लेखक : दिलीप कुमार
फ़िल्म ‘वो कौन थी’ में सस्पेंस, इंग्लिश नॉवेल की थ्रिल स्टोरी साधना जी जैसी ख़ूबसूरत अदाकारामनोज कुमार जैसे कमाल के अभिनेता राज खोसला जैसे मंझे हुए निर्देशक सुर साम्राज्ञी लता जी जैसी गायिका मदनमोहन जी जैसे महान संवेदनशील संगीतकार सब कुछ था, लेकिन इस फ़िल्म में एक गीत भी था जो अपने आप में एक कहानी है.
‘राजा मेहंदी अली खान’ का लिखित गीत नैना बरसे रिमझिम रिमझिम जिसे महान संगीतकार मदनमोहन जी ने संगीतबद्ध किया. थ्रिलर, रूहानी कर्णप्रिय गीत जो आज भी दर्शकों की जुबान पर है.
आज हम ऐसे कभी न भूलने वाले नग्मे सुनते हैं, तो सोचने लगते हैं, कि उनके संगीत में ऐसा क्या है ? गहराई से देखा जाए तो, गीतों में हैं संगीतकारों की गहरी समझ, संगीत के प्रति समर्पण…… संगीतकार एक गीत का संगीत रचते हुए पूरी दुनिया की मानसिक शैर कर आता है.. तब कहीं एक गीत का संगीत तैयार कर पाता है. मदनमोहन जी तो हमेशा से ही हम जैसे लोगों की रूहानी रातों के हमसाया रहे हैं.. मदनमोहन जी के निशा के गीतों के संगीत में एक अलग ही रोमांच होता है. उनके गीतों में एक ख़ामोशी समझ आती है, जो उनकी निजी जिंदगी का अक्स थी, जो उनके संगीत में घुल जाती थी.
मदनमोहन जी कभी भी फ़िल्म निर्देशकों का इंतज़ार नहीं करते थे, उन्हें जब जो समझ आता, वो उस संगीत को रच डालते थे… उन्होंने मृत्यु से पहले वीर-जारा फ़िल्म का संगीत रच दिया था, मृत्यु के 29 साल बाद यश चोपड़ा ने उनका संगीत रिलीज किया था. ऐसे ही ‘नैना बरसे रिमझिम रिमझिम’ के संगीत का भी अज़ीब संयोग रहा इस संगीत को अस्तित्व में आने के लिए 18 साल का इंतज़ार करना पड़ा. और उसे दुनिया के सामने आने का मौका राज खोसला की फ़िल्म वो कौन थी 1964 में मिला. मदन मोहन जी को खुद भी यह संगीत बहुत पसन्द था.. उन्होंने इसका निर्माण अपने संगीत के शुरुआती दौर 1946 में ही कर लिया था. तब धारणा थी कि मदन जी संगीत तो बहुत ही कमाल रचते हैं, उनके संगीत का स्तर भी बहुत ऊंचा होता है, लेकिन उनकी फ़िल्में नहीं चलतीं.
‘वो कौन थी’ सस्पेंस फ़िल्म में राज खोसला का जबरदस्त निर्देशन, साधना के जबरदस्त अभिनय , मदनमोहन जी का रूहानी संगीत के कारण फ़िल्म सुपरहिट हुई… फ़िल्म की सफ़लता का सबसे बड़ा कारण इसका म्युज़िक ही था. इसी फिल्म के बाद साधना जी हिन्दी सिनेमा की मिस्ट्री गर्ल के नाम से विख्यात हुईं. इस गीत ने एक फ़िल्म ही नहीं फिल्म से जुड़े सारे के सारे कलाकारों को बुलन्दियों तक ले गया था. जैसे 1949 की आईकॉनिक फ़िल्म महल से लताजी, मधुबाला जी चमकी थीं.
नैना बरसे रिमझिम रिमझिम इस गीत के फिल्मांकन का अंदाज़ बहुत नाटकीय है. एक तो मुश्किल से 18 साल बाद मौका मिला अस्तित्व में आने का तो कई बार शूटिंग पर साधना जी गायब हो जाती, कई बार लता जी, दर-असल मदनमोहन जी इस गीत में सिर्फ़ और सिर्फ़ लता जी की आवाज़ चाहिए थी. लताजी बहुत व्यस्त थीं, अपने बड़े भाई मदनमोहन जी को भी समय नहीं दे पा रहीं थीं.
बता दें मदनमोहन जी खुद भी उम्दा गायक थे. किसी तरह शूटिंग हो जाए, अतः फीमेल वर्जन गीत को उन्होंने अपनी आवाज़ में रिकॉर्ड कर टेप शिमला भेज दिया. सेट पर साधना जी अपनी ख़ास हेयरस्टाइल एवं सफ़ेद लिबास में दस्तक देती हुई बहुत ख़ूबसूरत लग रहीं थीं, उन्हें लगा था लता जी की आवाज़ में परफॉर्मेंस करना होगा, जैसा हमेशा होता है. लेकिन जैसे ही राज खोसला ने कहा ‘टेक’ फ़िल्म यूनिट ने जब रिकॉर्डिग प्ले किया, गाना मदनमोहन जी की आवाज़ में प्ले हुआ, मेल गायक की आवाज़ के साथ लिप्सिंग करती साधना जी बहुत असहज महसूस कर रहीं थीं. तब दर्शकों का हुजूम फिल्म शूटिंग देखने आता था. ख़ैर दर्शकों को हैरानी तो हुई फ़िर भी उन्हें क्या ही क्या ही समझ आता… दर्शकों का नज़ारा देखकर साधना जी पसोपेश में पड़ गईं. फ़िर भी साधना जी ने मोनालिसा जैसी मुस्कान एवं अपनी आँखों की नाटकीयता का बेहतरीन प्रदर्शन किया. फ़िल्म यूनिट को देखकर बहुत मज़ा आ रहा था. जैसी ही गीत की शूटिंग पूरी हुई साधना जी ने राहत की साँस ली… बाद में लता जी ने अपनी आवाज़ दी और गीत की एडिटिंग हुई. मुक्कमल तौर पर 18 साल बाद मदनमोहन जी का गीत दुनिया के सामने आया और अमर हो गया..