अरविंद जयतिलक
यह बेहद चिंताजनक है कि पड़ोसी देश बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं पर अत्याचार थमने का नाम नहीं ले रहा। कभी उनके घर और आस्था केंद्रों को आग के हवाले किया जा रहा है तो कभी सरेआम मौत के घाट उतारा जा रहा है। सोशल मीडिया पर झूठी अफवाह से उपजी हिंसा के बाद जिस तरह कट्टरपंथी तत्वों ने आधा दर्जन से अधिक हिंदुओं की हत्या की है उससे साफ जाहिर है कि बांगलादेश में हिंदू जन और उनके आस्था केंद्र बिल्कुल ही सुरक्षित नहीं रह गए हैं। हिंदू आस्था का महत्वपूर्ण केंद्र नोआखली जिले का इस्काॅन मंदिर को जिस तरह कट्टरपंथियों ने तहस-नहस किया और शासन-प्रशासन मूकदर्शक बना रहा उससे यही प्रतीत होता है कि बांगलादेश में सुनियोजित तरीके से हिंदुओं को खत्म किया जा रहा है। यह पहली बार नहीं है जब बांग्लादेश में हिंदुओं के आस्था केंद्र, घर, दुकान और कारोबार को नुकसान पहुंचाया गया हो। याद होगा गत वर्ष पहले झिनाईदह जिले में इस्लामिक स्टेट के आतंकियों ने 70 साल के एक पुजारी की गला रेतकर हत्या कर दी और भविष्य में ऐसे और हमले की चेतावनी दी। इसी तरह पंचागढ़ जिले में स्थित हिंदू मंदिर पर पत्थरबाजी कर पुजारी की नृशंस हत्या की गयी। तब सरकार ने हिंदू अल्पसंख्यकों की हिफाजत का भरोसा दिया। लेकिन मौजूदा हमले व हिंसा से स्पष्ट है कि सरकार अल्पसंख्यक हिंदुओं की सुरक्षा देने में पूरी तरह नाकाम है। गौर करें तो बांग्लादेश में हूजी, जमातुल मुजाहिदीन बंगलादेश, द जाग्रत मुस्लिम जनता बंगलादेश (जेएमजेबी), पूर्व बांगला कम्युनिस्ट पार्टी (पीबीसीबी) व इस्लामी छात्र शिविर यानी आइसीएस जैसे बहुतेरे आतंकी और कट्टरपंथी संगठन हैं जिनका मकसद बांग्लादेश से हिंदू अल्पसंख्यकों को सफाया करना है। अगर बांगलादेश की सरकार वर्तमान हिंसा की ईमानदारी से जांच कराए तो कई कट्टरपंथी संगठनों का चेहरा सामने आ जाएगा। यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि बांग्लादेश में पैर जमाए और भारत में सक्रिय हूजी पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ के सहयोग से कई आतंकी घटनाओं को अंजाम दे चुका है। उसका यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट आॅफ असम से नजदीकी संबंध है। कहा तो यह भी जाता है कि वह उल्फा के लिए टेªेनिंग कैंप भी चलाता है। याद होगा 2002 में कोलकाता के अमेरिकन सेंटर पर हुए हमले की जिम्मेदारी इसी संगठन ने ली थी। भारत की खुफिया एजेंसियां यह भी खुलासा कर चुकी हैं कि असम और नागालैंड समेत पूर्वोत्तर के सभी राज्यों में अराजक स्थिति के लिए बांग्लादेशी संगठन ही जिम्मेदार हैं। यह भी स्पष्ट हो चुका है कि असम में 2008 और 2012 में हुए दंगे को भड़काने में बांग्लादेश के कट्टरपंथी संगठन शामिल थे। गौर करें तो पिछले कुछ वर्षों में बांग्लादेश के इन्हीं संगठनों के कट्टरपंथियों ने 4 दर्जन से अधिक हिंदू मंदिरों को नष्ट-भ्रष्ट किया और हजारों हिंदू घरों में आग लगायी। दर्जनों अल्पसंख्यक हिंदुओं को मौत के घाट उतारा। दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य यह भी कि कट्टरपंथी संगठन हिंदू अल्पसंख्यकों का साथ देने वाले मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पत्रकारों को भी अब निशाना बना रहे हैं। नतीजा सामने है। बांग्लादेश में हिंदु अल्पसंख्यकों की आबादी तेजी से घट रही है। अभी गत वर्ष ही अमेरिकी मानवाधिकार कार्यकर्ता रिचर्ड बेंकिन ने यह खुलासा किया कि पड़ोसी देश बांग्लादेश में हिंदुओं की आबादी तेजी से घट रही है। उनके मुताबिक शेख हसीना और खालिदा जिया के अंतर्गत बांग्लादेशी सरकारें उनलोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं कि जो हिंदुओं के खिलाफ काम कर रहे हैं। बेंकिन के आंकड़ों पर गौर करें तो बांग्लादेश की कुल आबादी 15 करोड़ है जिसमें से 90 प्रतिशत मुसलमान हैं। हिंदू आबादी घटकर 9.5 प्रतिशत रह गयी है। जबकि 1974 में हिंदुओं की संख्या कुल आबादी में जहां एक तिहाई थी, वहीं 2016 में यह घटकर कुल आबादी का 15 वां हिस्सा रह गयी है। बेंकिन के आंकड़ों के इतर इतिहास में जाएं तो 1947 में भारत विभाजन के समय पूर्वी पाकिस्तान यानी आज के बंगलादेश में हिंदुओं की आबादी 30 फीसद थी