विभूति मिश्र
सोशल मीडिया में अभी मशहूर स्टेंडअप कॉमेडियन वीर दास खासे चर्चा में हैं, वीरदास अपनी एक कविता को लेकर सोशल मीडिया पर जबरदस्त तरीके से ट्रोल भी हो रहे हैं और प्रशंसा भी पा रहे हैं, कॉमेडियन वीर दास ने दो भारत नाम की कविता अमेरिका के वॉशिंगटन डीसी में एक शो के दौरान पढ़ी है। पहले वीरदास की कविता के मुख्य अंश को जानते हैं और साथ ही उस पर विश्लेषण करते हैं।
वीरदास कहते हैं: “मैं एक उस भारत से आता हूं, जहां बच्चे एक दूसरे का हाथ भी मास्क पहन कर पकड़ते हैं, लेकिन नेता बिना मास्क एक-दूसरे को गले लगाते हैं” यह वीरदास की नेताओं पर सामान्य टिप्पणी है, इसलिए इस पर ज्यादा विवाद की गुंजाइश नहीं है।
दूसरा, “मैं उस भारत से आता हूं, जहां एक्यूआई 9000 है लेकिन हम फिर भी अपनी छतों पर लेटकर रात में तारे देखते हैं” यह वीरदास की अजीब बात है, AQI यानी एयर क़्वालिटी इंडेक्स इन्होंने पता नहीं कहाँ 9000 देख लिया यह वही जानें।
AQI यानि Air Quality Index या हिंदी में कहें तो वायु गुणवत्ता सूचकांक ऐसा नंबर होता है जिससे हवा की गुणवत्ता का पता लगाया जाता है. इससे भविष्य में होने वाले वायु प्रदूषण का भी अंदाज हो जाता है.
दुनिया मे सबसे खराब AQI लाहौर, पाकिस्तान का है, जहां ये 419 है, इसके बाद दिल्ली है, AQI 286 है, फिर पाकिस्तान का ही कराची है , जहां AQI 212 है, उसके बाद चीन का शेनयांग शहर है, जहां AQI 196 है, पांचवां शहर भी चीन का ही चेंगदू है जहां AQI 195 है। वीरदास का तथ्य वीरदास ही जानें, जो असत्य और भ्रामक दिख रहा है।
वीरदास आगे कहते हैं कि ” मैं उस भारत से आता हूं, जहां हम दिन में औरतों की पूजा करते हैं और रात में उनका गैंगरेप हो जाता है” सोचिए कितने मूर्खतापूर्ण तरीके से देश और उसकी संस्कृति को बदनाम कर दिया गया। रेप कहीं भी हो, चाहे कम हो ज्यादा बेहद दुखद है, कानून और व्यवस्था पर बड़ा सवाल है लेकिन ऐसी शर्मनाक घटनाएं अमेरिका से लेकर ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में भी होती हैं। दुनिया में सबसे ज्यादा रेप साउथ अफ्रीका में होते हैं।.दक्षिण अफ्रीका में हर साल 5,00,000 रेप की घटनाएं होती हैं. बोत्सवाना दूसरे नंबर पर है, तीसरे नम्बर पर लेसोथो देश है. चौथे नंबर पर स्वाजीलैंड है, पांचवें नंबर पर बरमूडा है, इसके बाद स्वीडन है, यहां हर चार में से एक महिला रेप की शिकार हुई हैं.अमेरिका में करीब 19.3 फीसदी महिलाओं और 2 फीसदी पुरुषों का उनके जीवन में कम से कम एक बार रेप होता है, भारत में हर 6 घंटे में एक महिला रेप की शिकार बनती हैं. भारत के नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, 2010 के बाद से महिलाओं के खिलाफ अपराधों में 7.5 फीसदी वृद्धि हुई है. साल 2012 के दौरान देश में 24,923 मामले दर्ज हुए, जो 2013 में बढ़कर 33,707 हो गए।
अब वीरदास जिस तरह से कानून व्यवस्था पर सवाल खड़ा कर रहे हैं, कौन विदेशी पर्यटक यहां आने के लिए उत्साहित होगा तो यह काम देश हित में है क्या?
