लेखक व निर्देशक : विपिन कुमार
जलियावाला बाग़, हमेशा से ही मेरे लिए एक भारतीय होने के नाते एक भावुक रहा है! मेरा जन्म अमृतसर में हुआ, वहीँ मेरी शिक्षा हुई, बचपन बीता, मै जवान हुआ! थिएटर सीखा! Jallianwalan bagh के बारे में मैं हमेशा सोचता रहा हूँ कि वो कितना दर्दनाक दृश्य होगा जब डायर ने गोली चलवा कर निर्दोष लोगों को मार डाला था! हमारी फिल्मों या नाटकों में भी आख़िर किसी तरह की चर्चा या इस घटना के कारणों पर कोई ज़्यादा काम नहीं किया गया! मैं ये जानना चाहता था कि क्या कारण थे,इस हत्याकांड के बाद क्या inqiury हुई और कैसे डायर को सज़ा के नाम पर कुछ नहीं कहा गया! फिर एक दिन pacyon foundation के pradeep gupta जी से मेरी मुलाक़ात मेरे मित्र मोहम्मद सिदीकी ने करवाई और वो इसी विषय पर काम करना चाहते थे! मेरे लिए ये एक मौका था अपनी जानकारी को बढ़ाने का और नाटक के माध्यम से आज कि उस पीढ़ी तक पहुंचने का जिसे jallianwalan bagh के बारे में बहुत ही कम जानकारी है! इस नाटक को मैंने हंटर कमेटी की Disorder inquiry Commettie की ओरिजिनल रिपोर्ट और सबूतों को अच्छे से पढ़ने के बाद नाटक की स्क्रिप्ट के रूप में लिखा है और अपने actors के साथ improvise करके निर्देशित किया है!
Concept of Play –
जलियांवाला बाग फाइल्स उस मानव समय की त्रासदी है जब बेगुनाह लोगों पर ब्रिटिश हुकूमत के एक क्रूर दिमाग़ वाले फौज़ी अफ़सर ने गोली चलवा दी थी! उसकी इस बर्बरता को तो सब जानते है, पर इस घटना के बाद क्या हुआ, कैसे मार्शल लॉ ज़बरदस्ती लोगों पर थोपा गया, लोगों को गली में रेंगने, सरेआम कोड़े मारने, इज़्ज़तदार लोगों से गंदगी साफ़ करवाने, और भी कई तरह की सज़ा लागू की गई जिसने पूरे पंजाब को झकझोर कर रख दिया! ये नाटक उन परतों तक पहुंचने की कोशिश करता है कि आख़िर क्यों हम भारतीयों को ये यातना झेलनी पड़ी? क्या ये एक सोची समझी साजिश थी? क्या ये एक पल का पागलपन था? क्या अपने भी इस साजिश में शरीक थे? यह नाटक हंटर कमेटी की Disorder Inquiry Commettie & Evidence (1919-20 )में छपी इस कांड की जाँच पड़ताल की रिपोर्ट में छपी जानकारी, गवाहियों, बयानों पर आधारित है! आज तक फिल्मों में, नाटकों में जलियांवाला बाग हत्याकांड के दृश्य तक ही सीमित जानकारी लोगों को दी जाती रही है! इसके आगे क्या हुआ, कैसे घटा इसकी जानकारी नहीं दी गई, अगर कोई कोशिश हुई भी तो वो हत्याकांड के बाद सीधी शहीद ऊधम सिंह के ओ डायर को मार कर बदला लेने की कहानी तक पहुंची! पर इस हत्याकांड के बाद क्या हालात बने, कैसे डायर को सज़ा के नाम पर लीपापोती की गई, ये किसी नाटक या फ़िल्म ने ख़ोजने का प्रयास नहीं किया! हम इस नाटक में इस हत्याकांड के कारण, इसके बाद के घटनाक्रम को नाटकीय रूप से लोगों तक पहुंचाने की कोशिश कर रहे है ताकि जिन लोगों को इस घटना की पूरी जानकारी नहीं वो इससे रूबरू हो सकें और हमारी युवा पीढ़ी जो स्कूल, कॉलेज में पढ़ती है किन्तु 13 april 1919 के हत्याकांड के बारे में इस एक दिन से ज़्यादा नहीं जानती उनको पूरे प्रकरण से अवगत करवाया जाये, ऐसी हमारी कोशिश है! क्यूंकि इस घटनाक्रम के बाद ही देश की आज़ादी की मशाल सही मायने में जल उठी थी और पूरा देश एकजुट होकर आज़ादी के संघर्ष में कूद पड़ा था!