Thursday, November 21, 2024
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जन्मदिन : कलाकार- सुपर स्टार परफेक्शनिस्ट मि. आमिर खान

लेखक : दिलीप कुमार

आमिर  हिन्दी सिनेमा के मिस्टर परफेक्शनिस्ट कहे जाते हैं. आमिर की सिनेमाई सफ़लता के पीछे उनका समर्पण, एवं बहुमुखी प्रतिभा है, उससे भी अधिक है, ईमानदार कोशिश जो वो करते हैं. आज के दौर में मेन स्ट्रीम सिनेमा में आमिर इकलौते सुपरस्टार हैं, जिनकी पहुंच हर पीढ़ी के लोगों तक है. आज भी आमिर तीन पीढ़ी के लोगों को एक साथ सिल्वर स्क्रीन पर खींच लाते हैं, जहां दर्शकों की आँखों से आंसू फ़ूट पड़ते हैं. आमिर इकलौते व्यवसायिक फ़िल्मकार हैं, जो सामाजिक फ़िल्मों का निर्माण करते हुए खूब जोखिम उठाते हैं. यह कोई अति संवेदनशील इन्सान ही कर सकता है. कौन भूल सकता है आमिर खान की सिग्नेचर फिल्म ‘तारे जमीन पर’ फिल्म में आमिर खान ने बालमन की व्यथा को क्या खूब समझा है. बच्चों के मन में चल रहे ख्वाबों को क्या खूब पंख दिए गए. व्यक्तिगत रूप से कहूं तो कोई भी सृजनकर्ता हो अगर उसने स्त्रीमन, बालमन, बुजुर्गों की व्यथा पर कुछ सृजन नहीं किया तो मुझे उसकी सृजनात्मक सोच पर शक होता है. आमिर खान को देखकर लगता है, कोई संवेदनाओं से भरा इंसान जो फ़िल्मों में इतना गहरा उतर जाते हैं, फिर खुद भी रोते हैं, और दर्शकों को भी रुलाते हैं. एक फ़िल्मकार, अदाकार के साथ अगर दर्शक वर्ग रोने चल निकला है, तो आमिर की सिनेमाई बौद्धिकता का कमाल है कि लोग उनके साथ जुड़ते जाते हैं.

आमिर अपने संजीदा अभिनय, बौध्दिकता के साथ, सादगी  जीवन जीते हैं. आज की मार्केटिंग की दुनिया, चकाचौंध से बहुत दूर रहते हैं. एक कहावत आमिर के ऊपर सटीक बैठती है – “ बातों की बजाय आपका काम आपके बारे में सब कुछ बयां करता है. यह लाइन मिस्टर परफेक्शनिस्ट’ आमिर पर एकदम सटीक बैठती है.आमिर का काम उनकी बहुमुखी प्रतिभा उनकी शख्सियत को बयां करती है.. यूँ तो आमिर बहुत कम समझ आते हैं. और बदलते हुए समाज में आमिर खान के कुछ बयानों के जरिए वो थोड़ा विवादित भी रहे हैं, लेकिन हर व्यक्ति की अपनी सोच होती है, कोई असहमति देगा कोई सहमत होगा. लिहाज़ा आमिर की फ़िल्मों, उनकी विविधतापूर्ण अदाकारी एवं सिनेमा में उनके अभूतपूर्व योगदान को बिसारा नहीं जा सकता.

आमिर की दो – तीन फ़िल्मों के अलावा उनकी सारी फ़िल्में क्लासिकल कल्ट ही मानी जाती हैं, वो इसलिए भी कि आमिर ने कुछ भी पर्दे पर किया सब रियल है.अपने सिनेमाई सफ़र के शुरुआती दौर में अपनी चॉकलेटी छवि से दर्शकों के दिलों पर राज करने वाले आमिर का एक खास अंदाज़ है. आमिर हमेशा से ही अपनी एक अलहदा सोच के इंसान रहे हैं. ट्रेजडी किंग दिलीप साहब के बड़े प्रशंसकों में से एक रहे हैं, आमिर भी साल में एक फिल्म ही करते हैं. इसके बावजूद उनकी हर फिल्म का प्रशंसकों को बेसब्री से इंतजार रहता है. दिलीप साहब की एक बात का आमिर पर खूब प्रभाव रहा, दिलीप साहब कहते थे