हालांकि देश में महिलाओं की स्थिति पर कॉमेडियन वीर दास अपने बयान को लेकर अब माफी मांग चुके हैं। बावजूद उनके खिलाफ लोगों का गुस्सा शांत होने का नाम नहीं ले रहा है। वीरदास की अगली पंक्ति सुनिए ” मैं उस भारत से आता हूं, जहां हम ट्विटर पर बॉलीवुड को लेकर बंट जाते हैं, लेकिन थियेटर के अंधेरों में बॉलीवुड के कारण एक होते हैं” वीरदास की इस बातों में सच्चाई है, और इस पर विवाद भी नहीं होना चाहिए।
वीरदास आगे कहते हैं कि ” मैं एक ऐसे भारत से आता हूं, जहां पत्रकारिता ख़त्म हो चुकी है, मर्द पत्रकार एक दूसरे की वाहवाही कर रहे हैं और महिला पत्रकार सड़कों पर लैपटॉप लिए बैठी हैं, सच्चाई बता रही हैं” वीरदास की इन बातों में महिला पत्रकारों पर व्यंग्य है, लेकिन देश में ऐसी स्थिति अवश्य है कि वाकई लॉबी में बंटे पत्रकार अपनी-अपनी बात करते हैं लेकिन इसके बाद टीवी, अखबार और सोशल मीडिया पर पत्रकारिता बची हुई है और इसलिए सरकारें भी यहां बदलती हैं, कार्रवाई भी होती है, आग्रह की पत्रकारिता अवश्य है लेकिन कम से कम ऐसी नहीं, जैसा वीरदास कह रहे हैं।
वीरदास आगे कहते हैं ” मैं उस भारत से आता हूं, जहां बड़ी आबादी 30 साल से कम उम्र की है लेकिन हम 75 साल के नेताओं के 150 साल पुराने आइडिया सुनना बंद नहीं करते” वीरदास की यह बात भी अजीब है, कौन सा देश है जो अपने आदर्श महापुरुषों की बात नहीं करता, क्या अमेरिका नहीं करता ? वीरदास अपनी कॉमेडी वाली कविता में आगे कहते हैं कि” मैं ऐसे भारत से आता हूं, जहां हमें पीएम से जुड़ी हर सूचना दी जाती है लेकिन हमें पीएमकेयर्स की कोई सूचना नहीं मिलती.” यहां आकर यह बातें वीरदास की राजनीतिक हो गई है , इसलिए इन्हें कपिल सिब्बल, शशि थरूर का समर्थन मिलता है तो कुछ बीजेपी नेताओं का विरोध।
वीरदास की अगली पंक्ति है ” मैं ऐसे भारत से आता हूं, जहां औरतें साड़ी और स्नीकर पहनती हैं और इसके बाद भी उन्हें एक बुज़ुर्ग से सलाह लेनी पड़ती है, जिसने जीवन भर साड़ी नहीं पहनी”
यह भी कविता का अजीबोगरीब अंश है, बुजुर्ग अगर पुरुष है तो धोती पहना ही होगा, बुजुर्ग अगर स्त्री है तो साड़ी पहनी होगी, धोती-साड़ी का प्रचलन अब कम हुआ है लेकिन दुनिया फिदा है, हमारी इस परंपरा पर। यह नाममात्र ही होगा कि 70-80 साल का कोई बुजुर्ग धोती नहीं पहना होगा।
आगे सुनिए ” मैं उस भारत से आता हूं, जहां हम शाकाहारी होने में गर्व महसूस करते हैं लेकिन उन्हीं किसानों को कुचल देते हैं, जो ये सब्ज़ियां उगाते हैं” वीरदास की यह टिप्पणी भी राजनीतिक है और मूर्खतापूर्ण है, किसानों की हित की बात सभी करते हैं और लखीमपुर के लिए बीजेपी की किरकिरी हो चुकी है, बीजेपी ने किसानों की आय को दोगुना करने की बात कही है, अकाउंट में पैसे डायरेक्ट ट्रांसफर किए हैं।
किसान जो वोटर्स हैं, उन्हें कौन कुचल सकता है? कोई कुचलेगा तो वो अपराधी होगा, राजनीतिक दल नहीं। किसान आन्दोलन पर सही-गलत का वाद-विवाद अलग से है।
वीरदास कहते हैं कि ” मैं उस भारत से आता हूं, जहां सैनिकों को हम पूरा समर्थन देते हैं तब तक, जब तक उनकी पेंशन पर बात ना की जाए, इसमें इतने विवाद की गुंजाइश नहीं है और सभी चाहते हैं कि सेना का कल्याण हो । वीरदास अंत मे कहते हैं कि. ” मैं उस भारत से आता हूं, जो लोग अपनी कमियों पर खुल कर बात करते हैं
मैं उस भारत से आता हूं, जो ये देखेगा और कहेगा ‘ये कॉमेडी नहीं है.. जोक कहां है?’ और मैं उस भारत से भी आता हूं जो ये देखेगा और जानेगा कि ये जोक ही है. बस मज़ाकिया नहीं है” ये वीरदास की अपनी लोकप्रयिता को लेकर खीज हो सकती है, अच्छी चीजें सभी को पसंद आती हैं।
आखिर कौन हैं वीरदास?
