसे नारे लगा रहे थे. तब अमिताभ बच्चन, विनोद खन्ना, आदि नए मारधाड़ वाली फ़िल्में लेकर आए, जिससे हिंदी सिनेमा में रोमांस को पुराना फार्मूला सिद्ध हो गया. कहने का मतलब है कि राजेश खन्ना को अपने स्वभाव से बरअक्स फ़िल्में बनाना चाहिए था. लेकिन राजेश खन्ना अपनी हवा में बहते थे. मुझे लगता है वो यहां भी ठीक ही थे. अधिकांश लोग अपना मूल रूप नहीं बदल पाते,जिससे उनको खामियाजा उठाना पड़ता है. राजेश खन्ना ने भी खामियाज़ा उठाया. कभी – कभी इसका विमर्श होना चाहिए कि आदमी को लचीला होना चाहिए या अपने मूल्यों को समेटे रहना चाहिए.उन दिनों राजेश खन्ना फ़िल्में तो कर रहे थे, लेकिन सुपरहिट नहीं दे रहे थे.
उनके पास बड़े दिनों से सुपरहिट फ़िल्मों का अकाल पड़ गया था. तब उन्हीं दिनों फिल्म आविष्कार में वासु भट्टाचार्य हरफ़नमौला संजीव कुमार को कास्ट करना चाहते थे, लेकिन शर्मिला टैगोर ने राजेश खन्ना के नाम का सुझाव दिया. निर्देशक बासु भट्टाचार्य, शर्मिला टैगोर की बात मान गए, और राजेश खन्ना के पास पहुंचे. वासु भट्टाचार्य के पास कहानी तो लाजवाब थी, पर पैसे नहीं थे. राजेश खन्ना के पास पैसे, दौलत तो अकूत थी, लेकिन खुद को फिर से साबित करने वाली फिल्म उम्दा कहानी नहीं थी. यहीं से हिन्दी सिनेमा की कालजयी फिल्म “आविष्कार ” की नींव पड़ी।
निजी जीवन की कलह दाम्पत्य जीवन के हर रंग को संजीदगी से पर्दे पर उकेरती फ़िल्म उन कपल को ज़रूर देखना चाहिए जिनके जीवन में अब एक ही रंग बचा है “उदासी ” हम कई बार सिनेमा को समाज के अत्याधिक पश्चिमी करण होने के कारण हम उसको गरियाते हैं कि हमारा समाज ऐसा तो नहीं था,अब ऐसा क्या हो गया. सामजिक बदलाव के कारण निजी जीवन में आए बदलाव के कारण भांति – भांति की शिकायत करने वालों के लिए यह फिल्म एक सबक है. कई बार फ़िल्में जीवन का दर्शन समझा कर संदेश दे जाती हैं.
वासु भट्टाचार्य, ऋषिकेश दा, सत्यजीत रे की तरह विमल रॉय के शिष्य थे उनसे ही उन्होंने सिनेमाई समझ की बारीकियों को सीख कर निर्देशन की दुनिया में कदम रखा. तब तक वो अपने गुरु “विमल रॉय दा ” की बेटी को दिल दे बैठे. विमल दा की मर्जी के खिलाफ शादी कर ली कुछ दिनों बाद इनका निजी जीवन कलह से भर गया था. वासु भट्टाचार्य की पत्नी रिंकी बताती थीं कि आधे से ज्यादा शूटिंग हमारे घर में हुई. और आधे से ज्यादा शॉट हमारे निजी जीवन के अंतर्विरोध पर आधारित थे. कई बार ऐसे लगता था कि शायद शर्मिला,और राजेश यह खुद भी जी चुके हैं. वासु भट्टाचार्य ने यह कहानी अपने निजी जीवन के अनुभवों पर लिखी और फिल्म बनाई. जब तक यह फिल्म बनाना चाहते थे. खुद के निजी जीवन को पर्दे पर उतारने के लिए वो जब राजेश खन्ना को कहानी सुनाई तो राजेश खन्ना ने भी फिल्म की 70% फीस माफ कर दिया और फिल्म में काम करने के लिए राजी हो गए. तब तक काका भी अपने निजी जीवन में कलह – पारिवारिक अन्तरविरोध से गुजर रहे थे. शादी के बाद आते हुए बदलाव को समझ गए थे. जब फिल्म बनी तो ऐसी बनी की अमर हो गई. इस कला फिल्म ने क्लाईमेक्स में इतना शानदार संदेश दिया कि निजी जीवन में दाम्पत्य जीवन में कहीं न कहीं एक प्रेम का कोना बचाए रखना चाहिए. जिससे भविष्य में घर की बुनियाद बची रह सकती है. अज़ीब बात यह है कि निर्देशक वासु भट्टाचार्य की पत्नी रिंकी वासु भट्टाचार्य से अलग हो गईं. समय बीतते हुए उन्होंने भारतीय नारी विमर्श पर बहुत सारी किताबें लिखी. राजेश खन्ना का निजी जीवन भी अज़ीब पेचोख़म में झूलता रहा. आख़िरकार फिल्म ने राजेश खन्ना को फिर से स्थापित कर दिया. और उन्होंने सिद्ध कर दिया कि वो कला फ़िल्मों में उस्ताद हैं. शर्मिला टैगोर ने भी यादगार अभिनय किया. फिल्म साल की ब्लॉक बस्टर सिद्ध हुई. और राजेश खन्ना को बेस्ट ऐक्टर का फिल्म फेयर अवॉर्ड दिलाया. इसके बाद राजेश खन्ना के कॅरियर पटरी पर दौड़ने लगा आविष्कार के बाद फिल्म “रोटी” ब्लॉक बस्टर हुई…