                                               “एक फ़िल्मकार हमेशा से ही उम्दा फिल्म बनाता है उसको पता नहीं होता कि वह बेकार फिल्म बना रहा है, लेकिन एक अदाकार अपनी सीमा जानता है, उसे पता होता कि कि कौन सी फिल्म किस हीरो के लिए है, अतः हीरो को जिम्मेदारी के साथ ईमानदारी निभाते हुए फ़िल्मों का चयन करना चाहिए. कहानी का चयन करना चाहिए न कि पैसे का ” आमिर ने बखूबी दिलीप साहब के मंत्र का अनुशरण किया है, लिहाजा उनकी सिनेमाई सफ़लता भी दिलीप साहब की तरह ही है.

आमिर की प्रतिस्पर्द्धा अपने दौर में किसी के साथ नहीं रही है, आमिर की स्पर्धा खुद आमिर खान से ही रही है. हर बार कुछ नया कालजयी रचने वाले आमिर हर बार खुद को पीछे छोड़ देते हैं. बचपन से ही आमिर को पतंग, गुब्बारे, तितलियां, भौंरे, आकर्षित करते थे. ‘तारे जमीन पर’ फिल्म में बच्चों के कोमल हृदय को छूने वाले आमिर खुद ऐसे ही रहे हैं. आमिर  रुबिक के क्यूब को हल करना काफी पसंद करते है, और इस खेल में माहिर भी हैं. एक साक्षात्कार में अपनी अगली फिल्म पर चर्चा करते हुए सिर्फ 36 सेकंड में क्यूब को हल कर चुके हैं. आमिर शतरंज के माहिर खिलाड़ी हैं. कोई आमिर को नापसंद करे तो कर सकता है, लेकिन आमिर को पूर्णतः खारिज नहीं किया जा सकता. आमिर इकलौते ऐसे मेन स्ट्रीम हीरो हैं, जो फ़िल्मों के किरदारों में घुस जाते हैं, आज भी दूसरा कोई गुरुदत्त बन नहीं सकता, और न ही कोई उनकी लकीरों को छू सकता है, लेकिन आमिर की बौध्दिक शख्सियत में गुरुदत्त साहब की छवि दिखती हैं, वहीँ दिलीप साहब के बाद मेन स्ट्रीम अभिनेताओं में मेथड ऐक्टिंग का ज़ज्बा आमिर ही पर्दे पर उतारते है.

हिन्दी सिनेमा के महान सिनेमैटोग्राफर वीके मूर्ति साहब को आज भी गुरुदत्त साहब के कारण जाना जाता है. उन्होंने गुरुदत्त साहब के बारे में कहा ख़ासकर आमिर के फैन्स को पढ़ना चाहिए.

                    “मुझे जल्द कोई कलाकार प्रभावित नहीं करता, लेकिन आमिर काबिले तारीफ है, उनकी अदाकारी बहुमुखी है, लगान एवं “तारे जमी पर” जैसी फ़िल्मों को क्लासिकल कल्ट फिल्म कहा जा सकता है. बिना बॉलीवुड फॉर्मूले कड़ी मेहनत के दम पर फ़िल्में बनाने एवं किरदारों को जीने में सिनेमा में डूबते आमिर को देखकर मुझे हमेशा गुरुदत्त साहब याद आते हैं. अगर गुरुदत्त साहब के जीवन पर फिल्म बनती है, तो केवल और केवल आमिर खान ही उनकी शख्सियत के साथ न्याय कर सकते हैं. यूँ तो गुरुदत्त साहब एक प्रतिभा का समुन्दर थे, लेकिन उनके बहुत करीब रहा हूं, तो थोड़ा बहुत उनकी महान सिनेमैटिक समझ से वाकिफ़ हूं. गुरुदत्त साहब को पर्दे पर केवल और केवल आमिर उतार सकते हैं”. मूर्ति साहब के ये शब्द आमिर के लिए किसी ऑस्कर से कम नहीं है.

