Thursday, November 21, 2024
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घुटन से आजादी का प्रतीक… इंटरनेशनल ट्रांसजेंडर डे आफ विजिबिलिटी

लेखक : डॉ आलोक चांटिया

अखिल भारतीय अधिकार संगठन

ट्रांसजेंडर यानी लिंग के परे और यहीं पर यह समझने की आवश्यकता है कि जैविक शब्द सेक्स का सांस्कृतिक रूपांतरण ही जेंडर है जिसके आधार पर मानव संस्कृति ने अपने उद्भव के समय से लेकर आज तक सिर्फ स्त्री और पुरुष को ही सामान्य मानते हुए सारे सांस्कृतिक कार्यों के लिए उचित और मानक के अनुरूप माना है लेकिन त्रुटि भी प्रकृति का एक प्राकृतिक नियम है और वह भी शृष्टि के समस्त जीव-जंतुओं पर प्रभावी होता है यही कारण है कि कई बार ऐसी स्थितियां आती हैं जब मानक के अनुरूप स्त्री या पुरुष अपने शरीर में उस तरह के लक्षण नहीं पाते हैं जो उनमें  होने चाहिए अनुवांशिकता के के आधार पर भी मानव के शरीर में भिन्नता पाई जा सकती है और मनोवैज्ञानिक स्तर पर भी कोई महिला होते हुए भी अपने अंदर पुरुष के गुणों को ज्यादा अनुभव करता है या फिर पुरुष होते हुए उसके अंदर स्त्री के गुण ज्यादा महसूस होते हैं यही कारण है कि जब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और शरीर की स्वयं की स्वतंत्रता का एक प्रयास विश्व स्तर पर धीरे-धीरे आरंभ हुआ तो वह लोग जो इस जटिलता के साथ जी रहे थे एक घुटन महसूस कर रहे थे उन्होंने दुनिया और समाज के सामने यह कहना आरंभ किया कि वे वह नहीं है जो प्रदर्शित हो रहा है और संक्रमण के इस काल में धीरे-धीरे उनकी अपनी पहचान बनने लगी और वर्ष 2009 में मिशीगन की राहिल क्रैनडन द्वारा 31 मार्च को अंतरराष्ट्रीय ट्रांसजेंडर डे मनाया जाने का प्रयास शुरू हुआ जिसमें इस बात की जागरूकता और लोगों को संवेदनशील करने का प्रयास किया गया कि समाज ट्रांसजेंडर के अस्तित्व को स्वीकार है और उन्हें भी समान रूप से आगे बढ़ने का अवसर प्रदान करें

ट्रांसजेंडर में हर व्यक्ति ने बचपन से किन्नर को भी देखा है लेकिन यह समझना आवश्यक  है कि विज्ञान की परिभाषा में यह क्या होते हैं यह एक सामान्य सब वैज्ञानिक तथ्य है कि मानव जीवन 46 गुण सूत्रों से मिलकर बना है जिसमें से 23 गुणसूत्र मां की या महिला से प्राप्त होते हैं और 23 गुणसूत्र बच्चे को पिता या पुरुष से प्राप्त होते हैं प्रजनन की क्रिया के उपरांत यह 23 जोड़ी गुणसूत्र ही गर्भ में मानव जीवन का निर्माण करते हैं लेकिन कोशिका विभाजन के मेटा फेस में कई बार ऐसी स्थिति आती हैं कि यही गुणसूत्र अपने विखंडन में अनियमित हो जाते हैं और इस अनियमितता के कारण ही उस तरह के पुरुष या स्त्री का निर्माण नहीं हो पाता है जो सामान्य रूप से हम देखते हैं और यह भी हम जानते हैं की लड़की के जन्म के लिए एक्स एक्स गुणसूत्र और लड़के के पैदा होने के लिए एक्स वाई गुणसूत्र जिम्मेदार होते हैं लेकिन कई बार ऐसा होता है कि गुणसूत्रों में अनियमितता हो जाती है और लड़की पैदा तो होती है वह दिखाई भी लड़की की तरह ही देती है लेकिन वास्तव में वह  पूर्ण रूप से विकसित लड़की नहीं बन पाती है क्योंकि उसका अनुवांशिक स्तर पर गुणसूत्रों का जोड़ा अनुपस्थित होता है अर्थात XO की संरचना के कारण ही एक्स एक्स से बनने वाली लड़की एक अधूरी लड़की की तरह दिखाई देती है जिसका चेहरा शरीर तो लड़की जैसा होता है लेकिन जननांग  गर्भाशय विकसित नहीं हो पाते हैं और इस अनियमितता को टर्नर सिंड्रोम कहते हैं सिंड्रोम का तात्पर्य है एक साथ शरीर में कई अनियमितता का उत्पन्न हो जाना इसी तरह से दूसरा सिंड्रोम क्लाइनफेल्टर होता है इसमें लड़के के बनने की अनुवांशिक संरचना में एक्स वाई की जगह 2X और एक वाई हो जाता है और जन्म तो लड़के का होता है दिखाई भी वह लड़के जैसा देता है लेकिन उसके जननांग पुरुष के अनुरूप नहीं होते हैं और इन्हीं लोगों को हम किन्नर या हिजड़ा कहते हैं लेकिन इसके अतिरिक्त भी नेचर नर्चर व्यवस्था के अंतर्गत जिसमें अनुवांशिकी और पर्यावरण के कारण मनोवैज्ञानिक स्तर पर भी बहुत से पुरुष और स्त्री अपने अंदर जो होते हैं उसके विपरीत अपने अंदर लक्षणों को महसूस करते हैं जैसे पुरुष को अपने अंदर महिला के लक्षण महसूस होते हैं महिला को अपने अंदर पुरुष के लक्षण महसूस होते हैं और यही कारण है कि पूरे वैश्विक स्तर पर एलजीबीटीक्यू की बहस चल रही है लोग अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं क्योंकि आज तक जितनी भी वैश्विक स्तर पर नौकरी हैं सामाजिक पद हैं राजनीतिक पद हैं उनमें सिर्फ महिला और पुरुष को ही महत्व दिया गया है कभी ट्रांसजेंडर को कोई स्थान नहीं दिया गया यही कारण है कि जब वैश्विक स्तर पर ट्रांसजेंडर भी अपने अस्तित्व और अपनी गरिमा पूर्ण जीवन की लड़ाई लड़ने लगे तो उन्हें कई विषमता और कठिनाइयों का सामना करना पड़ा समाज में उन्हें हीन भावना से देखा गया और उसी के विरुद्ध लोगों में संवेदनशीलता जागरूकता जगाने के लिए दृश्यता का अंतरराष्ट्रीय ट्रांसजेंडर डे मनाए जाने का प्रयास 2009 से चल रहा है

