Thursday, November 21, 2024
Homeमनोरंजनलखनऊ से निकली थी मौसीक़ी सम्राट तलत महमूद की गायिकी

लखनऊ से निकली थी मौसीक़ी सम्राट तलत महमूद की गायिकी

लेखक दिलीप कुमार

तलत महमूद’ एक ऐसा नाम, जो ग़ज़ल, मौसीक़ी, संगीत की दुनिया का सबसे बड़ा नाम है, जिनकी शख्सियत का तिलिस्म आज भी कायम है. तलत महमूद साहब ग़ज़ल की दुनिया के तानसेन कहे जाते हैं, जिनकी आवाज़ में एक सौम्य लहजा, उनकी जुबां से लखनवी नफासत टपकती थी. बेहद मजाकिया, जिनका मन घुमक्कड़ी की ऐयाशी में रमता था, बेहद लोकप्रिय होते हुए कॅरियर छोड़कर विश्व भ्रमण पर निकल जाते थे. आम तौर पर ऐसे बेपरवाह जियाले इंसान मुझे बहुत प्रभावित करते हैं. भारत के प्रसिद्ध पार्श्व, एवं ग़ज़ल गायक और फ़िल्म अभिनेता थे. इन्होंने ग़ज़ल गायक के रूप में बहुत ख्याति प्राप्त की थी. अभिनय के लिहाज से भले ही औसत रहे, लेकिन उनकी पर्सनैलिटी जेम्स बॉन्ड, जैसी सुपरस्टार ग्रेगरी पेक की तरह दिखते थे. शुरुआत में उन्होंने ‘तपन कुमार’ के नाम से गाने गाये थे. बेहद सौम्य और विनम्र स्वभाव के तलत महमूद के लिए संगीत एक जुनून था, जबकि उनकी अदाकारी ने उन्हें बहुमुखी प्रतिभा के धनी कलाकार के रूप में पहचान दिलाई.

तलत महमूद का जन्म लखनऊ के एक खानदानी मुस्लिम परिवार में 24 फ़रवरी, 1924 को हुआ था. घर में संगीत और कला का सुसंस्कृत परिवेश इन्हें मिला. हालाँकि फ़िल्मों में गाने की इजाज़त नहीं थी, क्योंकि उनके पिता के प्रिंसिपल उनको इसकी इजाजत नहीं देना चाहते थे, लिहाजा उन्होंने तो ठान लिया था, लेकिन तलत साहब की बुआ को तलत की आवाज़ की ‘लरजिश’, पसंद थी. भतीजे तलत महमूद बुआ से प्रोत्साहन पाकर गायन के प्रति आकर्षित होने लगे. इसी रुझान के चलते ‘मोरिस संगीत विद्यालय’, वर्तमान में ‘भातखंडे संगीत विद्यालय’, में उन्होंने दाखिला लिया.शुरुआत में तलत महमूद ने लखनऊ आकाशवाणी से गाना शुरू किया. उन्होंने सोलह साल की उम्र में ही पहली बार आकाशवाणी के लिए अपना पहला गाना रिकॉर्ड करवाया था. इस गाने को लखनऊ शहर में काफ़ी प्रसिद्धि मिली. इसके बाद प्रसिद्ध संगीत कम्पनी एचएमवी की एक टीम लखनऊ आई और इस गाने के साथ-साथ तीन और गाने तलत से गवाए गए. इस सफलता से तलत की किस्मत चमक गई. यह वह दौर था, जब सुरीले गायन और आकर्षक व्यक्तित्व वाले युवा सिल्वर स्क्रीन पर चमकने के ख्वाब देखा करते थे.

