- एक्ज़िट पोल से लेकर मोदी- योगी और अखिलेश की अग्नि परीक्षा
- महीने भर के लंबे चुनावी सफर के बाद दस मार्च को मतगणना
- सियासी सुगबगाहट के बीच कांग्रेस ने सपा को समर्थन देने के दिये संकेत
- गृहमंत्री अमित शाह और बसपा सुप्रीमो कर चुके हैं एक- दूसरे की तारीफ
मनीष शुक्ल
एक महीने के लंबे चुनावी सफर के बाद 2022 में यूपी की सत्ता की तस्वीर 2017 जैसी ही नजर आ रही है। ऐसे में एकबार फिर तमाम एक्ज़िट पोल की विश्वसनीयता दांव पर है। दस मार्च को यह भी तय होने जा रहा है कि जनता को योगीराज पसंद है या फिर वो अखिलेश यादव की साइकिल के संग हैं। भले ही एक्ज़िट पोल ने यूपी में भाजपा लहर का ऐलान कर दिया है लेकिन पोल के पिछले फिसड्डी रिकार्ड को देखते हुए इस बार राजनीतिक दल फूँक- फूँक कर कदम रख रहे हैं और दस मार्च के बाद सभी संभावित संभावनाओं को लेकर गणित लगाने में जुट गए हैं। चुनाव के दौरान ही भाजपा बसपा सुप्रीमो मायावती और रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी पर डोरे डाल चुकी है तो चुनाव खत्म होने के बाद कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने जरूरत पड़ने पर समाजवादी पार्टी को समर्थन देने की बात कहकर सियासी हलचल तेज कर दी है।
18वी विधान सभा के गठन के लिए चुनाव परिणाम आने से पहले यूपी में एक- दूसरे के संपर्क में आने का सिलसिला शुरू हो चुका है। अगर इस बार एक्ज़िट पोल अपने आंकलन में पास होते हैं तो फिर सत्ता की लहर में सवार होकर योगीराज की वापसी होगी। लगातार दूसरी बार प्रदेश में कमल खिलकर तीस साल पुराने मिथक को तोड़ देगा जिसमें किसी भी सरकार की दोबारा सत्ता में वापसी नहीं होती आई है। या प्रधानमंत्री के वादे के अनुसार होली से पहले ही काशी समेत यूपी में रंगों का त्योहार शुरू हो जाएगा। लेकिन अगर एक्ज़िट पोल इस बार फिर फेल साबित होते हें और भाजपा इस मिथक को नहीं तोड़ पाती है। किसान आंदोलन से लेकर छुट्टा जानवर जैसे मुद्दे अपना असर दिखाते हैं। पुरानी पेंशन बाहली को लेकर जनता ने मतदान किया तो फिर परिणाम कुछ और होंगे।
सभी एग्जिट पोल में भाजपा की जीत के अलावा एक और बात पर गौर करें तो समाजवादी पार्टी को वोटों के लिहाज से बड़ा फायदा होता दिख रहा है। पार्टी को ना सिर्फ पिछले चुनाव की तुलना में अधिक वोट मिल रहे हैं बल्कि पिछली बार की तुलना में पार्टी की सीटों में भी बढ़ोतरी देखने को मिल रही है । हालांकि वोटों का बढ़ता प्रतिशत सीटों में कितना तब्दील होगा, ये देखने वाली बात होगी।
पिछले विधान सभा यानि 2017 की बात करें तो सपा सिर्फ 47 सीटों पर विजयी रही थी जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को केवल 44 विधान सभा सीटों बढ़त दिखाई दी थी। ऐसे में बहुमत के इतने बड़े अंतर को भरना सपा के लिए पहाड़ पर चढ़ने जैसा है। अखिलेश यादव यूं तो अपनी सरकार के कामों का फीता काटने का बीजेपी पर आरोप लगाया। उनके घोषणा पत्र में पुरानी पेंशन बहाली और 300 यूनिट बिजली फ्री के वायदे को मास्टर स्ट्रोक माना गया। हर मोर्चे पर सरकार को घेरते नजर आए लेकिन मोदी और योगी की डबल इंजन सरकार के सामने सत्ता का विकल्प बनने के लिए 200 सीटों के जादुई आंकड़ें को हासिल करना होगा।
सपा के लिए इस चुनाव में यही चुनौती रही है। बात करोना काल की हो या फिर किसान आंदोलन की, भाजपा पर उसके वॉटर का विश्वास बरकरार रहा है। करोना काल में मुख्यमंत्री की हर जिले में मौजूदगी हो या फिर फ्री टीकाकरण हो। गरीबों की मुफ्त राशन योजना, सभी का लाभ सीधे लोगों को मिलता दिखा है। यहाँ पर विपक्ष सरकार के खिलाफ विरोध का माहौल नहीं बना सका है।
अगर बसपा की बात करें तो 2017 के चुनाव में बसपा ने 19 सीटें जीती थीं। 2019 में बसपा 65 विधानसभा क्षेत्रों में आगे चल रही थी। 2019 के लोकसभा चुनाव की खास बात यह थी की तब में सपा और बसपा ने मिलकर चुनाव लड़ा था। वोट फीसदी की बात करें तो 2017 में बसपा को 22 फीसदी वोट मिले थे जबकि इस बार पार्टी को 12 फीसदी वोट मिलते दिख रहे हैं। वहीं एक्ज़िट पोल पर नजर डालें तो सपा को इस बार 36 फीसदी वोट की संभावना है जबकि भाजपा को भाजपा को 46 फीसदी वोट मिल सकते हैं। गौरतलब है कि 2017 में भाजपा को 41.4 फीसदी वोट मिले थे। वहीं 2019 में भाजपा को 51.2 फीसदी वोट मिले थे। 2017 और 2019 के चुनाव कि बात करें कांग्रेस इस दौड़ में सबसे पीछे रही है। उसका वोट सात फीसद से भी कम है। ऐसे में बूथ स्तर पर बेहद कमजोर हो चुका कांग्रेस अहज प्रियंका वाड्रा के चुनाव मैदान में आने से इस बार कोई चमत्कार कर पाएगी, ऐसा मानना बेमानी होगा। प्रियंका भी चुनाव के दौरान लगातार मानटी रहीं कि वो सत्ता के लिए बल्कि बदलाव के लिए मैदान में हैं। कांग्रेस सकारात्मक राजनीति करने की बात करती आई है। हालांकि चुनाव परिणाम आने से पहले ही सपा को समर्थन देने का संकेत देकर भविष्य की संभावना को साफ कर देती हैं। भले ही एक्ज़िट पोल भाजपा की लहर बता रहे हों लेकिन भाजपा भी लगातार भविष्य की संभावना को टटोल रही है। गृहमंत्री अमित शाह ने चुनावों के बीच में बहन जी की तारीफ कर बड़ा नेता बताया तो रालोद अध्यक्ष को भाजपा ने साथ आने का आफ़र देकर अपने दरवाजे खुले रखे हैं। दस मार्च को ईवीएम योगी का राजतिलक करती है या अखिलेश की बहार आती है या फिर जनता त्रिशंकु सरकार बनाकर नब्बे के दशक को वापस लाती है। इसका खुलासा गुरुवार दोपहर तक हो जाएगा।
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‘इस चुनाव में भाजपा के सभी कार्यकर्ता बंधुओं ने पूर्ण रूप से समर्पित होकर पार्टी के लिए बिना रुके, बिना थके अद्भुत परिश्रम किया है। उनकी इस कड़ी मेहनत का फल समस्त प्रदेशवासियों को आगामी दस मार्च को मिलने जा रहा है। यूपी में फिर एक बार कमल खिलने जा रहा है।’
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह
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“निर्णायक चरण में सपा गठबंधन की जीत को बहुमत से बहुत आगे ले जाने के लिए सभी मतदाताओं और विशेषकर युवाओं का बहुत-बहुत आभार। हम सरकार बना रहे हैं। “
सपा मुखिया अखिलेश यादव
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“ एक्ज़िट पोल मानीटर्ड हैं। समाजवादी गठबंधन तीन सौ से अधिक सीटें जीत रहा है। उम्मीदवार और कार्यकर्ता सावधानीपूर्वक मतगणना कराएं और दस मार्च को विजय पताका फहराने के लिए तैयारी करें।“
सपा महासचिव प्रो. रामगोपाल यादव
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“आप सभी की मेहनत से पार्टी को और मजबूती मिली है। पार्टी अध्यक्ष मायावती के नेतृत्व में पूरे चुनाव में दिन-रात कठोर परिश्रम करने वाले सभी कार्यकर्ताओं एवं बूथ अध्यक्षों का हार्दिक धन्यवाद। आप सभी की अथक मेहनत से मूवमेंट को और बल मिला है। आपके निस्स्वार्थ भाव से किए गए महत्वपूर्ण कार्यों से निश्चित ही सकारात्मक परिणाम आएंगे। जन-जन के आशीर्वाद से दस मार्च को बीएसपी की सरकार बनेगी।“
बसपा के राष्ट्रीय महासचिव डा. सतीशचंद मिश्र
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2022 का चुनावी सफर
उत्तर प्रदेश में सात चरणों में विधानसभा चुनाव हुए हैं। 10 फरवरी को पहले चरण में पश्चिम उत्तर प्रदेश के 11 जिलों की 58 सीटों पर, दूसरा चरण 14 फरवरी को 9 जिलों की 55 सीटों पर, 20 फरवरी को तीसरे चरण में 16 जिलों की 59 सीटों पर मतदान सम्पन्न हुआ था। चौथे चरण में 23 फरवरी को लखनऊ सहित 9 जिलों की 60 सीटों पर मतदाता ने वोट डाले। पांचवें चरण में 27 फरवरी को 11 जिलों की 60 सीटों पर, छठे चरण में 3 मार्च को 10 जिलों की 57 सीटों पर और सातवें और अंतिम चरण का मतदान 7 मार्च को 9 जिलों की 54 सीटों पर लोगों ने मताधिकार का प्रयोग किया। अब 10 मार्च को मतों की गिनती का सभी को इंतजार है।
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