किन्नर के बारे में ज्यादातर लोग यही जानते हैं कि जब भी उनके घरों पर कोई भी शुभ कार्य होता है चाहे बच्चों का जन्म हो चाहे शादी हो मुंडन हो कोई भी शुभ कार्य होता है तो वह आते हैं गाना गाते हैं अपना आशीर्वाद देते हैं और एक धनराशि लेकर जाते हैं जिससे वह अपना जीवन जीते हैं यह भी एक सत्य है कि इनको जलाया नहीं जाता है पानी में मरने के बाद प्रवाहित कर दिया जाता है इनकी लाश के लिए टिट्ठी नहीं बनती है इनकी लाश को खड़े-खड़े ले जाया जाता है लेकिन अब बहुत कुछ बदल रहा है यदि हम भारत के संदर्भ में देखें तो अभी नहीं जगत में फिल्म उद्योग में बॉबी डार्लिंग नव्या सिंह जैसे ट्रांसजेंडर अभिनेत्रियों से हम सब भलीभांति परिचित हैं जिन्होंने यह स्थापित किया कि अपने लिंग को लेकर किसी के मन में कुंठा नहीं होनी चाहिए और वह भी इस दुनिया में अपनी प्रतिभा को उसी तरह दिखा सकते हैं जैसे दूसरे दिखा रहे हैं और उनके इस संघर्ष को दुनिया ने स्वीकार भी किया आज यह कोई नहीं कह सकता है कि ट्रांसजेंडर में किसी भी तरह की क्षमताओं की कमी होती है प्रिया वीएस ने ना सिर्फ केरल में डॉक्टर होने की परीक्षा दी उसमें उतरी नहीं बल्कि ट्रांसजेंडर के रूप में एक सफल डॉक्टर के रूप में दुनिया को फिर एक आईना दिखाने का प्रयास किया कि ट्रांसजेंडर भी उन्हीं की तरह एक बराबर का मानव है 2017 में ज्योति मंडल पहली ट्रांसजेंडर जज बनी और इस बात को एक गति दी कि न्याय की दुनिया में भी ट्रांसजेंडर उतना ही प्रभावी ढंग से कार्य करता है जितना सामान्य स्त्री पुरुष करते हैं यदि एक निर्विवाद सत्य है कि ट्रांसजेंडर को हमने हमेशा एक अचंभे वाली वस्तु की तरह देखा है उसको देखकर हमारे मन में कौतूहल रहा है हमने सिर्फ अपने आनंद के लिए उनके जीवन को देखा है लेकिन पद्मिनी प्रकाश ने पहली न्यूज़ एंकर बनकर यह स्थापित किया कि ट्रांसजेंडर सिर्फ गाने बजाने और चिड़ियाघर के जानवरों की तरह देखने के लिए नहीं बने हैं वह कुछ भी कर सकते हैं और उनके इसी प्रयास के कारण 1994 में पहली बार ट्रांसजेंडर को मतदान का अधिकार प्राप्त हुआ क्योंकि उससे पहले तक यह कोई व्यवस्था नहीं थी कि स्त्री या पुरुष लिंग के अतिरिक्त कोई भी मतदान का प्रयोग कर सकता है और उसका सुखद परिणाम या रहा शबनम मौसी राजस्थान से विधायक चुनी गई और वह भारत की पहली ट्रांसजेंडर विधायक बनी इन सारी बातों से यह स्थापित है कि ट्रांसजेंडर उतने ही सामान्य तरीके से कार्य करते हैं जितने सामान्य तरीके से एक सामान्य स्त्री पुरुष अपना कार्य करते हैं यही कारण है कि लोगों की रक्षा के लिए भी ट्रांसजेंडर ने अपना प्रयास किया और पृथक्करण यशिनी ने तमिलनाडु में 6 साल से ज्यादा कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद जिस पुलिस विभाग सेवा ट्रांसजेंडर होने के कारण परीक्षा में बैठने से अयोग्य कर दी गई थी उसी पुलिस विभाग में कानूनी लड़ाई लड़कर वह पहली सब इंस्पेक्टर बनी

