Tuesday, July 1, 2025
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भारत-यूरोपीय संघ मिलकर हटाएँगे समुद्री प्लास्टिक कचरा

– अपशिष्ट से हाइड्रोजन के लिए अभिनव अनुसंधान समाधान खोजने के लिए हाथ मिलाया

नई दिल्ली : भारत और यूरोपीय संघ (ईयू) ने भारत-ईयू व्यापार और प्रौद्योगिकी परिषद (टीटीसी) के तहत दो प्रमुख अनुसंधान और नवाचार पहल शुरू की हैं। टीटीसी की स्थापना 2022 में भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने व्यापार और प्रौद्योगिकी पर द्विपक्षीय साझेदारी को मजबूत करने के लिए की थी। ₹391 करोड़ (~ €41 मिलियन) के संयुक्त निवेश के साथ, पहल समुद्री प्लास्टिक कूड़े (एमपीएल) और अपशिष्ट से हरित हाइड्रोजन (डब्ल्यू2जीएच) के क्षेत्रों में दो समन्वित प्रयासों पर केंद्रित है, जिसे होराइजन यूरोप-ईयू के अनुसंधान और नवाचार रूपरेखा कार्यक्रम- और भारत सरकार द्वारा सह-वित्तपोषित किया गया है।

इस पहल के आरम्भ के दौरान भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार प्रो. अजय कुमार सूद ने कहा, “सहयोगी अनुसंधान नवाचार की आधारशिला है। ये पहल भारतीय और यूरोपीय शोधकर्ताओं की शक्तियों का उपयोग करके ऐसे समाधान विकसित करेंगी जो हमारी साझा पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान करेंगी।”

यूरोपीय संघ-भारत सहयोग की बढ़ती गति पर बल देते हुए, भारत में यूरोपीय संघ के राजदूत महामहिम श्री हर्वे डेल्फिन ने कहा, “यूरोपीय संघ-भारत व्यापार और प्रौद्योगिकी परिषद के तहत ये शोध प्रयास यूरोपीय संघ भारत साझेदारी की गतिशीलता को प्रदर्शित करते हैं, जिसे पिछली फरवरी में दिल्ली में हमारे नेताओं द्वारा नवीनीकृत किया गया था। समुद्री प्रदूषण और संधारणीय ऊर्जा जैसे ठोस मुद्दों से एक साथ निपटकर, हम नवाचार, परिपत्र अर्थव्यवस्था और ऊर्जा दक्षता को आगे बढ़ा रहे हैं। इन क्षेत्रों में अत्याधुनिक तकनीकों का विकास आर्थिक और पर्यावरणीय दोनों ही दृष्टि से समझदारी भरा है। हम स्वच्छ, अधिक संधारणीय भविष्य के लिए प्रतिबद्ध हैं, जिससे यूरोपीय संघ और भारत दोनों को लाभ होगा।”

भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार के कार्यालय के वैज्ञानिक सचिव डॉ. परविंदर मैनी ने कहा, “समुद्री प्लास्टिक प्रदूषण और अपशिष्ट से हरित हाइड्रोजन जैसे क्षेत्रों में संयुक्त पहल के माध्यम से सहयोगात्मक प्रयास करना संधारणीय विकास के लिए हमारी साझा प्रतिबद्धता का प्रमाण है।”

यूरोपीय आयोग के अनुसंधान और नवाचार महानिदेशालय (आरटीडी) के महानिदेशक श्री मार्क लेमेत्रे ने किए जा रहे निवेश के पैमाने की जानकारी दी- “यूरोपीय संघ और भारत मिलकर सहयोगात्मक अनुसंधान के लिए 41 मिलियन यूरो का निवेश कर रहे हैं। समुद्री प्रदूषण और अपशिष्ट से नवीकरणीय हाइड्रोजन में दो समन्वित अनुसंधान पहल में हमारा सहयोग साझा टिकाऊ भविष्य में निवेश करने की हमारी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।”