तलत साहब भी इससे अछूते नहीं थे, उस दौर में अधिकांश गायक हीरो थे. केएल सहगल से प्रेरित होकर तलत महमूद साहब ने भी दोहरा मगर एकाकार ख्वाब पाल लिया था. गायक और अभिनेता बनने की चाहत लिए 1944 में लखनऊ से कोलकाता के लिए हिजरत कर गए. आजादी से पहले फिल्म कला का मुख्य केंद्र कलकत्ता ही होता था. तलत साहब ने शुरुआत में तपन कुमार के नाम से गाने गाए. जिनमें कई बंगाली गाने भी थे. कैमरे के सामने आते ही तलत महमूद तनाव में आ जाते थे. जबकि गायन में सहज महसूस करते थे. कोलकाता में बनी फ़िल्म ‘स्वयंसिद्धा’ 1945 में पहली बार उन्होंने गाने भी गाए. अपनी सफलता से प्रेरित होकर बाद में तलत ने मुंबई और संगीतकार अनिल विश्वास से मिले. गाने की यह रफ्त़ार तलत साहब लंबे समय तक इसलिए कायम नहीं रख पाए क्योंकि¸ गायक के रूप में ख्य़ाति से उन्हें तसल्ली नहीं थी. वे स्वयं को एक सफल और स्थापित अभिनेता के रूप में देखना चाहते थे¸ बावजूद इस हकीकत के कि वे जितने अच्छे गायक थे¸ उतने अच्छे अभिनेता नहीं!!!!! पर उनकी आवाज़ की लालसा में उन्हें अभिनय का मौका भी दिया जाने लगा. एक ग़ज़ल ‘शुक्रिया अय प्यार तेरा’ गाते परदे पर नज़र आए. फिर सोहराब मोदी ने उन्हें सुरैया जैसी चोटी की नायिका का हीरो बना दिया था. ए आर कारदार ने दिले नादान में नयी तारिका चांद उस्मानी के साथ, डाक बाबू¸ एक गांव की कहानी वगैरह को मिलाकर तलत साहब ने लगभग पंद्रह फ़िल्मों में अभिनय किया. तलत साहब गायिकी के उस्ताद थे, लेकिन उनकी अदाकारी के शौक ने उनकी गायिकी को खासा प्रभावित किया.

कभी – कभार लगता है, नौशाद साहब ने ठीक ही कहा था, तलत साहब बेपरवाह इंसान हैं. जिन्होंने गायिकी पर समुचित रूप से समय न देने से पिछड़ने लगे थे. धीरे-धीरे हाशिये पर चले गए थे. जबकि रफी साहब की शख्सियत बढ़ रही थी. गायकी के अलावा तलत करीब 15 हिंदी फिल्मों में एक्टिंग भी की. वो भी नूतन, माला सिन्हा, सुरैया जैसी बड़ी हीरोइंस के साथ. जब उन्हें लगा कि बात बन नहीं रही, तो उन्होंने एक्टिंग छोड़ दी. तलत साहब से एक साक्षात्कार में पूछा गया में एक तो उनका जवाब था- “जनाब, क्या आप उस ग़लती को भूल नहीं सकते? हम भी खतावार हैं. कौन है जिसकी ख्वाहिश नहीं है कि वो भी दिलीप कुमार बने?”

महान संगीतकार मदन मोहन जी कहते थे –

“बहुत से लोग हैं, जो मुहम्मद रफ़ी, मुकेश या किशोर कुमार जैसा गा सकते हैं, लेकिन ऐसा कोई बेहद मुश्किल से ही मिलेगा जो अपनी आवाज़ में तलत महमूद जैसी मधुरता और नज़ाकत पैदा कर सके.”तलत महमूद गाने में हमेशा अच्छे शब्दों को लेकर आग्रही रहे. सस्ते बोलों से उन्हें बेहद चिढ़ थी. गीतकारों को हमेशा ये आशंका रहती थी कि क्या उनका लिखा गाना तलत की पसंद पर खरा उतरेगा?

