महाराष्ट्र में शिवसेना पर वर्चस्व की लड़ाई अब संसद से लेकर चुनाव आयोग तक पहुँच गई है। पार्टी में बगावत के बाद अब चुनाव चिह्न को लेकर दोनों गुट आमने सामने हैं। पार्टी के कुल 55 विधायकों में 40 विधायकों के साथ अलग होने वाले एकनाथ शिंदे गुट खुद को असली शिवसेना होने का दावा कर रहा है। इसके साथ ही गुट ने दावा किया है कि उनके गुट के राहुल शेवाले को लोकसभा में नेता की मान्यता दे दी है। वहीं पार्टी पर अधिकार के लिए शिंदे गुट ने केंद्रीय चुनाव आयोग का दरवाजा खटखटया है। शिंदे गुट का कहना है कि उसके साथ ज़्यादातर सांसद- विधायकों का समर्थन है। ऐसे में पार्टी के आधिकारिक सिंबल तीर-धनुष पर उसका ही अधिकार है। वहीं, उद्धव ठाकरे की तरफ से चुनाव आयोग में एक कैवियट दाखिल कर कहा गया है कि आयोग उनका पक्ष सुने बिना पार्टी सिंबल को लेकर कोई भी फैसला ना करे।
ये पहली बार नहीं है जब एक पार्टी में टूट या बगावत के बाद दो गुटों ने सिंबल पर अपना दावा किया है। आयोग के पास पहले भी इस तरह के कई मामले पहुंचे हैं। जानते हैं कि जब दो गुट एक ही सिंबल पर दावा करते हैं तो इस बारे में निर्वाचन आयोग कैसे फैसला करता है।इस तरह का पहला मामला साल 1969 में राष्ट्रपति चुनाव के दौरान तब आया था जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थी। कांग्रेस सिंडिकेट की तरफ से नीलम संजीव रेड्डी आधिकारिक प्रत्याशी थे। उस चुनाव में वीवी गिरी निर्दलीय प्रत्याशी थे। माना जा रहा था कि इंदिरा गांधी का उनको समर्थन था। इंदिरा गांधी ने अंतरआत्मा की आवाज पर वोट देने की अपील की थी। कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष निंजलिगप्पा ने पार्टी प्रत्याशी को वोट देने के लिए व्हिप जारी किया। हालांकि, बड़े पैमाने पर कांग्रेस के नेताओं ने वीवी गिरी को वोट दिया। गिरी चुनाव जीत कर राष्ट्रपति बन गए। इसके बाद सिंडिकेट ने इंदिरा गांधी को पार्टी से निकाल दिया। हालांकि, बहुमत होने के कारण इंदिरा ने अपनी सरकार बचा ली थी। इसके बाद मामला चुनाव आयोग पहुंचा। उस समय आयोग ने कांग्रेस सिंडिकेट को ही असली कांग्रेस माना था। उस समय अधिकतर पदाधिकारी सिंडिकेट के साथ थे। ऐसे में पार्टी सिंबल दो बैलों को जोड़ा भी सिंडिकेट को ही मिला था। बाद में इंदिरा गांधी ने कांग्रेस (ई) पार्टी बनाई। आयोग की ओर से उन्हें बछड़ा पार्टी सिंबल मिला।
गौरतलब है कि इस तरह के विवाद के निपटारे के लिए चुनाव चिह्न (आरक्षण और आवंटन) आदेश, 1968 का प्रावधान है। इसके तहत चुनाव आयोग के पास राजनीतिक दलों को मान्यता देने और चुनाव चिन्ह आवंटित करने का अधिकार है। आदेश के पैरा 15 के तहत, चुनाव आयोग प्रतिद्वंद्वी समूहों या किसी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल के वर्गों के बीच विवादों को अपने नाम और प्रतीक पर दावा करने का फैसला कर सकता है। इसके लिए कुछ निर्धारित शर्तें हैं। शर्तें के पूरा होने को लेकर संतुष्ट होने के बाद ही आयोग सिंबल आवंटन करने का फैसला करता है।