ये उत्तराखंड के देहरादून के रहने वाले हैं. वीर दास कॉमेडियन के अलावा एक एक्टर भी हैं. इन्होंने 2007 में फिल्म नमस्ते लंदन से एक्टिंग की दुनिया में कदम रखा था. ये 42 साल के हैं, इन्होंने इकोनॉमिक्स और एक्टिंग में ग्रेजुएशन किया है और यूएस से पढ़ाई की है. ये पहली बार किसी विवाद में नहीं घिरे हैं बल्कि इससे पहले भी कई विवादों में रह चुके हैं.
सच बात तो ये है कि एक व्यक्ति के अंदर, एक समाज के अंदर, एक देश के अंदर बहुत सारे व्यक्ति,समाज और देश होते हैं, भारत वैसे भी विभिनताओं का देश है, भाषा,रंग-रूप, जाति, धर्म, संस्कृति के रूप में लेकिन वीरदास की तरह यह चिंता की बात नहीं बल्कि गर्व की बात मानी जाती है। हम सुनते हैं विभिन्नता में एकता।
जिस अमेरिका में वीरदास कविता पढ़ रहे हैं , उस अमेरिकी समाज में 1776 में ही स्वतंत्रता प्राप्त हो चुकी थी, लोग शिक्षित और अमीर थे लेकिन वहां आज से लगभग सौ साल पहले औरतों को मतदान का अधिकार नहीं था। फिर भी ऐसा नहीं था कि औरतों की सोच और निर्णय पर समाज भरोसा नहीं करता था लेकिन तब के आदर्श अलग थे, औरतों में अपने अधिकारों के प्रति चेतना नहीं थी,यह कहना भी मुश्किल होगा लेकिन आज अमेरिका में स्थिति अलग है।अमेरिका में महिलाओं को अपने मताधिकार की लड़ाई के लिए लगभग सौ सालों तक कड़ा संघर्ष करना पड़ा था, उस समय महिलायें जो परंपरागत तरीकों से पली थीं, यह भी एक कारण था कि पुरूष उन्हें एक पतिव्रता-स्त्री, विनम्र-पत्नी और घर-परिवार के बारे में सोचने वाली समझते थे, यह सौ साल पहले का दौर था। अब लिंगभेद में स्थिति अलग है लेकिन भेद दूसरे मामलों में खत्म नहीं हुए हैं।
अब अमेरिका में बात आज के दौर का भी देखिए।
जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी, यूनिवर्सिटी ऑफ पेंसिल्वेनिया और कार्नेगी एंडोमेंट ने एक पोलिंग ग्रुप के साथ सर्वे किया। इसके मुताबिक, 30 फीसदी लोगों को लगता है कि त्वचा के रंग की वजह से यहां भेदभाव किया जाता है। 18 फीसदी लोगों का कहना है कि लिंग या धर्म के आधार पर भेदभाव होता है।
कुल मिलाकर 31 फीसदी लोगों को लगता है कि भारतीय मूल के लोगों के खिलाफ भेदभाव अमेरिका में एक बड़ी समस्या है। 53 फीसदी इसे छोटी समस्या मानते हैं और 17 फीसदी इसे समस्या मानते ही नहीं। 73 फीसदी लोग मानते हैं कि एशियाई-अमेरिकी लोग जो भारतीय मूल के नहीं हैं, उन्हें भारतीय-अमेरिकी लोगों से ज्यादा भेदभाव झेलना पड़ता है। 90 फीसदी लैटिनो अमेरिकन, 89 फीसदी एलजीबीटीक्यू और 86 फीसदी अफ्रीकन-अमेरिकी लोगों को भेदभाव का ज्यादा बड़ा शिकार मानते हैं। अमेरिका में भेदभाव के खिलाफ अभियान चलाए जा रहे हैं। सड़कों पर बड़ी बड़ी रैलियां आयोजित की जा रही है। रैलियों के दौरान कई बार प्रदर्शनकारी और पुलिस के बीच काफी टकराव भी देखने को मिलते हैं। कई बार पुलिस लाठीचार्ज भी करती है लेकिन वीरदास को अमेरिका में दो अमेरिका नहीं दिखता।
विश्व में आतंकवाद के कारण मानवता के विनाश को लेकर दो विश्व नहीं दिखता।
अव वीरदास की कविता पर कांग्रेस में दो फाड़ हो चुका है, कपिल सिब्बल, शशि थरूर समर्थन में हैं तो अभिषेक मनु सिंघवी कहते हैं कि” कुछ व्यक्तियों की बुराइयों को सामान्य बनाना और पूरे देश को दुनिया के सामने बदनाम करना ठीक नहीं है! औपनिवेशिक शासन के दौरान जिन लोगों ने भारत को पश्चिम के सामने सपेरों और लुटेरों के राष्ट्र के रूप में दिखाया, उनका अस्तित्व समाप्त नहीं हुआ है.’