शुरुआत में तो उन्हें मुंबई में कोई ख़ास सफलती नहीं मिली, लेकिन बाद में मुंबई में प्रदर्शित फ़िल्म ‘राखी’ 1949, ‘अनमोल रतन’1950 और ‘आरजू’1950 से उनको खासी पहिचान मिली. फ़िल्म ‘आरजू’ की ग़ज़ल “ऐ दिल मुझे ऐसी जगह ले चल जहाँ कोई न हो…” ने अपार लोकप्रियता हासिल की. इसके बाद से तलत साहब और दिलीप कुमार का अनूठा संयोग बना, जो कई फ़िल्मों में दोहराया गया. तलत महमूद ने हिन्दी की तैरह फ़िल्मों और तीन बांग्ला फ़िल्मों में अभिनय भी किया. उन्होंने 17 भारतीय भाषाओं में गाने गाये. मशहूर संगीतकार नौशाद ने भी तलत को फ़िल्म ‘बाबुल’ के लिए गाने का मौका दिया. अभिनेता दिलीप कुमार पर फ़िल्माया गया उनका गाना “मिलते ही आँखें दिल हुआ दीवाना किसी का…” बहुत सराहा गया. इसके बाद तो तलत ने लगातार कई फ़िल्मों में लगातार हिट गने दिए और जीते जी तलत साहब किंवदन्ती बन गए. बदलते हुए सिनेमा में 60 का दशक आते-आते तलत साहब की आवाज़ की मांग घटने लगी. क्योंकि अब ग़ज़लों की मांग फ़िल्मों में कम हो गई थी. उसी समय फ़िल्म ‘सुजाता’ के लिए उनका गाना “जलते हैं जिसके लिए…” कूब चला और पसंद किया गया. तलत महमूद ने हिन्दी फ़िल्मों में आखिरी बार ‘वली ए आज़म’ के लिए गाया. इस फ़िल्म का संगीत महान चित्रगुप्त जी ने दिया था.

‘ग़ज़ल’ गायकी को तलत महमूद ने सम्माननीय ऊँचाईयाँ प्रदान कीं. हमेशा उत्कृष्ट शब्दावली की गजलें ही चयनित कीं. सस्ते बोलों वाले गीतों से उन्हें हमेशा परहेज रहा. यहाँ तक कि गीतकार और संगीतकार उन्हें रचना देने से पहले इस बात को लेकर आशंकित रहते थे, कि तलत साहब उसे पसंद करेंगे या नहीं. ग़ज़ल के आधुनिक स्वरूप से वे काफ़ी निराश थे. विशेषकर बीच में सुनाए जाने वाले चुटकुलों पर उन्हें सख्त एतराज था. बतौर तलत महमूद के कथनानुसार- “ग़ज़ल प्रेम का गीत होती है, हम उसे बाज़ारू क्यों बना रहे हैं? इसकी पवित्रता को नष्ट नहीं किया जाना चाहिए” मदन मोहन, अनिल विश्वास और खय्याम की धुनों पर सजे उनके तराने बरबस ही दिल मोह लेते हैं. मुश्किल से मुश्किल बंदिशों को सूक्ष्मता से तराश कर पेश करना उनकी ख़ासियत थी.

तलत साहब फ़िल्मों में गायिकी छोड़ चुके थे. हालाँकि ग़ज़लों के एल्बम खूब रिलीज किया.. खूब कॉन्सर्ट किए एवं बेशुमार दौलत कमाया, के साथ बहुत ज्यादा लोकप्रियता अर्जित की. अब तक तलत साहब वैश्वीक कलाकार बनकर उभरे थे. तलत साहब पहले भारतीय गायक थे, जिन्होंने 1956 में विदेश में पूर्वी अफ्रीका में गायिकी का कॉन्सर्ट दिया था. इसके अलावा उन्होंने लंदन के ‘रॉयल अल्बर्ट हॉल’, अमेरिका के ‘मेडिसन स्क्वेयर गार्डन’ और वेस्टइंडीज के ‘जीन पियरे काम्प्लेक्स’ में भी कार्यक्रम दिए. ऐसा करने वाले पहले अनोखे गायक थे.

1986 में तलत महमूद ने आखिरी रिकार्डिंग ग़ज़ल एल्बम ‘आखिरी साज उठाओ’ के लिए की थी.