पहली समन्वित पहल समुद्री प्रदूषण, विशेष रूप से समुद्री प्लास्टिक कूड़े के व्यापक मुद्दे से निपटने पर केंद्रित है। वैश्विक प्रयासों के बावजूद, समुद्री प्रदूषण जैव विविधता को खतरे में डाल रहा है, पारिस्थितिकी तंत्र को बाधित कर रहा है और मानव स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है। यूरोपीय संघ (€12 मिलियन/~₹115 करोड़) और भारत के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (₹90 करोड़/~€9.3 मिलियन) द्वारा सह-वित्तपोषित यह पहल माइक्रोप्लास्टिक, भारी धातुओं और लगातार कार्बनिक प्रदूषकों सहित विभिन्न प्रदूषकों के संचयी प्रभावों की निगरानी, ​​आकलन और शमन के लिए अभिनव समाधान तलाशती है। परिणामी शोध सतत विकास के लिए महासागर विज्ञान के संयुक्त राष्ट्र दशक जैसी अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं का समर्थन करेगा और यूरोपीय संघ की शून्य प्रदूषण कार्य योजना और भारत की राष्ट्रीय समुद्री कूड़ा नीति के उद्देश्यों में योगदान देगा।

भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव डॉ. एम. रविचंद्रन ने कहा कि “समुद्री प्रदूषण वैश्विक चिंता है जिसके लिए सामूहिक कार्रवाई की आवश्यकता है। यह संयुक्त प्रयास हमें अपने समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा के लिए उन्नत उपकरण और रणनीति विकसित करने में सक्षम बनाएगा।”

दूसरी समन्वित पहल अपशिष्ट से हरित हाइड्रोजन प्रौद्योगिकियों के विकास के माध्यम से स्थायी ऊर्जा समाधानों की तत्काल आवश्यकता को पूरा करती है। स्वच्छ ऊर्जा की ओर वैश्विक बल के साथ, बायोजेनिक कचरे को हाइड्रोजन में परिवर्तित करना आशाजनक रास्ता प्रस्तुत करता है। यूरोपीय संघ (€10 मिलियन/~₹96 करोड़) और भारत के नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (INR 90 करोड़/~€9.3 मिलियन) द्वारा समर्थित इस संयुक्त पहल का उद्देश्य हाइड्रोजन उत्पादन के लिए कुशल, लागत प्रभावी और पर्यावरण के अनुकूल तरीके विकसित करना है। यह शोध यूरोपीय संघ की हाइड्रोजन रणनीति और भारत के राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन के साथ संरेखित होगा, जो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने और ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ावा देने के वैश्विक प्रयासों में योगदान देगा।​

भारत सरकार के नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के सचिव श्री संतोष कुमार सारंगी ने कहा कि “अपशिष्ट से हाइड्रोजन बनाने वाली प्रौद्योगिकियों को आगे बढ़ाना हमारे ऊर्जा संक्रमण लक्ष्यों के लिए महत्वपूर्ण है। यह सहयोग संधारणीय हाइड्रोजन उत्पादन विधियों के विकास में तेजी लाएगा।”

समुद्री जीवों और पारिस्थितिकी तंत्रों पर समुद्री प्रदूषण के संचयी प्रभावों की पहल

– कुल बजट: भारत/एमओईएस 90 करोड़ रुपए | यूरोपीय संघ €12 मिलियन

– दायरा: समुद्री प्रदूषण, इसके संचयी प्रभावों और जलवायु परिवर्तन से संबंधों से निपटना।

– फोकस क्षेत्र: समुद्री सूक्ष्म/नैनो प्लास्टिक कूड़े और प्रदूषकों का पता लगाने के लिए उपकरण विकसित करना, समुद्री जीवन पर जोखिमों और पारिस्थितिकी संबंधी प्रभावों का अग्रिम आकलन, खाद्य श्रृंखला में जैव संचय और मानव स्वास्थ्य जोखिमों का मूल्यांकन, अपशिष्ट प्रबंधन और पुनर्चक्रण सहित स्रोत/प्रवेश बिंदुओं से समुद्री प्लास्टिक की कमी और शमन के लिए नवीन प्रौद्योगिकी और समाधान।

– अपेक्षित परिणाम: प्रदूषण आकलन के लिए नए विश्लेषणात्मक उपकरण, नीति समर्थन के लिए वैज्ञानिक अंतर्दृष्टि, समुद्री कूड़े पर यूरोपीय संघ-भारत सहयोग को मजबूत करना।

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