इधर फिल्ममेकर अशोक पंडित ने वीर दास को आतंकी बता दिया है, ये कहते हैं कि “वह स्लीपर सेल के उन सदस्यों में से एक हैं जिन्होंने एक विदेशी भूमि पर हमारे देश के खिलाफ युद्ध छेड़ रखा है.’
अभिनेत्री कंगना रनौत ने भी वीर दास के वीडियो पर टिप्पणी करते हुए इसे सॉफ्ट आतंकवाद करार दे दिया है।एक्ट्रेस ने उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है। इसके साथ ही उनके बयान को आंतकवाद से जोड़ दिया। उन्होंने अपने इंस्टाग्राम स्टोरी पर एक लंबी पोस्ट साझा की और उनके काम की तुलना आतंकवाद से कर दी।
अब सवाल ये है कि अभिनेत्री कंगना के बयानों पर जहां कुछ लोग उसके फील्ड का ना बता कर उसे नचिनियाँ कह कर आलोचना कर रहे हैं, वहीं वीरदास कॉमेडियन हैं, कविता करते हैं, लेकिन उनके व्यूज को सही ठहरा रहे हैं। कंगना अभी भी अपने बयानों पर अड़ी हैं और उन्होंने फिर लिखा है कि भगत सिंह को फांसी से नहीं बचा कर, एक थप्पड़ के बदले दूसरा गाल देकर जो आजादी मिली वो सचमुच भीख ही थी। अभिनेत्री कंगना रनौत ने दावा किया कि सुभाष चंद्र बोस और भगत सिंह को महात्मा गांधी से कोई समर्थन नहीं मिला और उन्होंने अहिंसा के उनके मंत्र का मजाक उड़ाते हुए कहा कि एक और गाल देने से आपको “भीख” मिलती है, आजादी नहीं।
इंस्टाग्राम पर पोस्ट में कंगना ने सलाह दिया कि “अपने नायकों को बुद्धिमानी से चुनें”।
यह भारत में वैचारिक स्वतंत्रता की खूबसूरती है कि चर्चा कंगना पर होती है और वीरदास पर भी, कंगना ने जो कुछ कहा है, उसके निजी विचार हैं लेकिन बहस को आमंत्रण जरूर देती हैं, कंगना स्वाधीनता संग्राम पर बहस को जन्म दे रही हैं, नायकों में सही गलत में फर्क करती हैं, दो तरह की आजादी की बात करती हैं, दो तरह के नायक की बात करती हैं, देश के अंदर बहस का जन्म होता हुआ दिखता है लेकिन देश के बाहर दर्शकों के सामने भारत की दूषित छवि सामने नहीं लायी जाती।
अपनी-अपनी सोच की बात है, विदेश में कुछ लोगों ने भारत के योग, कृष्ण भक्ति, शास्त्रीय संगीत, भिन्न पूजा पद्धतियों, संस्कृतियों , सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग, मिथिला पेंटिग्स आदि को अंतर्राष्ट्रीय मंच दिया, ख्याति दी और कुछ लोगों ने विदेशों में जाकर यही बताया कि भारत जाहिलों का देश है, सपेरों का देश है, कर्महीनों का देश है, भूखे नंगे संतों का देश है, कुछ ने तस्वीरें बनायी गरिमा की कुछ ने बनायी दूषित। वीरदास ने क्या किया, ये आप खुद सोचिए।