मनीष शुक्ल
राजनीति में संभावना और उम्मीद कभी ख़त्म नहीं होती हैं| समीकरण बदलते रहते हैं| बीती शाम को ही विपक्ष की एकता का प्रदर्शन करते हुए नीतीश कुमार ने शरद पावर को विपक्ष के प्रधानमंत्री उम्मीदवार का चेहरा बताने पर ख़ुशी जताई थी! अब कर्नाटक विधान सभा के चुनाव परिणाम में कांग्रेस की चमत्कारिक सफलता ने एकबार फिर सारे समीकरण बदल दिए हैं| कहते हैं जीत का कोई विल्कल्प नहीं होता| कर्नाटक में भाजपा के धुँआधार चुनाव प्रचार के बावजूद कांग्रेस की जीत यही कहानी कह रही है|
चुनाव परिणाम साफ़ बता रहे हैं कि कर्नाटक की जनता के लिए चालीस फीसद भ्रष्टाचार बड़ा मुद्दा था| मंहगाई से लोग परेशान थे| और सबसे बड़ी बात राज्य के नेतृत्व से जनता नाराज थी| इसी कारण कर्नाटक की 224 सीटों में से कांग्रेस से चमत्कारिक जीत हासिल हासिल की और भाजपा सरकार में रहे 10 मंत्री चुनाव हार गए| भाजपा का करिश्माई केन्द्रीय नेतृत्व यहाँ फीका पड़ गया जबकि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा कर्नाटक में रंग जमा गई| कांग्रेस की कर्नाटक विजय यात्रा 2024 के लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय स्तर कितना असर दिखाएगी, ये हिंदी भाषी राज्यों में पार्टी के प्रदर्शन से ही तय होगा जिसके लिए मोदी- योगी जैसे करिश्मे की जरुरत होगी|
अब तक बात इसी समय आए उत्तर प्रदेश के नगर निकाय चुनाव परिणामों की बात हो जाए| यहाँ पर एकबार फिर लोगों के सिर पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का जादू लोगों के सिर पर चढ़कर बोला और स्थानीय निकायों में 17 नगर निगमों में से 17 में भाजपा के मेयर जिताकर पार्टी ने अपना पिछला रिकार्ड तोड़ दिया| इसी प्रकार 199 नगरपालिका और नगर पंचायत की 544 सीटों में भाजपा नंबर वन पार्टी बनकर उभरी| कारण साफ़ था| लोगों का प्रदेश की कानून व्यवस्था पर भरोसा था| लोगों ने स्थानीय मुद्दों के साथ ही योगीराज पर भी मुहर लगाने का काम किया| भाजपा के प्रदेश नेतृत्व से लेकर स्थानीय स्तर पर कार्यकर्ताओं ने सामूहिक रूप से अपनी ताकत झोंकी और जनता तक सटीक सन्देश पहुँचाने का काम किया| खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दूसरे चरण के प्रचार के आखिरी समय तक कानपुर से लेकर अयोध्या तक जनसभा की और जनता से सीधा संवाद किया| ऐसे में नगर निकार चुनाव में भाजपा की जीत ने सारे कयासों की धज्जियाँ उड़ा| हाँ, इस बीच आगरा नगर निगम में बसपा की प्रत्याशी जीत के करीब तक पहुँचकर हार गईं| जिससे पता चला कि बसपा का अपना वोट बैंक अभी भी मौजूद है और पार्टी यूपी में नए समीकरणों को जन्म दे सकती है| नगर पंचायत और नगर पालिका के स्तर पर समाजवादी पार्टी भले ही धरती पुत्र मुलायम सिंह यादव के दौर वाली सफलता न दोहरा पाई हो लेकिन पार्टी सुप्रीमों अखिलेश यादव के नेतृत्व में सपा भाजपा को सीधी चुनौती देती नजर आई|
सपा सुप्रीमों अखिलेश यादव ने कर्नाटक में कांग्रेस की जीत पर ट्विट भी किया| उन्होंने लिखा कि व्यक्तिवादी राजनीति के अंत शुरू| यह सच है कि देश की राजनीति व्यक्तिवादी सिद्धांत पर ही टिकी है| सपा, आप, बसपा, राकांपा से लेकर भाजपा तक हर पार्टी अपने शीर्ष नेता के करिश्में से सहारे चुनाव मैदान में उतरती है| कांग्रेस में भी चेहरे की ही लड़ाई चल रही है| इसीलिए कर्नाटक जीत के बाद राहुल गांधी का नाम एकबार फिर विपक्ष के प्रधानमंत्री उम्मीदवार के रूप में आगे आ गया है| विपक्ष के अन्य नेता कांग्रेस की इस जीत को राष्ट्रीय परिदृश्य में कैसे लेते हैं, ये आगे आने वाले दिनों में सामने आ ही जाएगा| पर यूपी नगर निकाय चुनाव में कांग्रेस की न के बराबर उपस्थिति एक बार फिर राष्ट्रीय पार्टी की सर्व स्वीकार्यता पर सवाल खड़ा कर देती है| देश के हिंदी हार्ट यानी हिंदी भाषी राज्यों में आज भी प्रधानमंत्री मोदी का जादू लोगों के सिर पर चढ़कर बोलता है| उतर प्रदेश जहाँ से केंद्र की सत्ता का रास्ता निकलता है वहां पर योगी- मोदी की डबल इंजन सरकार का करिश्मा बरक़रार है| पूर्वोत्तर राज्यों में आज भाजपा के पास हेमत विश्वसरमा जैसा राष्ट्रीय स्तर का नेता मौजूद है| उधर कांग्रेस के शीर्ष नेता राहुल गांधी यूपी छोड़कर वायनाड जा चुके हैं| उनकी भारत जोड़ो यात्रा यूपी में मात्र उपस्थिति दर्ज कराने के लिए ही गुजरी| पार्टी की दूसरी बड़ी नेता प्रिंयका गांधी का यूपी की फुल टाइम पोलिटिक्स से अभी भी संकोच बरक़रार है| हिंदी बेल्ट की जनता समय के साथ कांग्रेस के पुराने नेताओं को भुला चुकी है| ऐसे में कांग्रेस अपने स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं में कैसे उत्साह भरेगी, ये यक्ष प्रश्न है| निश्चित रूप से इस सवाल का जावाब देने के लिए 2023 में ही राहुल गांधी या प्रियंका वाड्रा को अमेठी से लेकर काशी और कानपुर से नोएडा के मैदान पर उतरना होगा| अन्यथा कर्नाटक में कांग्रेस की जीत की तरह हिंदी भाषी राज्यों में मोदी- योगी के जादू का कोई विकल्प नहीं होगा|