फिश मील उद्योग की निरंतरता एवं मछुआरों की आजीविका वेबिनार
भारत सरकार के मत्स्य पालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्रालय के अंतर्गत मत्स्य विभाग ने आजादी का अमृत महोत्सव के तहत ‘सस्टेनेबिलिटी ऑफ फिश मील इंडस्ट्री एंड द लाइवलीहुड्स ऑफ फिशरमेन’ यानी ‘फिश मील उद्योग की निरंतरता एवं मछुआरों की आजीविका’ विषय पर एक राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया।
वेबिनार की शुरुआत भारत सरकार के मत्स्य पालन विभाग में संयुक्त सचिव श्री सागर मेहरा के स्वागत भाषण से हुई। उन्होंने बताया कि एक्वाकल्चर के जरिये पैदा होन वाली करीब 70 प्रतिशत मछलियों और क्रस्टेशियन को प्रोटीन युक्त भोजन खिलाया जाता है जिसमें फिश मील प्रमुख रूप से शामिल होता है। फिश मील उच्च गुणवत्ता वाले प्रोटीन, आवश्यक अमीनो एसिड, विटामिन, आवश्यक खनिज (जैसे फॉस्फोरस, कैल्शियम एवं आयरन) और मछलियों के विकास के लिए आवश्यक अन्य तत्वों से भरपूर एक पूरक पौष्टिक आहार है। बेहतरीन पोषण मूल्य के कारण इसे पालतू पशुओं के आहार के लिए पूरक प्रोटीन के तौर पर पसंद किया जाता है। आम तौर पर यह मछली और झींगा के आहार में प्रोटीन का प्रमुख स्रोत होता है। हर साल लगभग 2 करोड़ टन कच्चे माल के उपयोग से फिश मील एवं फिश ऑयल का उत्पादन किया जा रहा है।
तकनीकी सत्र की शुरुआत सीएलएफएमए के प्रबंध समिति के सदस्य श्री निसार एफ. मोहम्मद द्वारा ‘ओवरव्यू ऑफ फिश मील इंडस्ट्री’ यानी ‘फिश मील उद्योग का संक्षिप्त परिचय’ विषय पर परिचर्चा के साथ हुई। उन्होंने फिश मील के महत्व को उजागर किया और बताया कि उच्च गुणवत्ता वाले फिश मील का उत्पादन कैसे किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि फिश मील में मछली के कचरे का उपयोग किए जाने से जल प्रदूषण कम होता है। यह पशुओं में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है और मेमनों, सूअरों आदि में मृत्यु दर को कम करता है। दूसरे वक्ता बेंगलूरु के इंडियन मैरीन इनग्रेडिएंट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष श्री मोहम्मद दाऊद सैत ने फिश मील उद्योग की समस्याओं एवं चुनौतियों के बारे में बात की। उन्होंने मत्स्य पालन उद्योग की उन्नति एवं कल्याण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से भारत के फिश मील एवं फिश ऑयल उत्पादकों को साथ लाने के लिए निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में बताया।
अवंति फीड प्रा. लिमिटेड के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक श्री ए. इंद्र कुमार ने फिश मील और श्रिम्प फीड उद्योग के बारे में बात की जो साल दर साल लगातार बढ़ रहा है। एक्वाकल्चर के जरिये उत्पादन करीब 95 प्रतिशत झींगा का निर्यात किया जाता है। इसलिए सभी आयातकों की मांग टिकाऊ एक्वाकल्चर एवं मैरीटाइम ट्रस्ट से उत्पादित मछलियों के लिए होती है। वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं वेरावल-आईसीएआर सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फिशरीज टेक्नोलॉजी के प्रभावी वैज्ञानिक डॉ. आशीष कुमार झा ने ‘फिश मील एंड इट्स अल्टरनेटिव टु एक्वा फीड इडस्ट्री’ यानी ‘एक्वा फीड उद्योग में फिश मील एवं उसका विकल्प’ विषय पर चर्चा की। उन्होंने ओवरफिशिंग, बायकैच और प्रदूषण के 3 मुद्दों के बारे में जानकारी दी। इसके अलावा उन्होंने बताया कि कीट, पत्ते, फल, बीज आदि को फिश मील के विकल्प के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। आईसीएआर- सीएमएफआरआई के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. ए. पी. दिनेशबाबू ने भारतीय समुद्री मत्स्य उद्योग में किशोर मछलियों को न पकड़ने के बारे में बात की। उन्होंने मेश साइज रेग्यूलेशन, जुवेनाइल बाइकैच रिडक्शन डिवाइस (जेबीआरडी) और न्यूनतम कानूनी दायरे (एमएलएस) को लागू करने का सुझाव दिया।
कर्नाटक सरकार के मत्स्य निदेशक श्री रामाचार्य ने आग्रह किया कि करीब 12 से 18 प्रतिशत मछलियां बर्बाद हो रही हैं, इसलिए उद्योग को मदद दी जानी चाहिए। उन्होंने माना कि सही नीतिगत उपायों और विनियमन जैसे विभिन्न मुद्दों के बारे में तमाम प्लेटफॉर्म के जरिये जागरूकता पैदा की जा रही है। कर्नाटक सरकार ने बिना नियमन के मछली पकड़ने पर लगाम लगाने के लिए नियम बनाए हैं।
संयुक्त सचिव (एमएफ) ने जागरूकता पैदा करने और किशोर मछलियों को पकड़े जाने के कारणों पर ध्यान दिए जाने के महत्व के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि मछलियों की दोबारा आूपर्ति में कृत्रिम रीफ स्थापित करना काफी महत्वपूर्ण होगा। इससे किशोर मछलियों के पकड़े जाने पर भी लगाम लगेगी। उसके बाद मंच परिचर्चा के लिए खुला और उसका नेतृत्व संयुक्त सचिव (एमएफ) डॉ. जे. बालाजी ने किया। मत्स्य किसानों और उद्योग के प्रतिनिधियों द्वारा उठाए गए सवालों एवं शंकाओं पर चर्चा की गई और उन्हें आश्वस्त किया गया। उपरोक्त व्यावहारिक चर्चाओं के साथ-साथ क्षेत्रीय रणनीति एवं कार्य योजना तैयार करने के उद्देश्य से बाद की कार्रवाई के लिए कई बिंदु तैयार किए गए। वेबिनार का समापन मत्स्य पालन विभाग में सहायक आयुक्त (एफवाई) डॉ. एस. के. द्विवेदी द्वारा अध्यक्ष, प्रतिनिधियों, अतिथि वक्ताओं एवं प्रतिभागियों को धन्यवाद प्रस्ताव के साथ हुआ।