कवि : जी पी वर्मा
प्रेम का नाज़ुक-
ख़याल!
बेबाकी से-
सप्त स्वरों की-
झंकार सा –
नीलाम्बर मे-
झिलमिल-
तारा किरणों की-
अटूट पाँति सा लहराए!
धरा से नभ-
नभ से ब्रह्मांड तक-
हर तरफ गहराए!!
मेरे, तुम्हारे –
हम सबके लिए –
जीवन वंशी-
नफरत नहीं-
प्रेम गीत गाए-
इंद्रधनुषी छटा बिखराये-
तो कितना अच्छा हो!!!