आमिर मिस्टर परफेक्शनिस्ट क्यों कहे जाते हैं, क्योंकि उनकी अनोखी आदतें, सबसे अलग बनाती हैं. ख़ासकर फ़िल्मों में किरदारों को लेकर उनकी ईमानदारी देखते ही बनती है. आमिर की फ़िल्मों का बॉक्स ऑफिस पर कलेक्शन जो भी हो, लेकिन खुद को किरदारों में ढालना अद्भुत है. मुस्लिम होते हुए भी किरदार की मांग थी, उन्होंने उदारवाद का परिचय देते हुए कनछेदन करा लिया था. फिल्म ‘लगान’ में भुवन के चरित्र के लिए उन्होंने अपने कानों को छिदवाया था. वास्तविक में बालियां पहन सकें. इसके अलावा, उनके अभूतपूर्व प्रदर्शन से फिल्म ऑस्कर पुरस्कार के लिए नामांकित हुई थीं. फिल्म ‘कयामत से कयामत तक’ के प्रचार के दौरान, आमिर अपने चचेरे भाई और सह-कलाकार राज ज़ुत्शी के साथ मुंबई की बसों और ऑटो रिक्शा में फिल्म के पोस्टर लगाने के लिए घूमते थे. आमिर को कभी शराब पीने की आदत नहीं थी, लेकिन एक गीत “तेरे इश्क में नाचेंगे” की शूटिंग से पहले उन्होंने खूब शराब का सेवन किया. जिससे वह अपने शराबी चरित्र को उम्दा तरीके से पर्दे पर उतार सकें. फ़िल्म पीके में उनको पान का शौकीन दिखाया गया है. अंततः आमिर किरदार में घुसने के लिए पूरी फिल्म की शूटिंग के दौरान 100 पान प्रतिदिन खाते थे. आमिर ने  दंगल फिल्म में कालजयी अदाकारी की. उनके अभूतपूर्व अभिनय को दर्शकों, समीक्षकों ने खूब सराहा. आमिर ने दंगल फिल्म के लिए असल में दो महीने में ही 28 किलो वजन बढ़ा लिया था. बाद में उन्हें एक युवा महावीर सिंह फोगाट बनने के लिए 25 किलोग्राम वजन कम करना था, जिसे उन्होंने महज 5-6 महीने में घटा दिया था. ऐसे समर्पण शायद ही किसी का रहा हो. आज आमिर शुद्ध शाकाहारी हैं, हालांकि यह बहुत व्यक्तिगत बात है, लेकिन यह बात स्पष्ट करती है कि आमिर अतिसंवेदनशील इन्सान हैं.

आमिर कभी भी पात्रों का अध्ययन नहीं करते फ़िल्मों के चयन में या किसी फिल्म को साइन करते हैं, तो  पात्रों को जाने बिना ही पहले फिल्म की कहानी सुनते हैं, फिर पूरी कहानी सुनने के बाद उन्हें जो भूमिका अच्छी लगती है, उसको चुन लेते हैं. आमिर को राज कुमार हिरानी की फिल्म 3 इडियट्स में शर्मन जोशी वाली भूमिका के लिए कहा जाता है, हालांकि, उन्होंने रेंचो की भूमिका में अपनी रूचि दिखाई और उनकी रेंचो की भूमिका निभाई. आमिर ने फिल्म 3 इडियट्स में एक नशे के दृश्य को फिल्माने के लिए वास्तव में शराब पी, जिसके कारण फिल्म में इस दृश्य को करने के लिए कैमरामैन ने कई रिटेक लिए थे, लेकिन सीढियों में बैठे आमिर की वो सीन यादगार है. जहां वो अपने दोस्तों को समझाते हैं. जो मर्जी हो वो करना चाहिए, उनका वह संदेश देश के युवाओं के दिल में उतर गया था. शायद ही कोई सिने प्रेमी होगा जिसने यह फिल्म न देखी हो. थ्री इडियट फिल्म आमिर के अलावा पर्दे पर उतारना मुश्किल है. थ्री इडियट फिल्म आमिर की सिग्नेचर स्टाइल में है.

