अरविंद जयतिलक
पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में हिंदू मंदिर पर हजारों मुसलमानों का हमला यह रेखांकित करने के लिए पर्याप्त है कि पाकिस्तान कोई देश नहीं बल्कि हिंदू आस्था को लहूलुहान करने वाला क्रूरता का सबसे बड़ा केंद्र है। जिस तरह कट्टरपंथियों ने भव्य गणेश मंदिर को विध्वंस कर सैकड़ों हिंदू परिवारों को निशाने पर लिया उससे साफ जाहिर होता है कि इस कारस्तानी के पीछे सिर्फ कट्टरपंथियों और उन्मादियों का ही हाथ नहीं बल्कि पाकिस्तान सरकार की मिलीभगत भी है। हिंदू प्रत्यक्षदर्शियों का स्पष्ट कहना है कि जिस समय गणेश मंदिर पर हमला हुआ उस समय पुलिस नदारद रही और ज्यों ही मंदिर पूरी तरह नष्ट हो गया तब दिखाने के लिए सेना तैनात कर दी गयी। यही नहीं घंटो चली मंदिर विध्वंस की इस हिंसा के असली गुनाहगारों के खिलाफ अभी तक कार्रवाई भी नहीं हुई है। गौर करें तो यह पहली बार नहीं है जब पाकिस्तान में किसी हिंदू आस्था केंद्र को मजहबी दहशतगर्दों ने निशाना बनाया हो। सच तो यह है कि आए दिन हिंदू आस्था केंद्रों को निशाना बनाया जाता है। हाल ही में पाकिस्तान की सर्वोच्च अदालत द्वारा देश के धर्मस्थलों की जानकारी के लिए नियुक्त एक सदस्यीय आयोग की रिपोर्ट से भी खुलासा हुआ है कि हिंदू समुदाय के अधिकांश धर्मस्थल खस्ताहालत में हैं। उनकी सुरक्षा और रखरखाव का समुचित प्रबंध नहीं है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इन धर्मस्थलों के लिए जिम्मेदार ‘इवैक्यू ट्रस्ट प्राॅपर्टी बोर्ड’ अल्पसंख्यक समुदाय के अधिकांश प्राचीन और पवित्र स्थलों के रखरखाव में विफल रहा है। उल्लेखनीय है कि आयोग ने चकवाल के कटास मंदिर और मुल्तान के प्रहलाद मंदिर समेत कई अन्य महत्वपूर्ण मंदिरों का दौरा किया और पाया कि ये मंदिर पूरी तरह क्षत-विक्षत अवस्था में हैं। आंकड़ों पर गौर करें तो 1947 में पाकिस्तान में 428 हिंदू मंदिर थे। इनमें से कुछ मंदिर बहुत बड़े और सुविख्यात थे। लेकिन इन मंदिरों को पाकिस्तान के हुक्मरानों ने साजिश के तहत ध्वस्त कर इस्लामिक इमारतों और मस्जिदों में तब्दील कर दिया। आज की तारीख में सिर्फ 26 हिंदू मंदिर बचे हैं और वह भी बेहद जर्जर हालत में हैं। अभी हाल ही में अमेरिका द्वारा प्रकाशित धार्मिक आजादी पर बने अंतर्राष्ट्रीय आयोग (यूएससीआईआरएफ) की रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि पाकिस्तान धार्मिक आजादी के लिए एक खतरनाक देश है। वह अपने यहां अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न और उनके साथ होने वाले भेदभाव को रोकने में नाकाम है। रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान में सबसे अधिक भेदभाव हिंदू अल्पसंख्यकों के साथ होता है। आंकड़ों पर गौर करें तो भारत विभाजन के समय पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिंदुओं की आबादी तकरीबन 15 प्रतिशत थी