- गोमती पुस्तक मेले में “साहित्य की बोली स्वतंत्रता का अमृत” पर सार्थक चर्चा
लखनऊ। लखनऊ विश्वविद्यालय में नेशनल बुक ट्रस्ट के गोमती पुस्तक मेला में लेखक, निर्देशक और अभिनेता चंद्रभूषण सिंह की पुस्तक “साहित्य की बोली स्वतंत्रता का अमृत” पर संवाद हुआ। समारोह की अध्यक्षता करते हुए उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी की उपाध्यक्ष विभा सिंह ने कहा कि नई पीढ़ी का हिन्दी से दूर होना चिंता का विषय है। संवाद के मुख्य अतिथि ललित कला अकादमी, उत्तर प्रदेश के उपाध्यक्ष गिरीश चंद्र मिश्रा ने साहित्य, कला और संस्कृति को एक-दूसरे का पूरक बताया| विधानसभा अध्यक्ष के मीडिया सलाहकार श्रीधर अग्निहोत्री ने स्वतंत्रता संग्राम को कलम और कविता का संग्राम करार दिया।सूत्रधार डॉ मनीष शुक्ल ने सवालों के जरिये आजादी के सौवें वर्ष में हिन्दी भाषा के भविष्य को उद्घाटित किया| इस अवसर पर पद्मश्री विद्या बिन्दु सिंह, हिन्दी संस्थान के पूर्व अध्यक्ष सुधाकर अदीब, लखनऊ विश्वविध्यालय के पत्रकारिता विभाग के संस्थापक अध्यक्ष प्रो सूर्य कुमार दीक्षित एवं वरिष्ठ साहित्यकार अरुण सिंह भी मौजूद रहे|
ललित कला अकादमी के उपाध्यक्ष गिरीश जी ने कहा कि साहित्य, कला और संस्कृति एक-दूसरे के पूरक हैं। स्वतंत्रता आंदोलन में कविता, नाटक, चित्रकला और गीतों ने मिलकर राष्ट्रभक्ति का वातावरण तैयार किया। उन्होंने कहा कि यह पुस्तक नई पीढ़ी को उस दौर की जीवंत झलक देती है और बताती है कि आज़ादी की लड़ाई को साहित्य और कला ने ही ऊर्जा प्रदान की।
उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी की उपाध्यक्ष विभा सिंह ने कहा कि कहा कि “हमें अपने परिवारों और समाज में बच्चों के बीच हिन्दी का प्रयोग बढ़ाना चाहिए। स्वतंत्रता संग्राम में महिला साहित्यकारों—सरोजिनी नायडू और महादेवी वर्मा—का योगदान अविस्मरणीय है। साहित्य और किताबें हमारे जीवन-मूल्यों को संजोती हैं और नई चेतना का संचार करती हैं। किताबें न केवल ज्ञान बढ़ाती हैं बल्कि व्यक्तित्व को भी गढ़ती हैं। मातृभाषा हिन्दी केवल संचार का साधन नहीं, बल्कि संस्कृति और परंपराओं की संरक्षक भी है। यदि हम इसे जीवन के हर क्षेत्र में अपनाएँगे, तो अगली पीढ़ी और अधिक आत्मविश्वासी और रचनात्मक बन सकेगी।”
वरिष्ठ पत्रकार एवं विधानसभा अध्यक्ष के मीडिया सलाहकार श्रीधर अग्निहोत्री ने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम केवल रणभूमि तक सीमित नहीं था, बल्कि यह कलम और कविता का भी संग्राम था। भारतेंदु हरिश्चंद्र से लेकर मैथिलीशरण गुप्त, प्रेमचंद और हजारी प्रसाद द्विवेदी तक अनेक साहित्यकारों ने जनमानस को जागृत किया। उन्होंने कहा—“साहित्य केवल अभिव्यक्ति नहीं, बल्कि क्रांति का शस्त्र है। हमारी जिम्मेदारी है कि हम मातृभाषा और बोलियों को जीवित रखें।”
लेखक चंद्रभूषण सिंह ने कहा कि पुस्तक लिखने की प्रेरणा उन्हें स्वतंत्रता आंदोलन के साहित्यिक आयामों के अध्ययन से मिली। उन्होंने कहा—“यह कृति दिखाती है कि साहित्य और नाटक ने आम आदमी में स्वतंत्रता की प्यास कैसे जगाई। आज़ादी के अमृतकाल में यह पुस्तक बच्चों को मातृभाषा से जोड़ने और स्वतंत्रता के मूल्यों को समझाने का सेतु बनेगी।”
साहित्यकार एवं मॉडरेटर डॉ. मनीष शुक्ल ने समीक्षा प्रस्तुत करते हुए कहा कि “साहित्य की बोली स्वतंत्रता का अमृत” केवल तथ्यों का संग्रह नहीं है, बल्कि यह उस भावधारा का परिचय है जिसने जनमानस में आज़ादी की ज्वाला प्रज्वलित की। उन्होंने कहा—“लेखक के अभिनेता और निर्देशक होने का लाभ उनकी भाषा में संवादात्मकता और नाटकीयता के रूप में स्पष्ट दिखता है, जिससे पुस्तक पाठकों के लिए भी रोचक और प्रेरणादायी बन जाती है।”
कार्यक्रम में सर्वसम्मति बनी कि यह पुस्तक विद्यार्थियों, शोधार्थियों और साहित्य-इतिहास के जिज्ञासुओं के लिए प्रेरणास्रोत सिद्ध होगी। यह न केवल स्वतंत्रता संग्राम की साहित्यिक परंपरा का गौरवपूर्ण परिचय कराती है, बल्कि मातृभाषा और संस्कृति के संरक्षण का सशक्त संदेश भी देती है।