जो आज घटकर 8.6 फीसद रह गयी है। बांग्लादेश जब पूर्वी पाकिस्तान हुआ करता था तो उस समय की पहली जनगणना में मुस्लिम आबादी 3 करोड़ 22 लाख और हिंदू आबादी 92 लाख 40 हजार थी। साढ़े छः दशक बाद आज मुस्लिम आबादी 16 करोड़ के पार पहुंच चुकी है जबकि हिंदू आबादी महज 1 करोड़ 20 लाख पर सिकुड़ी हुई है। सवाल उठना लाजिमी है कि अगर बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदु सुरक्षित हैं तो मुसलमानों की आबादी की तुलना में उनकी आबादी में आनुपातिक वृद्धि क्यों नहीं हुई? गौर करें तो इसके दो मुख्य कारण हैं। एक सुनियोजित रणनीति के तहत अल्पसंख्यक हिंदुओं का कत्ल और दूसरा उनका धर्मांतरण। आमतौर पर बंगलादेश का हिंदू जनमानस राजनीतिक और आर्थिक रुप से कमजोर है। संसद से लेकर विधानसभाओं में उसकी भागीदारी नामात्र है। आतंकी व कट्टरपंथी संगठनों के अलावा बेगम खालिदा जिया के नेतृत्ववाले राजनीतिक संगठन बीएनपी के समर्थक भी उन्हें लगातार निशाना बना रहे हैं। यह तथ्य है कि जब भी बेगम खालिदा जिया की नेतृत्ववाली बीएनपी सत्ता में आयी हिंदू अल्पसंख्यकों पर अत्याचार बढ़ा। खालिदा सरकार इस्लामिक कट्टरपंथियों को हिंदुओं के खिलाफ भड़काती है। यह तथ्य है कि 2001 में जब बंगलादेश नेशनलिस्ट पार्टी की अगुवाई वाली गठबंधन सरकार सत्ता में आयी तो योजना बनाकर हिंदुओं का नरसंहार किया गया। उसके समर्थक हिंदुओं के घर जलाए और संपत्तियों की लूटपाट की। हिंदू अल्पसंख्यक महिलाओं के साथ शर्मनाक कृत्य किए। बेगम खालिदा सरकार की डर से लाखों हिंदू बंगलादेश छोड़कर भारत आ गए। बंगलादेश नेशनलिस्ट पार्टी की सत्ता से विदायी के बाद जब अवामी लीग की सरकार सत्ता में आयी तो उसने हिंदू अल्पसंख्यकों को न्याय का भरोसा दिया। उसने खालिदा सरकार के दौरान नरसंहार की जांच के लिए तीन सदस्यीय न्यायिक आयोग का गठन किया। आयोग ने 25 हजार से अधिक लोगों को हिंदुओं पर हमले का जिम्मेदार ठहराया और उन पर मुकदमा चलाने का निर्देश दिया। शर्मनाक तथ्य यह कि हमलावरों में खालिदा सरकार के 25 पूर्व मंत्री भी शामिल हैं। लेकिन अरसा गुजर जाने के बाद भी गुनाहगारों के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई। आज भी वे खुलेआम विचरण कर रहे हैं। बांग्लादेश में न केवल अल्पसंख्यकों की निर्मम हत्याएं हो रही है बल्कि उनके संवैधानिक अधिकारों को भी सुनियोजित तरीके से समाप्त किया जा रहा है। खालिदा सरकार के दौरान एक साजिश के तहत हिंदुओं के प्रापर्टीज अधिकारों को सीमित किया गया। हालंाकि अवामी लीग की सरकार ने 2011 में ‘वेस्टेज प्रापर्टीज रिटर्न (एमेंडमेंट) बिल 2011 पारित कर जब्त की गयी या मुसलमानों द्वारा कब्जाई गयी हिंदुओं की जमीन को वापस करने का कानून बनाया। लेकिन अभी तक उसका कोई सार्थक नतीजा सामने नहीं आया है। कानून के जानकारों की मानें तो इस कानून के पारित होने के बाद भी अल्पसंख्यकों को 43 साल पुरानी अपनी जमीन वापस लेना टेढ़ी खीर है। सच तो यह है कि इस बिल के पारित होने के बाद मुस्लिम कट्टरपंथियों में हिंदुओं की जमीन कब्जाने की होड़ मच गयी है। अगर कट्टरपंथियों के समर्थन वाली बंगलादेश नेशनलिस्ट पार्टी सरकार में आती है तो इस प्रवृत्ति को और बढ़ावा मिलेगा। बता दें कि 1960 में एक विवादित कानून के तहत हिंदुओं की जमीनें हड़प ली गयी थी। यह कानून पूर्वी पाकिस्तान प्रशासन ने लागू किया था और उसम समय बंगलादेश पाकिस्तान का हिस्सा था। 1971 में बंगलादेश बनने के बाद इस कानून का विरोध हुआ और 2008 के चुनाव प्रचार में अवामी लीग ने वादा किया कि सत्ता में आने पर हिंदुओं की संपत्ति से जुड़े नियमों में बदलाव करेंगे। सरकार ने अपने वादे के मुताबिक ‘वेस्टेज प्रापर्टीज रिटर्न ( एमेंडमेंट) बिल 2011 पारित की है लेकिन अल्पसंख्यक हिंदू अपनी प्रापर्टीज पर काबिज नहीं हो सके हैं। बेहतर होगा कि भारत सरकार बांग्लादेशी अल्पसंख्यक हिंदुओं की सुरक्षा के लिए बांग्लादेश की सरकार पर दबाव बनाए। वैश्विक समुदाय को भी बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचार को रोकने के लिए कदम उठाना चाहिए। अन्यथा बांगलादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों की स्थिति पाकिस्तान के हिंदू अल्पसंख्यकों जैसी हो जाएगी।