Friday, November 22, 2024
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स्मरण : हमारा तिरंगा डिजाइन करने वाले पिंगली वेंकैया

हमारे राष्ट्रीय ध्वज यानि देश की आन बान और शान तिरंगे को डिजाइन करने वाले पिंगली वेंकैया आज के दिन ही पैदा हुए थे। पिंगली को बचपन से ही देश सेवा का जुनून था। वो महात्मा गांधी से इतने प्रभावित हुए कि ब्रिटिश सेना को छोडकर देश सेवा में जुट गए थे। उन्होंने 30 देशों के राष्ट्रीय ध्वज की स्टडी की. पिंगली वेंकैया 1916 से लेकर 1921 तक लगातार इस पर रिसर्च करते रहे. इसके बाद उन्होंने तिरंगे को डिजाइन किया. 1916 में उन्होंने भारतीय झंडे के डिजाइन को लेकर एक किताब भी लिखी।

पिंगली  सिर्फ 19 साल की उम्र में ब्रिटिश आर्मी में शामिल हो गए थे लेकिन उन्हें तो देशसेवा करनी थी । दक्षिण अफ्रीका में पिंगली वेंकैया की मुलाकात महात्मा गांधी से हुई। वो बापू से इतने प्रभावित हुए कि उनके साथ हमेशा के लिए रहने वो भारत लौट आए। पिंगली वेंकैया ने स्वतंत्रता संग्राम में अपना अहम योगदान दिया। पिंगली भाषा विशेषज्ञ और लेखक थे। 1913 में उन्होंने जापानी भाषा में लंबा भाषण पढ़ा था। इनकी इन्हीं खूबियों के वजह से उन्हें कई नाम मिले, जैसे – जापान वेंकैया, पट्टी (कॉटन) वेकैंया और झंडा वेंकैया।

उस वक्त तिरंगे में लाल रंग रखा गया, जो हिंदुओं के लिए था. हरा रंग मुस्लिम धर्म के प्रतीक के तौर पर रखा गया और सफेद बाकी धर्मों के प्रतीक के तौर पर। बीच में चरखे को जगह दी गई थी। 1921 में महात्मा गांधी ने कांग्रेस के विजयवाड़ा अधिवेशन में पिंगली वेंकैया के डिजाइन किए तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज के तौर पर मंजूरी दे दी।

1931 में तिरंगे को अपनाने का प्रस्ताव पारित हुआ। इसमें कुछ संशोधन किया गया. लाल रंग की जगह केसरिया को स्थान दिया गया। 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा में इसे राष्ट्रीय ध्वज के तौर पर अपनाया गया। इसके कुछ समय बाद फिर संशोधन हुआ और चरखे की जगह अशोक चक्र को स्थान दिया गया. कहा जाता है कि चरखे को हटाने की वजह से महात्मा गांधी नाराज हो गए थे। अब हमारे तिरंगे में केसरिया का मतलब – समृद्धि, सफेद मतलब – शांति और हरा मतलब प्रगति से है।

देश को तिरंगा देने वाले पिंगली की मौत बेहद गरीबी में हुई. 1963 में पिंगली वेंकैया का निधन एक झोपड़ी में रहते हुए हुआ । उसके बाद पिंगली की याद तक को लोगों ने भुला दिया। 2009 में पहली बार पिंगली वेंकैया के नाम पर डाक टिकट जारी हुआ। उसके बाद लोगों को पता चला कि वो पिंगली ही थे, जिन्होंने हमें हमारा तिरंगा दिया । मृत्यु के 46 साल बाद उन्हें देश ने सम्मान दिया था।

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