जो आज घटकर 1.6 प्रतिशत रह गयी है। विचार करें तो हिंदू अल्पसंख्यकों से भेदभाव और उनके आस्था केंद्रों पर होने वालेे हमले के लिए सिर्फ कट्टरपंथी ताकतें ही जिम्मेदार नहीं हैं। पाकिस्तान सरकार की अल्पसंख्यक विरोधी नीति विशेष रुप से ईश निंदा कानून और नफरती मजहबी शिक्षा भी जिम्मेदार हैं। अमेरिकी आयोग की एक रिपोर्ट से उद्घाटित हो चुका है कि पाकिस्तानी स्कूलों की किताबें अल्पसंख्यकों विशेषकर हिंदू अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरत और असहिष्णुता से अटी पड़ी हैं । मजहबी शिक्षक हिंदू अल्पसंख्यकों को इस्लाम के शत्रु की तरह पेश करते हैं। उन्हें काफिर बता मुस्लिम बच्चों के मन में जहर घोलते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान में सामाजिक अध्ययन की पाठ्य पुस्तकें भारत के संबंध में नकारात्मक टिप्पणियों से भरी पड़ी हैं। यहां जानना आवश्यक है कि पाठ्य पुस्तकों के इस्लामीकरण की शुरुआत अमेरिका समर्थित तानाशाह जिया-उल-हक के काल में हुई। बाद की सरकारों ने पाठ्यक्रमों में सुधार की बात तो की लेकिन उसमें बदलाव की हिम्मत नहीं दिखायी। इसका मूल कारण है कि वे कट्टरपंथियों और आतंकियों से डरती हैं। गत वर्ष पहले अमेरिकी संगठन प्यू रिसर्च सेंटर द्वारा कराए गए एक सर्वेक्षण से उद्घाटित हुआ था कि पाकिस्तान में हर चार में से तीन नागरिक भारत के बारे में नकारात्मक दृष्टिकोण रखते हैं। इसका मुख्य कारण स्कूलों में परोसी जा रही जहरीली मजहबी शिक्षा है। एक अन्य सर्वेक्षण के मुताबिक 57 प्रतिशत पाकिस्तानी नागरिक भारत को अलकायदा और तालिबान से भी खतरनाक मानते हैं। यही वजह है कि पाकिस्तान में हिंदू अल्पसंख्यकों की आवाज बुलंद करने वाले मार दिए जाते हैं। याद होगा गत वर्ष पाकिस्तान के 42 वर्षीय मंत्री शहबाज भट्टी की हत्या सिर्फ इसलिए कर दी गयी कि उन्होंने अल्पसंख्यक हितों की आवाज बुलंद की थी। अल्पसंख्यकों के हक़ में उनकी पहल कट्टरपंथियों को रास नहीं आयी और उन्होंने उन्हें मौत की नींद सुला दिया । कट्टरपंथ के खिलाफ आवाज उठाने वाले पंजाब प्रांत के गवर्नर सलमान तासीर को भी कट्टरपंथियों ने मार डाला। अल्पसंख्यक समुदाय से ताल्लुकात रखने वाली आसिया बीबी को भी कट्टरपंथियों ने नहीं बख्शा। आज की तारीख में कट्टरपंथियों का हौसला इस कदर बुलंद है वे हर उदारवादी को निशाना बना रहे हैं। भला ऐसे में हिंदू अल्पसंख्यक समुदाय के लोग और उनके आस्था केंद्र किस तरह सुरक्षित रहेंगे। विचार करें तो कट्टरपंथी ताकतें हिंदू अल्पसंख्यकों को खत्म करने के लिए दो रास्ते अपना रही हैं। एक उनकी हत्या और दूसरा धर्मांतरण। यहीं वजह है कि पाकिस्तान से हिंदू अल्पसंख्यक पलायन कर रहे हैं। गौर करें तो पिछले आधे दशक में ही पाकिस्तान से 25000 से अधिक हिंदुओं का पलायन हुआ है। हिंदू अल्पसंख्यकों की मानें तो उनके धर्मस्थलों को नष्ट कर दिया गया है। कट्टरपंथी