नौशाद अली भारतीय संगीतकारों में सबसे आला मुकाम रखते हैं, यह भी छुपा नहीं है, कि नौशाद साहब जितने महान संगीतकार थे, इतने ही सलीका पसंद, अनुशासित इंसान थे, नौशाद साहब अपने गायकों के रिकॉर्डिंग से पहले सिगरेट पीने के सख्त खिलाफ़ थे. तलत महमूद बेहद मजाकिया इंसान थे. लिहाज़ा उन्हें को सिगरेट की आदत थी. नौशाद साहब एवं तलत महमूद साहब दोनों लखनवी पृष्टभूमि से थे. दोनों में हँसी – मज़ाक भी चलता था, अफ़सोस तलत साहब नौशाद साहब की नसीहत नहीं समझ सके. ‘बाबुल’ फिल्म के गाने ‘मेरा जीवनसाथी’ की रिकॉर्डिंग के ऐन पहले तलत महमूद ने नौशाद को चिढ़ाने के मकसद से जानबूझकर उनके सामने सिगरेट पी. धुआं उनके मुंह पर छोड़ा. नौशाद चिढ़ गए, और अगंभीर कहकर नौशाद अली ने फिर कभी उनके साथ काम नहीं किया. संगीत निदेशक नौशाद ने एक बार कहा था

—–“तलत महमूद के बारे में मेरी राय बहुत ऊँची है. उनकी गायिकी का अंदाज़ अलग है. जब वह अपनी मखमली आवाज़ से अनोखे अंदाज़में ग़ज़ल गाते हैं, तो ग़ज़ल की असली मिठास का अहसास होता है. उनकी भाषा पर अच्छी पकड़ है और उन्हें पता है कि किस शब्द पर ज़ोर देना है. तलत के होंठो से निकले किसी शब्द को समझने में कठिनाई नहीं होती. ” निर्देशक और निर्माता महबूब ख़ान जब कभी उनसे मिलते तो तलत के गले पर उंगली रखते और उनसे कहते ख़ुदा का नूर तुम्हारे गले में है.

तलत साहब के गाए हुए कुछ यादगार नगमें

‘” जाएँ तो जाएँ कहा”    

 “सब कुछ लुटा के होश”

” फिर वही शाम, वही गम”   

 ” मेरा करार ले जा”

“शाम-ए-ग़म की कसम”

 ” हमसे आया न गया”

” प्यार पर बस तो नहीं”

” ज़िंदगी देने वाले सुन”

” अंधे जहान के अंधे रास्ते”

” इतना न मुझसे तू प्यार बढ़ा”

” आहा रिमझिम के ये”

” दिले नादाँ तुझे हुआ क्या है”

मालिक, सोने की चिड़िया,, एक गाँव की कहानी, दीवाली की, रात, रफ़्तार , डाक बाबू, वारिस, दिल-ए-नादान, आराम ,सम्पत्ति , तुम और मैं, राजलक्ष्मी जैसी यादगार फ़िल्मों में बतौर हीरो नजर आए. तलत साहब ने अपनी संगीत की लम्बी पारी खेली. उन्होंने हिन्दी समेत कई भाषाओं में क़रीब 800 गीत गाए, जिनमें से उनके कई गीत आज भी लोगों के जेहन में अंकित है. तलत साहब की गायिकी का मयार बहुत ऊंचा है, उनकी धीमी हिलती हुई आवाज़ की ‘लरजिश’ उनको ग़ज़ल की दुनिया का बेताज बादशाह बनाती है, उनकी ग़ज़लों को सुनकर लगता है कि उनका जन्म ही ग़ज़लों को मुकाम तक ले जाने के लिए के लिए हुआ है. तलत साहब कितने बड़े गायक थे इससे समझा जा सकता है कि ग़ज़ल के महान गायक मेहंदी हसन, ग़ज़ल सम्राट जगजीत सिंह, पंकज उदास, चित्रा सिंह, जैसे महान गायक तलत साहब को अपना गुरु मानते थे. तलत साहब जैसे महान लोग कभी मरते नहीं है वो एक अपनी दुनिया रचकर चले जाते हैं. जहां हमारे जैसे सिरफिरे आशिक उस दुनिया में कभी – कभार सुकून की सैर पर चले जाते हैं. खुद तलत साहब फ़िज़ाओं में घुल जाते हैं, ऐसे ही लोगों के कारण धरती गुलजार होती है.. मखमली आवाज़ के जरिए लोगों को अर्से तक अपना दीवाना बनाने वाले इस कलाकार ने 9 मई, 1998 को दुनिया से रुखसत कर गए. महान तलत साहब को मेरा सलाम…

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments