पाली (राजस्थान)। भारतीय जन संचार संस्थान (IIMC) के पूर्व महानिदेशक प्रो.संजय द्विवेदी को पाली (राजस्थान) में आयोजित समारोह में पं.विष्णु प्रसाद चतुर्वेदी स्मृति साहित्य अलंकरण से सम्मानित किया गया। यह सम्मान उन्हें मीडिया लेखन, संपादन और शिक्षा क्षेत्र में सराहनीय योगदान के लिए दिया गया है। डा. द्विवेदी संप्रति भोपाल स्थित माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के जनसंचार विभाग में प्रोफेसर हैं। वे इसी विश्वविद्यालय के कुलपति और कुलसचिव भी रह चुके हैं। अनेक दैनिक पत्रों के संपादक रहने के साथ आपने 32 पुस्तकों का लेखन और संपादन भी किया है।
कल्पवृक्ष साहित्य सेवा संस्थान एवं वंदे मातरम् शिक्षण संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित श्री विष्णु प्रसाद चतुर्वेदी स्मृति राष्ट्रीय व्याख्यानमाला एवं साहित्यकार सम्मान समारोह में उन्हें यह सम्मान प्रदान किया गया।
लोक-मंगल है साहित्य का उद्देश्य –
इस अवसर पर आयोजित व्याख्यानमाला में मुख्य अतिथि की आसंदी से प्रो.संजय द्विवेदी ने कहा कि साहित्य का उद्देश्य लोकमंगल है। संवेदना से ही अच्छी रचना का सृजन होता है। उन्होंने कहा कि साहित्यकारों को चाहिए कि वे आजादी के अमृतकाल में समाज को जोड़ने वाली और राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोने वाली रचनाओं का सृजन करें ताकि ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ का स्वप्न साकार हो सके।
कार्यक्रम में राजस्थानी भाषा के वरिष्ठ लेखक पद्मश्री से अलंकृत डा.अर्जुन सिंह शेखावत, स्थानीय विधायक ज्ञानचंद पारख, अखिल भारतीय साहित्य परिषद के क्षेत्रीय संगठन मंत्री विपिन चंद्र पाठक,
अतिरिक्त जिला कलेक्टर बाली जितेन्द्र कुमार पाण्डेय,साहित्यकार प्रोफेसर मंजू शर्मा, इंदिरा गांधी ओपन यूनिवर्सिटी,नयी दिल्ली के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. नरेंद्र मिश्र, साहित्यकार आशा पाण्डेय ओझा और लेखक शिवेश प्रताप विशेष रूप से उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संयोजन और संचालन पवन पाण्डेय ने और आभार ज्ञापन राजेन्द्र सिंह भाटी ने किया।
इस दौरान ‘डिजिटल का तेजी से बढ़ता प्रभुत्व और भविष्य की पत्रकारिता’ विषय पर बोलते हुए अमर उजाला के डिजिटल एडिटर जयदीप कर्णिक ने कहा कि मैं इस विषय को थोड़ा ठीक करना चाहूंगा, क्योंकि ये डिजिटल का तेजी से बढ़ता हुआ प्रभुत्व नहीं है। दरअसल विषय यह होना चाहिए कि पत्रकारिता का डिजिटल के माध्यम से तेजी से बढ़ता प्रभुत्व और भविष्य की पत्रकारिता। भविष्य की पत्रकारिता बहुत ही सुखद है, क्योंकि वह पत्रकार जिसकी बाइलाइन उसके संस्करण में छपकर रह जाती थी, वह पत्रकार अब पूरे हिन्दुस्तान में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में पढ़ा जाता है और ऐसा डिजिटल ने संभव बनाया है।
उन्होंने कहा कि कोई पत्रकारिता हमको एक-दूसरे समानांतर खड़ी नहीं करनी चाहिए। हर माध्यम का अपना एक अलग महत्व है। टेलीविजन के सामने दंगल देखने के लिए दर्शक बाइअपॉइनमेंट बैठा है, तो वो उसका अपना महत्व है, लेकिन डिजिटल पर उसके यूजर का, उसके टाइम और उसके अपॉइनमेंट का महत्व है। बीबीसी में जब सलमा जैदी संपादक थीं, तब हम सोचते थे कि डिजिटल में लोग क्यों नहीं आते हैं। स्कूल ऑफ जर्नलिज्म में जाइए तो वो कहते थे कि अखबार में जाना है या टीवी में एंकर बनना है और नाम कमाना है। आज हम बात कर रहे हैं कि डिजिटल का प्रभुत्व बढ़ रहा है। महत्व पत्रकारिता का है, फिर माध्यम कोई भी हो। चर्चा के दौरान उन्होंने कहा कि हमारे पत्रकारिता के जो मूल में है, वह है जनसंचार, मास कम्युनिकेशन, सूचना को, खबरों को, विचारों को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाना। हमने ढोल-नगाढों से लोगों तक पहुंचाया, तार-पत्रों से पहुंचाया, रोटी बटती थी स्वतंत्रता संग्राम में उससे पहुंचाया, ट्रेडल पर छपने वाले अखबार से पहुंचाया, रेडियो से पहुंचाया, टेलीविजन से पहुंचाया और अब डिजिटल से पहुंचा रहे हैं। माध्यम से ज्यादा महत्व पत्रकारिता और विचार का है। यह शास्वत है और हमेशा बना रहेगा। माध्यम बदल जाएंगे, जैसे कि 400-500 साल पहले जब कबीर हुए थे, तब ट्विटर नहीं था, गालिब हुए तब फेसबुक नहीं था। अब फेसबुक पर गालिब साझा होते हैं, ट्विटर पर कबीर रीट्वीट किए जाते हैं। इसलिए आपके विचार में दम होगा तो आपकी पत्रकारिता हर माध्यम पर बहुत तेजी से आगे बढ़ेगी। भविष्य की पत्रकारिता उस पत्रकार की है, जो माध्यम के साथ-साथ अपनी पत्रकारिता में निखार लाए। इसलिए मल्टीमीडिया का जर्नलिस्ट बनें।