Thursday, November 21, 2024
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व्यंग्य : एडमिनासुरों से मुक्ति

संजीव जायसवाल ‘संजय’

बचपन से उनकी ख्वाहिश अपना साम्राज्य स्थापित करने की थी. मगर नोन-तेल-लकड़ी के चक्कर में ऐसा उलझे कि पैरों की जूतियां तक घिस गईं. हाकिमों की जी-हुजूरी और चाकरी करते-करते ज़मीर मुर्दा हो गया. सारी ख्वाहिशें, सारी तमन्नाएं कहीं गहरे में दफन हो गई थी. बेज़ार जिंदगी के हाल देख वे ज़ार ज़ार रोते.

मगर कूडे के भी दिन कभी न कभी बहुरते हैं तो उनके भी बहुरे. बच्चों से व्हाट्सएप चलाने का गुर सीख उन्होंने एक दिन अपना ग्रुप बना लिया. कुछ रिश्तेदारों, कुछ मित्रों को जोड़ा. चुनी हुई लेखिकाओं और बेहतरीन कवयित्रियों को भी जोड़ा और बन बैठे ग्रुप एडमिन उर्फ प्रशासक उर्फ शासक. एक्चुअल न सही अपना वर्चुअल साम्राज्य तो स्थापित हो ही गया. सारी कुंठा उड़न छू हो गई. आत्मविश्वास से लबरेज वह अब प्रजाजन को नित्य प्रवचन देते, ज्ञान बघारते, नए-नए निर्देश जारी करते और अनुशासन का डंडा भी चलाते. नाफरमानी करने वालों को अपने साम्राज्य से निष्कासित भी कर देते. ऐसा कर उन्हें वही खुशी हासिल होती जो किसी शहंशाह को अपने दरबार से किसी दरबारी को निकालने पर होती होगी. अगला माफी मांगें या ना मांगे लेकिन दरियादिली दिखाते हुए अगले दिन उसे अपने साम्राज्य से पुनः जोड़ लेते. बलिहारी व्हाट्सएप की, ग्रुप एडमिन बन सुदामाओं को भी राजसुख भोगने और सर्वज्ञानी होने की अनुभूति प्राप्त होने लगी है. कुंठाग्रस्त, हीनताग्रस्त, दीनताग्रस्त से त्रस्त महानुभावों से लेकर टुच्चई और लफंटई से तृप्त बाँकुरे भी अपना अपना-अपना राज्य स्थापित कर दुंदभी बजा रहे हैं. हर परिचित अपना दास, हर रिश्तेदार और मित्र के वे शासक. सुख की परम अनुभूति. मूकमं करोति वाचालम पंगु लंघयते गिरिम से भी बड़ा चमत्कार है यह व्हाट्सअप.

सत्ता सुख के पश्चात साम्राज्य विस्तार की इच्छा स्वभाविक है. अतः अगले ने भी नए-नए राज्य स्थापित करना प्रारंभ कर दिया. प्रबुद्ध लेखक मंच, बौद्धिक लेखक संघ, प्रगतिशील विचारधारा, नवांकुरधारा जैसे नए-नए ग्रुप बना डाले और जितनो के भी मोबाइल नंबर मिल सके उन सबको अपने साम्राज्य में शामिल कर डाला. वही पोस्ट, वही फोटो और वही ज्ञान दिन भर हर ग्रुप में चेंपते रहते हैं. प्रजा दर्द से कराह रही है या बिलबिला रही है यह देखने की फुर्सत उनके पास नहीं. बिलकुल चक्रवर्ती सम्राट सी अनुभूति होने लगी. किंतु रंग में भंग! नित कोई ना कोई विधर्मी ग्रुप से एग्जिट कर लेता है. नख से शिख तक आग लग जाती है. संभव होता तो ऐसे भगोडे विद्रोहियों को उल्टा लटका कर दरबार में हाजिर करने का फरमान जारी कर देते. मगर अफसोस! आभासी दुनिया में ऐसा आभास होने का कोई प्रावधान नहीं है. अब उनकी एक ही अभिलाषा बाकी है, काश व्हाट्सएप में कोई ऐसी वर्चुअल तलवार बन जाए जिस से इन भगोड़ों की गर्दन उड़ा दी जाए. यदि तलवारबाजी संभव न हो तो कम से कम वर्चुअल फांसी देने का इंतजाम तो होना ही चाहिए. ताकि कोई नामुराद ग्रुप एग्जिट करने की जुर्रत न कर सके. जब तक ऐसा नहीं हो जाता तब तक उनका साम्राज्य विस्तार का अभियान अनवरत जारी है. यदि आप इसे मानसिक बलात्कार समझते हैं तो समझते रहिए. निजता का हनन लगता है तो हिनहिनाते रहिये. घोड़े की सवारी करने से पहले उसकी मर्जी नहीं जानी जाती, बस सवारी गाँठ ली जाती है. वैसे ही आपकी पीठ की सवारी गांठी गई है और गांठी जाती रहेगी. इन एडमिनासुरों के अत्याचारों से अकेले आप ही नहीं पूरा भूलोक त्रस्त है. इसलिए व्यथित होने के बजाय दुआ कीजिए कि इनका घड़ा जल्द भरे और कोई अवतारी आकर इनका संहार करे।

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