ताकतें सिंध, खैबर -पख्तूनख़्वाह और ब्लूचिस्तान में हिंदुओं को डरा-धमका और हत्याकर पाकिस्तान छोड़ने पर मजबूर कर रही हैं। पाकिस्तान में हिंदू अल्पसंख्यकों का जीना किस कदर मुहाल है, इसी से समझा जा सकता है कि पाकिस्तान से धार्मिक वीजा पर भारत आए हिंदू परिवार अब वापस पाकिस्तान लौटना नहीं चाहते हैं। उन्हें डर है कि लौटने पर उन्हें मुसलमान बना दिया जाएगा। पाकिस्तान के उत्तर पश्चिमी सीमा प्रांत और ब्लूचिस्तान में स्थिति कुछ ज्यादा ही भयावह है। यहां अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय से जबरन जजिया वसूला जा रहा है। जजिया न चुकाने वाले हिंदुओं की हत्या कर उनकी संपत्ति लूट ली जा रही है। मंदिरों को जलाया जा रहा है। अभी गत वर्ष ही पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग (एचआरसीपी) की रिपोर्ट से खुलासा हुआ कि देश में हिंदू समुदाय के लोगों की स्थिति बेहद भयावह है। वे गरीबी-भूखमरी के दंश से जूझ रहे हैं। आर्थिक रुप से विपन्न व बदहाल हैं। वे आतंक, आशंका और डर के साए में जी रहे हैं। एचआरसीपी की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि हिंदू लड़कियों का जबरन धर्म परिवर्तन कराया जा रहा है। धर्म परिवर्तन का ढंग भी बेहद खौफनाक, अमानवीय व बर्बरतापूर्ण है। हिंदू लड़कियों का पहले अपहरण कर उनके साथ बलात्कार किया जाता है और फिर उन्हें धर्म परिवर्तन के लिए बाध्य किया जाता है। उपर से त्रासदी यह कि जब मामला पुलिस के पास पहुंचता है तो पुलिस भी बलात्कारियों पर कार्रवाई के बजाए हिंदू अभिभावकों को ही प्रताड़ित करती है। उन्हें मानसिक संताप देने के लिए बलात्कार पीड़ित नाबालिग लड़की को उनके संरक्षण में देने के बजाए अपने संरक्षण में रखती है। पुलिस संरक्षण में एक अल्पसंख्यक लड़की के साथ क्या होता होगा उसकी कल्पना आसानी से की जा सकती है। गौर करें तो पाकिस्तान का अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय एक अरसे से अपनी सुरक्षा और मान-सम्मान की रक्षा की गुहार लगा रहा है। यदा-कदा कुछ सामाजिक संगठन भी अल्पसंख्यकों के पक्ष में आवाज बुलंद करते रहते हैं। लेकिन पाकिस्तान की इमरान सरकार व कट्टरपंथी संगठन उन्हें डरा धमकाकर चुप करा देते हैं। पाकिस्तानी सीनेट की स्थायी समिति बहुत पहले ही हिंदू अल्पसंख्यकों पर अत्याचार की घटनाएं रोकने के लिए सरकार को ताकीद कर चुकी है। लेकिन अब तक पाकिस्तान की किसी भी सरकार ने इस दिशा में ठोस पहल नहीं की। इमरान सरकार भी हाथ पर हाथ धरी बैठी है। जाहिर है कि हिंदू अल्पसंख्यकों के प्रति उसकी नीयत में खोट है। दरअसल सरकार को डर है कि अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए कदम उठाने पर कट्टरपंथी ताकतें नाराज हो जाएंगी। यही वजह है कि आज पाकिस्तान हिंदू अल्पसंख्यकों और उनके आस्था केंद्रों के लिए खतरनाक देश के रुप में तब्दील हो चुका है।