आज का युग उत्तर आधुनिकता का योग है प्रत्येक व्यक्ति का अपना मत है और उसका अपना दृष्टिकोण है इसलिए केवल समाज द्वारा यह निश्चित किया जाना कि कौन सा व्यक्ति समाज के लिए उपयुक्त है और कौन सा नहीं है यह एक सही प्रक्रिया नहीं है बल्कि व्यक्ति के द्वारा इस सोच को ज्यादा महत्व दिया जाना चाहिए कि वह अपने बारे में समाज के प्रति क्या दृष्टिकोण रखता है और अपने योगदान को समाज में किस तरह दे पा रहा है जोकि ट्रांसजेंडर के तमाम प्रयासों और उनकी सफलताओं से यह स्थापित है कि ट्रांसजेंडर को सिर्फ एक कौतूहल का विषय ना समझ कर उन्हें उस रूप में भी समझना चाहिए इस रूप को उन्होंने डॉ जज वकील विधायक इंस्पेक्टर बनकर स्थापित किया है अब इस परंपरा को खत्म किया जाना चाहिए कि यदि किसी व्यक्ति को अपने शरीर में सामान्य स्त्री पुरुष जैसे गुणों नहीं दिखाई दे रहे हैं तो वह समाज का हिस्सा नहीं है उसे जन्म के साथ ही गुमनामी जिंदगी की ओर अग्रसर कर देना चाहिए उसे बाहर के लोगों को जानने नहीं देना चाहिए या फिर इसे पूर्व के तरह ही किन्नर या हिजड़ों को दे देना चाहिए क्योंकि अब स्थितियां बदल गई हैं आप ट्रांसजेंडर वह सब कुछ कर सकते हैं जिसको समाज ने जानबूझकर संस्कृति के नाम पर प्रतिबंधित किया था अब इस मकड़जाल से भी व्यक्ति को ऊपर उठना होगा कि सिर्फ शिखंडी भीष्म पितामह को मारने के लिए ही उपयुक्त है बल्कि इस तरह की शारीरिक विशेषताओं वाले लोगों में किसी भी महा योद्धा को हराने की शक्ति भी होती है इस दृष्टिकोण को उत्पन्न करना होगा हमें अर्धनारीश्वर के उस स्वरूप के इस वैज्ञानिकता को समझना होगा कि कोई ना पूरा आदमी होता है ना कोई पूरा औरत होता है बल्कि उसके शरीर में दोनों के गुणों के समावेश से ही जन्म होता है और यदि जन्म लेने की प्रक्रिया में किसी स्त्री या पुरुष के गुणों में कमी या अधिकता हो जाती है तो हमें उसे स्त्री या पुरुष की तरह ही मानते हुए सिर्फ बच्चा और प्रजनन और संबंधों को बनाने की कड़ी से ऊपर जाकर इन्हें समाज के वह सारे अवसर प्रदान करना है जो हम स्वयं अपने लिए सोचते हैं तभी अंतर्राष्ट्रीय ट्रांसजेंडर डे अपने प्रासंगिकता को भी सिद्ध कर पाएगा और हम भी सार्वभौमिक मानवाधिकार घोषणा पत्र 1948 के प्रथम अनुच्छेद के अनुसार इस बात को वास्तविकता में स्थापित कर पाएंगे कि इस पृथ्वी पर जो भी व्यक्ति पैदा हो रहा है जन्म ले रहा है वह जन्म से ही स्वतंत्र और समानता का अधिकार लेकर आ रहा है उसको बाधित करके उसके मानवाधिकार के उल्लंघन का कोई भी अधिकार किसी को प्राप्त नहीं है और यही विश्व बंधुत्व समानता का वास्तविक बोध होगा|  

लेखक विगत दो दशक से मानवाधिकार जागरूकता कार्यक्रम चला रहे हैं|

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