मनीष शुक्ल
अतीक का पाकिस्तान से कनेक्शन था| वो आईएसआई के संपर्क में था| उसके लश्करे तोइबा से रिश्ते थे| यहाँ तक कि मुंबई के सीरियल धमाकों में भी उसका लिंक है| एटीएस और पुलिस की पूछताछ में ये चौकानें वाली जानकारी सामने आ रही है| अगर ये सच है तो एक माफिया राजनीति का संरक्षण पाकर देश की सुरक्ष के लिए कितना घातक हो सकता है, ये अतीक के माफिया- आतंकी नेटवर्क को देखकर पता चलता है|
अतीक को राजनितिक दलों ने ही पाला पोसा जिसके बाद हालात यहाँ तक पहुँच गए कि वो चालीस सालों तक कानून के शिकंजे से बचा रहा| पुलिस की पूछताछ में सामने आ रहा है कि शासन- प्रशासन से लेकर बड़े- बड़े व्यापारी उसकी जेब में थे| कानून के दरबार में अतीक का सिक्का चलता था| अपराध- राजनीति का गठजोड़ सिस्टम को खोखला करने में जुटा था| दशकों तक सड़कों पर खुलेआम कत्लेआम किया गया लेकिन कोई भी गवाही देने की हिम्मत नहीं जुटा पाता था| पूछताछ में ये भी सामने आया है कि उसने पाकिस्तान से हथियार ख़रीदे| उसके डॉन अबू सलेम से भी रिश्ते हैं| सिर्फ इतना ही नहीं उमेश पाल हत्याकांड के बाद अतीक बेटे को 45 दिनों तक पुलिस की गिरफ्त्त से बचाने में एक पूर्व सांसद ने भी भूमिका निभाई|
पिछले चालीस सालों में इसी सियासी और अपराधी गठजोड़ के कारण अतीक इतना बाहुबली हो चुका था कि वो जेलों से सत्ता चलाने लगा था| 1989 से लेकर 1991, 1993, 1996 और 2002 तक इलाहाबाद पश्चिम से लगातार जीतता रहा| राजनितिक किस प्रकार उसके क़दमों में झुकती थी, ये 2004 के लोकसभा चुनाव में फूलपुर लोकसभा सीट पर उसकी जीत से पता चलता है| धीरे- धीरे वो समूचे उत्तर प्रदेश में अपना वर्चस्व स्थापित करना चाहता था| इसी कारण कानपुर की छावनी विधान सभा से चुनाव लड़ने के लिए सैकड़ों गाड़ियों का काफिला लेकर पहुँच गया था लेकिन उसी दौरान फिर खुलेआम दबंगई करने का मामला सामने आया और उसका टिकट वापस ले लिया गया|
हैरानी की बात ये है जिन राजनितिक दलों ने अतीक जैसे खूंखार अपराधी को पला पोसा, आज वाही खुलकर उसके बचाव में खड़े नजर आ रहे हैं| यूपी एसटीएफ के इनकाउंटर को फर्जी बता रहे हैं जबकि उनको भी पता है कि असद के इनकाउंटर के बाद मजिस्ट्रेट जांच तय है| फिर भी दल अपराधियों पर धर्म की चादर उढ़ाकर सहानुभूति हासिल करने की रणनीति बना रहे हैं| अपराधी को राजनितिक संरक्षण इसी से समझा जा सकता है कि उत्तर प्रदेश में 100 से ज्यादा केस दर्ज होने के बावजूद किसी भी मामले में अतीक को कोई सजा नहीं हुई थी| वहीँ 2017 में योगी सरकार आने के बाद जब कानून का शिकंजा कसा तबी कहीं 2023 में पहली बार अतीक को कानून के दायरे में सजा सुनाई गई|
राजनीतिक दल या सत्ता क्या कर सकती है, अतीक के चालीस सालों के चढ़ाव- उतार से इसको समझा जा सकता है| पिछले चालीस वर्षों में सत्ता की सरपरस्ती ने अतीक के माफिया साम्राज्य को खड़ा कर दिया वहीँ पिछले छह सालों में योगी सरकार ने कानून का साम्राज्य स्थापित किया तो अतीक न सिर्फ जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा, उसको सजा भी हुई| अंत में अतीक अपने किये पर रोने लगा| उसको अहसास हुआ कि उसके कर्मों के कारण ही उसका बेटा मारा गया| यह विडंबना ही जब आम आदमी किसी अपराधी के कानून के शिकंजे में आने से राहत की साँस लेती हैं| जनता का कानून पर भरोसा मजबूत होता है, तभी कुछ राजनितिक दल ध्रुवीकरण के लिए अपराधियों के समर्थन में खुलेआम खड़े होने से बाज नहीं आते हैं| लेकिन जनता को समझना चाहिए कि किसी भी अपराधी का कोई धर्म और जाति नहीं होती है, फिर चाहें विकास दुबे हो या अतीक अंसारी| अपराध के अंत से ही सबके साथ और विकास का रास्ता खुलता है|