आमिर आम तौर पर बहुत बेपरवाह इंसान हैं, वो लकीरों पर नहीं चलते अपितु खुद की लकीरें खींच देते हैं. फिल्म गुलाम की शूटिंग के दौरान आमिर ने एक स्टंट किया, जिसमें आमिर तेज रफ़्तार ट्रेन के सामने रेल पटरी पर भागते हुए 1.3 सेकंड में रेल पटरी से कूद जाते हैं. आमिर की यादगार सीन के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ दृश्य के लिए 44 वें फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया, लेकिन, उन्होंने पुरस्कार अस्वीकार कर दिया. आमिर ने कुछ वर्ष पूर्व एक बयान में कहा था कि वह कर्म में विश्वास रखते हैं और फल की चिंता नहीं करते. उन्होंने 2009 में लंदन के मैडम तुसाद संग्रहालय में  मोम की प्रतिमा बनवाने के लिए उनको आमंत्रित किया गया था.  तब उन्होंने यह कह्ते हुए इनकार कर दिया था,  “जिन कार्यो में मेरी रूचि नहीं है, वह करने में विश्वास नहीं रखता, मुझे सस्ती लोकप्रियता नहीं चाहिए’. आमिर ने हिंदी सिनेमा अवॉर्ड समारोहों में उचित पारदर्शिता नहीं होने के कारण इन समारोहों का बहिष्कार कर दिया था, और कभी वहाँ नहीं जाते. आज के दौर में सोशल मीडिया लोगों के लिए जीवन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है, लेकिन आमिर ने सोशल मीडिया को नकारात्मक मानते हुए उसे हमेशा के लिए छोड़ दिया है. कुछ भी छोड़ना हर किसी के लिए भी कठिन होता है, फिर भी आमिर का खुद पर नियंत्रण अनोखा है.

आम तौर पर व्यक्तिगत जीवन पर लिखता नहीं हूं, लेकिन आमिर ने अपने दूसरे तलाक के बाद दुनिया के सामने एक नई लकीर खींच दी, एवं विमर्श का रास्ता खोल दिया. अगर हम साथ रहते हुए पति पत्नी नहीं रहना चाहते, तो दो लोगों की अपनी ज़िन्दगी का निर्णय है, लेकिन यह बात समाज के लिए अज़ीब है,कि साथ भी रहेंगे एवं पति पत्नी के रूप में नहीं अपने बच्चों के पैरेंट्स के रूप में रहेंगे. सुनने में अज़ीब लग रहा है, हो सकता है अज़ीब ही है, हालांकि समाज अपने ढर्रे पर चलता है, आम तौर पर अलग राह बनाने वालों को नकार दिया जाता है. आमिर तारे जमीन पर फिल्म में एक संवाद में कहते हैं कुछ भी करिए जो समाज में आज तक घटित न हुआ हो तो आपको पागल समझा जाएगा. इस निर्णय के बाद आमिर को दिमाग से विक्षिप्त इंसान बताता गया था. इस दुनिया में अंतिम कुछ नहीं है. समाज का एक अगुवाकार ही लकीरें खींचता है, कॉम लकीरें नहीं खींचती, हालांकि पूर्णतः कोई भी कभी स्वीकार नहीं किया गया. हो सकता है कुछ समय बाद आमिर इस लकीर को खींचने के लिए सकारत्मक रूप से याद किए जाएं. या गरियाए जाएं.

