डॉ जया आनंद
प्रेम पाना
आसान है
इसके लिए
अहं को कूटना
पीसना है
बस थोड़ा सा
सरल होना है
….और
सरल होना शायद!
कितना कठिन !!!
…पर मेरे लिए नहीं,
कबीर को थोड़ा तो समझा
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2.
प्रेम
आत्मा को उज्ज्वल
करता हुआ
विस्तार देता है
संकुचन नहीं,
विचारों को
परिष्कृत करता हुआ
उदार बनाता है
विकृत नहीं
प्रेम
व्यक्तित्व को
सहज करता हुआ
सरल बनाता है
जटिल नहीं ,
जीवन में
विश्वास जगाता हुआ
उसे सुंदर बनाता है
विद्रूप नहीं
प्रेम यदि
आत्मा को
करता है संकुचित
विचारों को
करता है विकृत
व्यक्तित्व को
बनाता है जटिल
जीवन को
बनाता है विद्रूप
तो फिर ..
वो प्रेम नहीं !
…डॉ जया आनंद
प्रवक्ता (सीएचएम कॉलेज ,मुम्बई)
स्वतंत्र लेखन – विविध भारती, मुम्बई आकाशवाणी,दिल्ली आकाशवाणी, लखनऊ दूरदर्शन, समावर्तन, पुरवाई, अटूट बंधन,अरुणोदय ,परिवर्तन, हस्ताक्षर,साहित्यिकडॉट कॉम , मातृभूमि , प्रतिलिपि ,हिंदुस्तान टाइम्स आदि में रचनाओं का प्रकाशन
अनुवाद -‘तथास्तु’ पुस्तक (गांधी पर आधारित) ,संस्थापक – विहंग एक साहित्यिक उड़ान (हिंदी मराठी भाषा संवर्धनाय)।
प्रकाशित साझा उपन्यास– हाशिये का हक
प्रकाशित साझा कहानी संग्रह– ऑरेंज बार पिघलती रही