लखनऊ : काव्य का न तो कोई बना- बनाया खांका है न ही पैमाना है| मन के भाव जब शब्दों में आकार लेते हैं तो कविता का जन्म होता है| आम आदमी भी जो कहता सुनता है वो एक कविता हो सकती है| विद्योत्तमा फ़ाउंडेशन की लखनऊ इकाई की गोष्ठी में राष्ट्रीय अध्यक्ष सुबोध मिश्रा ने ये विचार प्रकट किये|
संस्था की मीडिया सचिव सुश्री आर्यावर्ती सरोज के आह्वान पर आयोजित काव्य गोष्ठी में कवियों ने एक से बढ़कर एक कविताएँ प्रस्तुत की| संस्था की लखनऊ इकाई की अध्यक्ष अलका प्रमोद ने गांधारी के जरिये नारी को आँखों की पट्टी उतार फेंकने का आह्वान किया|
गोष्ठी का प्रारम्भ दीप प्रज्ज्वलन और माँ सरस्वती को पुष्पार्पण से हुई । वाणी वंदना डा अर्चना प्रकाश ने की। गोष्ठी में उपस्थित पुराने सदस्यों एवं कुछ नये अतिथियों ने कार्यक्रम की गरिमा बढ़ाई और कविताओं की उत्कृष्ट प्रस्तुतियाँ दीं। कार्यक्रम में मुख्य रूप से महा सचिव विनीता मिश्रा, संगठन सचिव डा करुणा पांडे, रेणु द्विवेदी , कविता काव्य सखी , निवेदिता श्रीवास्तव निवी, अलका अस्थाना, अर्चना प्रकाश, योगेश सिंह, मनीष शुक्ला, विनोद द्विवेदी ,सुबोध मिश्रा आदि उपस्थित रहे| कार्यक्रम का संचालन संस्था की अध्यक्ष अलका प्रमोद ने किया ।