लव कुमार सिंह
देवियों और सज्जनों! हमारे 50 साला पड़ोसी के घुटने बोल गए हैं। वे अपने दिल से भी लाचार हो गए हैं। पता है इल्जाम किस पर आया है? पहले महेंद्रि सिंह धोनी, अब विराट एंड कंपनी का नाम आया है। आपको भले ही इस पर हंसी आए, पर पड़ोसी इस इल्जाम पर पूरी तरह गंभीर हैं। चलिए कुछ विस्तार से बताते हैं कि असल में क्या तस्वीर है।
हमारे पड़ोसी कहते हैं क्रिकेटर खुद तो दौड़कर अल्ट्रा फिट रहते हैं मगर हमसे कहते हैं- सारा दिन बैठकर मैच देखो। फुटबालर मैसी भी नब्बे मिनट में छुट्टी दे देता है। साइना-सिंधु इससे भी कम समय लेती हैं। हिमा दास और दुती चंद तो दस-ग्यारह सेकेंड में ही बाय बोल जातीं हैं। लेकिन क्रिकेटर सारा दिन निचोड़ लेते हैं।
“फिर टीवी के सामने सारा दिन क्यों बैठते हैं?” हमने पूछा।
“अजी बैठना पड़ता है इनके लिए। हम इनके जबरा फैन जो ठहरे।”
लेकिन बैठने में भी हालात अजीब होते हैं। अब देखिए ना, एक अंतरराष्ट्रीय मैच में विराट की पारी लड़खड़ाई तो पड़ोसी बेचैन होकर बिस्तर पर उकड़ू बैठ गए। हम भी उस दिन पड़ोसी से मिलने गए थे और पास में एक कुर्सी पर बैठे थे। पड़ोसी के इस मुद्रा में आते ही संयोगवश विराट के बल्ले से तुरंत चार रन निकल गए। पड़ोसी बिस्तर पर अधलेटे हुए कि विराट फिर गेंदबाज के सामने लाचार दिखा। पड़ोसी फिर उकडू बैठे तो गेंद सीमारेखा के पार। चमत्कार से अभिभूत पड़ोसी इसके बाद उकड़ू मुद्रा में ही जम गए। विराट के बल्ले से रन पे रन निकलते चले गए।
विराट दौड़ते-दौड़ते 98 पर पहुंच गया, मगर इधर पड़ोसी का घुटना 98 साला बुजुर्ग सा जम गया। इसी के साथ पेट में गया खाया-पीया अपनी सीमारेखा पर आ गया। तभी विराट के शतक का शोर मचा। शोर सुनकर पड़ोसी की पत्नी तेजी से कमरे में आई। पहले टीवी पर विराट को देखा, फिर पति और मुझ पर नजर घुमाई। कोहली को देखकर उसने ताली बजाई। लेकिन पति को देखा तो जोर से चिल्लाई- “अरे रुको…बिस्तर पर ही निपटोगे क्या?”
………….
दस जुलाई दो हजार उन्नीस। क्रिकेट का विश्व कप। पड़ोसी उकड़ू बैठे, एक पैर पर खड़े हुए, लेकिन कुछ भी अच्छा नहीं हुआ। भारत विश्व कप से बाहर हो गया। पड़ोसी का दिल टूट गया। उनका आरोप है कि क्रिकेटर बहुत कष्ट पहुंचाते हैं। ये उम्मीदों के पहाड़ पर चढ़ाते हैं और फिर वहां से नीचे की राह दिखाते हैं। ये ऐसा एक बार नहीं कई बार दोहराते हैं। पड़ोसी की मांग है कि उन जैसे सारे दिन टीवी के सामने जमे रहने वाले क्रिकेट के दीवानों के लिए अंतर्राष्ट्रीय मैच में भारत की हार पर मुआवजा दिया जाना चाहिए।
सोचता हूं कहीं ये हमारे उकड़ू बैठने या एक पैर पर खड़े होने का दबाव तो नहीं जिसे कोहली एंड कंपनी सहन नहीं कर पाती। मैंने देखा है कि जो दिनभर मैच नहीं देखते, जिन्हें क्रिकेट का कीड़ा ज्यादा नहीं लगा होता, वे ज्यादा परेशान नहीं होते। वे मैच की निष्पक्ष समीक्षा कर रहे होते हैं। लेकिन जो नौकरी से छुट्टी लेकर या जरूरी काम छोड़ धूनी रमा लेते हैं, जो मैच के दौरान मेहमानों से नहीं मिलते, जो अपने जरूरी मिलन रद्द कर देते हैं, वे पड़ोसी की तरह किसी भी हार के बाद बौरा जाते हैं, खिलाड़ियों को कोसते हैं और अपनी हालत खराब कर लेते हैं।
ऐसे ही लोगों से प्रेरणा पाकर पत्रकार बाल की खाल निकालते हैं। ऐसे ही लोगों से घबराकर क्रिकेट बोर्ड कप्तान बदल देता है। ऐसे ही लोगों से घबराकर कई खिलाड़ी संन्यास ले लेते हैं। लेकिन जीत-हार अपने हिसाब से चलती रहती हैं। उन्हें इन चीजों से कोई फर्क नहीं पड़ता। जीत उसी का वरण करती है जो अच्छा खेलता है। जीत उसी को मिलती है जो हार नहीं मानता। जीत उसको भी मिलती है जो घमंड नहीं करता। इस ज्ञान प्राप्ति के बाद अपन ने भी एक फैसला किया है। खेल प्रेमी बना रहूंगा, पर दिनभर समय जाया नहीं करूंगा। कोहली-रोहित को अपने घुटने और दिल खराब नहीं करने दूंगा। उन्हें कोसूंगा नहीं, गाली नहीं दूंगा, उन पर फटूंगा नहीं। न उन्हें प्रशंसा के पर्वत पर चढाऊंगा। न निराशा के समंदर में डुबोऊंगा। खेल को खेल ही रहना दूंगा। खिलाड़ियों को उन्मुक्त खेलने दूंगा।