Thursday, November 21, 2024
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लॉक डाउन में रिकार्ड आत्महत्या ‘रिकार्ड’

करोना महामारी ने इंसान को शारीरिक ही नहीं मानसिक रूप से भी तोड़ कर रख दिया है। इस दौरान अवसाद के मामलों ने आत्मघाती रूप भी लिया है। ऐसे संकेत राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट से मिल रहे हैं। एनसीआरबी की 2020 रिपोर्ट से पता चलता है कि देश में आत्‍महत्‍या के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। पिछले एक साल में देश में 153,052 आत्‍महत्‍या के मामले सामने आए हैं। यह संख्या साल 2019 से दस फीसद बढ़ी है।  ऐसे में सवाल किया जाना लाजमी है कि क्‍या लॉकडाउन के तनाव ने आत्‍महत्‍या के मामलों में वृद्धि की है। जब रिपोर्ट में छात्रों और पेशेवरों के आंकड़ों को देखा जाता है तो कहा जा सकता है कि मौतों के लिए लॉकडाउन का तनाव जिम्‍मेदार है।  

कोरोना महामारी के दौरान 68 दिनों के लंबे लॉकडाउन की वजह से लोगों का काफी नुकसान उठाना पड़ा था। इस दौरान न तो स्‍कूल-कॉलेज खोले गए और न ही दुकान खोलने की इजाजत दी गई। जिसके कारण 2020 के दौरान हुई आत्‍महत्‍याएं वर्ष 1967 के बाद से सबसे ज्यादा दर्ज की गई हैं। हालांकि लॉक डाउन का एक दूसरा पहलू भी सामने आया है जिसमें सड़क हादसों में काफी कमी आई है।

देश में लंबे लॉकडाउन के दौरान शहर की सुनसान सड़कों की काफी तस्वीरें वायरल हुईं थी।  इससे सड़क हादसों की संख्या में भारी गिरावट देखने को मिली है. ADSI की रिपोर्ट के मुताबिक सड़क हादसों में होने वाले मौतों में 11 प्रतिशत की कमी आई है. साल 2020 में 374,397 आकस्मिक मौतें हुई थीं. 2009 के बाद से यह सबसे कम संख्या है जब ऐसी मौतों की संख्या 357,021 थी. 2019 की तुलना में इस तरह की मौतों में 11.1% की गिरावट आई है।

रिपोर्ट के अनुसार आत्‍महत्‍या करने वालों में छात्रों और छोटे उद्यमियों की संख्‍या काफी ज्‍यादा दिखाई पड़ती है। हिन्‍दुस्‍तान टाइम्‍स द्वारा रिपोर्ट की गई शिक्षा मंत्रालय द्वारा जारी एक रिपोर्ट में पाया गया है कि भारत में अभी भी 29 मिलियन छात्रों के पास डिजिटल उपकरणों की पहुंच नहीं है। ऑनलाइन शिक्षा जारी रखने के लिए संसाधनों का उपयोग करने में असमर्थता के कारण छात्रों के आत्महत्या करने की कई रिपोर्टें आई हैं। हर साल आत्‍महत्‍या करने वाले छात्रों की संख्‍या कुल आंकड़ों का 7 से 8 प्रतिशत होता था जो साल 2020 में बढ़कर 21.2% हो गया है. इसके बाद प्रोफेशनल लोगों की संख्‍या 16.5 प्रतिशत, दैनिक वेतन पाने वाले 15.67 प्रतिशत और बेरोजगार 11.65 प्रतिशत के आसपास थे। रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि वेतनभोगी पेशेवरों की तुलना में छोटे व्यवसायियों को अधिक नुकसान हुआ।  महामारी के कारण वित्तीय नुकसान की वजह से भारत में भारी कीमत चुकानी पड़ी है।

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