आमिर अभिनय के साथ फिल्म निर्माण और निर्देशन में भी छाप छोड़ चुके हैं. आमिर आज सफलता की जिन ऊंचाइयों पर हैं, वहां पहुंचना मेहनत, समर्पण की पराकाष्ठा है. हालांकि, आमिर की पारिवारिक पृष्ठभूमि हिन्दी सिनेमा की रही है. उनके पिता ताहिर हुसैन फिल्म निर्माता और चाचा नासिर हुसैन अभिनेता, निर्माता और निर्देशक रह चुके हैं.आमिर ख़ान का जन्म 14 मार्च 1965 को हुआ था. आमिर ने 1973 में नासिर हुसैन की फिल्म ‘यादों की बारात’ में बाल कलाकार के रूप में सिल्वर स्क्रीन पर दिखे थे. उसके बाद ‘होली’1984 से अभिनेता के तौर पर अपने सिनेमाई सफ़र की शुरुआत की. उन्हें ‘कयामत से कयामत तक’1988 से पहली सफ़लता मिली. इस फिल्म के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ डेब्यू अभिनेता का अवॉर्ड मिला. आमिर ने बहुत ही कम फ़िल्मों में अदाकारी की है, लेकिन उनकी प्रत्येक फिल्म यादकर है. 2012 में आमिर ने टेलीविजन शो ‘सत्यमेव जयते’ के साथ छोटे पर्दे का रुख किया. उन्होंने इस शो के माध्यम से देश के सामाजिक मुद्दों को समझते हुए, देश की कमियों को उजागर किया, एवं उसके सुझाव भी दिये. आमिर समाज़ के लिए खूब काम करते हैं, वहीँ दिखावट से दूर रहते हैं.आमिर ने पैंतीस साल के कॅरियर में पचास फ़िल्मों में भी काम नहीं किया, लेकिन उनकी फ़िल्मों को कोई भी सिने प्रेमी उँगलियों से गिना सकता है. कयामत से कयामत तक, राजा हिन्दुस्तानी, लगान, सरफरोश, रंग दे बसंती, रंगीला, गुलाम, अंदाज़ अपना अपना, तारे जमीन पर, गजनी, तलाश, दंगल, हर जॉनर की फ़िल्मों में खुद को साबित कर चुके हैं.  आमिर को पद्म भूषण, पद्म श्री, सहित दिलीप कुमार, शाहरुख, के बाद सबसे ज्यादा फिल्म फेयर अवॉर्ड मिले हैं. देश विदेश में कई सम्मान मिले हैं. आज आमिर खान अपनी सिनेमाई सफ़र पर एक लंबी छुट्टी पर चले गए हैं, यह छुट्टी कितनी लम्बी है कोई बता नहीं सकता. आमिर एक बार कह चुके हैं कि मैं अगर अदाकारी भी छोड़ दूँ तो कोई अज़ीब बात नहीं है, और जिस दिन मुझे लगेगा कि मैं एक बेह्तरीन फिल्म निर्देशक हूं, उस दिन छोड़ दूँगा. आज के बदलते परिवेश में फ़िल्मों का क्या हाल हैं कहने की जरूरत नहीं है. कोई भी फ्लॉप फ़िल्में नहीं बनाना चाहता और न ही कोई फ्लॉप फ़िल्मों को अपनी लिस्ट में जोड़ना चाहता, अतः सभी को उम्मीद है कि यह फिजा बदलेगी!!! अगर यह फिजा नहीं बदली तो फिर सोच सकते हैं कि आमिर को फिर से पर्दे पर देखना ख्वाब ही रह जाएगा, लेकिन हर एक चीज़ का अंत होता है यह माहौल भी थम जाएगा. फिर से आमिर एक अध्याय शुरू होगा. फिर से दर्शकों को रुलाएंगे, और खुद भी रोयेंगे. उम्मीद है कि हमेशा कुछ नया अनोखा रचने वाले आमिर फिर से किसी कालजयी कहानी के साथ लौटेंगे… आमिर की बौद्धिकता एवं उनकी बहुमुखी अदाकारी लाज़वाब है. हर सिनेमाई प्रसंशक को आमिर की फिल्म का इंतजार है. आमिर के जन्मदिन पर आमिर को ढेरों शुभकामनाएं इस उम्मीद के साथ की वो फिर से लौटेंगे. हिन्दी सिनेमा के नायाब अदाकार, फ़िल्मकार आमिर को मेरा सलाम….

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