20 सदी के दो दशक पूरा होने के साथ ही देश में सम्पूर्ण आजादी की मांग तेज हो गई थी। इस दौर के प्रखर राष्ट्रवाद की तपिश में लाखों युवा अपनी आहुती देने को तैयार थे। तो दूसरी ओर महात्मा गांधी के उदय के साथ ही अंग्रेजों से लड़ाई के लिए अहिंसा को हथियार बनाया जा रहा था। इसी समय फरवरी 1922 में चौरा-चौरी कांड में हिंसा के बाद गांधी जी ने ने असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया जिससे उस समय के युवा वर्ग में जो निराशा उत्पन्न हुई उसका निराकरण काकोरी कांड ने ही किया था।
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कई ऐतिहासिक आंदोलन हुए जिसमें काकोरी कांड का महत्वपूर्ण स्थान है। आजादी के इतिहास में असहयोग आंदोलन के बाद काकोरी कांड को एक बहुत महत्वपूर्ण घटना के तौर पर देखा जा सकता है। क्योंकि इसके बाद आम जनता अंग्रेजी राज से मुक्ति के लिए क्रांतिकारियों की तरफ और भी ज्यादा उम्मीद से देखने लगी थी. लोगों में गरम दल के प्रति सम्मान बढ़ने लगा और आज़ादी की नई किरण सामने नज़र आने लगी।
9 अगस्त 1925 को क्रांतिकारियों ने काकोरी में एक ट्रेन में डकैती डाली थी। इसी घटना को ‘काकोरी कांड’ के नाम से जाना जाता है. काकोरी ट्रेन डकैती में खजाना लूटने वाले क्रांतिकारी देश के विख्यात क्रांतिकारी संगठन ‘हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन’ के सदस्य थे. क्रांतिकारियों का मूल मकसद ट्रेन से सरकारी खजाना लूटकर उन पैसों से हथियार खरीदना था ताकि अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई और प्रभावी ढंग से लड़ी जा सके। काकोरी कांड को अंग्रेजों ने अपनी प्रतिष्ठा का विषय बना लिया था। जिसका पता हमें इस बात से चलता है कि महज 4600 रुपये लूटने वाले इन क्रांतिकारियों को गिरफ्तार करने के लिए करीब 10 लाख रुपये खर्च किए थे।
इस लूट की व्याख्या करते हुए लखनऊ के पुलिस कप्तान मि. इंग्लिश ने कहा कि , ‘डकैत क्रांतिकारी खाकी कमीज और हाफ पैंट पहने हुए थे। उनकी संख्या 25 थी। यह सब पढ़े-लिखे लग रहे थे. पिस्तौल में जो कारतूस मिले थे, वे वैसे ही थे जैसे बंगाल की राजनीतिक क्रांतिकारी घटनाओं में प्रयुक्त किए गए थे।’
इस घटना के बाद अंग्रेजी हुकूमत ने क्रांतिकारियों को पकड़ने के लिए पूरी ताकत झोंक दी थी. देश के कई हिस्सों में बड़े स्तर पर गिरफ्तारियां हुई. हालांकि काकोरी ट्रेन डकैती में 10 आदमी ही शामिल थे, लेकिन 40 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया. जवाहरलाल नेहरू, गणेश शंकर विद्यार्थी समेत बड़े-बड़े लोगों ने जेल में क्रांतिकारियों से मुलाकात की। काकोरी कांड का ऐतिहासिक मुकदमा लगभग 10 महीने तक लखनऊ की अदालत रिंग थियेटर में चला. इस पर सरकार का 10 लाख रुपये खर्च हुआ. छह अप्रैल 1927 को इस मुकदमे का फैसला हुआ. जज हेमिल्टन ने धारा 121अ, 120ब, और 396 के तहत क्रांतिकारियों को सजा सुनाईं।