Sunday, September 8, 2024
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शिव शक्ति नाम होगा चंद्रयान 3 के मून लैंडर का नाम : मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसरो पहुंचकर चन्द्रयान 3 की सफलता पर देश के वैज्ञानिकों का अभिनन्दन किया| उन्होंने कहा कि India is on the Moon. We have our national pride placed on the Moon. हम वहां पहुंचे, जहां कोई नहीं पहुंचा था। हमनें वो किया जो पहले कभी किसी ने नहीं किया था। ये आज का भारत है, निर्भीक भारत, जुझारू भारत। ये वो भारत है, जो नया सोचता है, नए तरीके से सोचता है। जो डार्क जोन में जाकर भी दुनिया में रोशनी की किरण फैला देता है। 21वीं सदी में यही भारत दुनिया की बड़ी-बड़ी समस्याओं का समाधान करेगा। मेरी आंखों के सामने 23 अगस्त का वो दिन, वो एक-एक सेकेंड, बार-बार घूम रहा है। जब टच डाउन कंफर्म हुआ तो जिस तरह यहां इसरो सेंटर में,  पूरे देश में लोग उछल पड़े वो दृश्य कौन भूल सकता है, कुछ स्मृतियां अमर हो जाती हैं। वो पल अमर हो गया, वो पल इस सदी के सबसे प्रेरणादायी क्षणों में से एक है। हर भारतीय को लग रहा था कि विजय उसकी अपनी है। खुद महसूस करता था। हर भारतीय को लग रहा था कि जैसे वो खुद एक बड़े एग्जाम में पास हो गया है। आज भी बधाइयां दी जा रही हैं, संदेशें दिए जा रहे हैं, और ये सब मुमकिन बनाया है आप सबने, आपने। देश के मेरे वैज्ञानिकों ने ये मुमकिन बनाया है। मैं आप सबका जितना गुणगान करूं वो कम है, मैं आपकी जितनी सरहाना करूं वो कम है।

पीएम ने कहा आज पूरी दुनिया भारत की scientific spirit का, हमारी टेक्नोलॉजी का और हमारे scientific temperament का लोहा मान चुकी है। चंद्रयान महाअभियान सिर्फ भारत की नहीं, बल्कि पूरी मानवता की सफलता है। हमारा मिशन जिस क्षेत्र को एक्सप्लोर करेगा, उससे सभी देशों के लिए मूल मिशंस के नए रास्ते खुलेंगे। ये चांद के रहस्यों को तो खोलेगा ही साथ ही धरती की चुनौतियों के समाधान में भी मदद करेगा।  

आप जानते हैं कि स्पेस मिशन्स के touchdown प्वाइंट को एक नाम दिए जाने की वैज्ञानिक परंपरा है। चंद्रमा के जिस हिस्से पर हमारा चंद्रयान उतरा है, भारत ने उस स्थान के भी नामकरण का फैसला लिया है। जिस स्थान पर चंद्रयान-3 का मून लैंडर उतरा है, अब उस पॉइंट को, ‘शिवशक्ति’ के नाम से जाना जाएगा। शिव में मानवता के कल्याण का संकल्प समाहित है और ‘शक्ति’ से हमें उन संकल्पों को पूरा करने का सामर्थ्य मिलता है। चंद्रमा का ‘शिवशक्ति’ प्वाइंट, हिमालय के कन्याकुमारी से जुड़े होने का बोध कराता है। हमारे ऋषियों ने कहा है- येन कर्माण्यपसो मनीषिणो यज्ञे कृण्वन्ति विदथेषु धीराः। यदपूर्व यक्षमन्तः प्रजानां तन्मे मनः शिव-संकल्प-मस्तु। अर्थात्, जिस मन से हम कर्तव्य-कर्म करते हैं, विचार और विज्ञान को गति देते हैं, और जो सबके भीतर मौजूद है, वो मन शुभ और कल्याणकारी संकल्पों से जुड़े। मन के इन शुभ संकल्पों को पूरा करने के लिए शक्ति का आशीर्वाद अनिवार्य है।  और ये शक्ति हमारी नारीशक्ति है। हमारी माताएं बहनें हैं। हमारे यहाँ कहा गया है- सृष्टि स्थिति विनाशानां शक्तिभूते सनातनि। अर्थात्, निर्माण से प्रलय तक, पूरी सृष्टि का आधार नारीशक्ति ही है। आप सबने देखा है, चंद्रयान-3 में देश ने हमारी महिला वैज्ञानिकों ने, देश की नारीशक्ति ने कितनी बड़ी भूमिका निभाई है। चंद्रमा का ‘शिवशक्ति’ प्वाइंट, सदियों तक भारत के इस वैज्ञानिक और दार्शनिक चिंतन का साक्षी बनेगा। ये शिवशक्ति प्वाइंट, आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देगा कि हमें विज्ञान का उपयोग, मानवता के कल्याण के लिए ही करना है। मानवता का कल्याण यही हमारा सुप्रीम कमिटमेंट है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि एक और नामकरण काफी समय से लंबित है। चार साल पहले जब चंद्रयान-2 चंद्रमा के पास तक पहुंचा था, जहां उसके पदचिन्ह पड़े थे, तब ये प्रस्ताव था कि उस स्थान का नाम तय किया जाए। लेकिन उन परिस्थितियां में निर्णय लेने के स्थान पर, हमने प्रण लिया था कि जब चंद्रयान-3, सफलता पूर्वक चांद पर पहुंचेगा, तब हम दोनों प्वाइंट्स का नाम एक साथ रखेंगे। और आज मुझे लगता है कि, जब हर घर तिरंगा है, जब हर मन तिरंगा है, और चांद पर भी तिरंगा है, तो ‘तिरंगा’ के सिवाय, चंद्रयान 2 से जुड़े उस स्थान को और क्या नाम दिया जा सकता है? इसलिए, चंद्रमा के जिस स्थान पर चंद्रयान 2 ने अपने पदचिन्ह छोड़े हैं, वो प्वाइंट अब ‘तिरंगा’ कहलाएगा। ये तिरंगा प्वाइंट, भारत के हर प्रयास की प्रेरणा बनेगा। ये तिरंगा प्वाइंट, हमें सीख देगा कि कोई भी विफलता आखिरी नहीं होती, अगर दृढ़ इच्छाशक्ति हो तो सफलता मिलकर के ही रहती है। यानि, मैं फिर दोहरा रहा हूं। चंद्रयान 2 के पदचिन्ह जहां हैं, वो स्थान आज से तिरंगा प्वाइंट कहलाएगा। और जहां पर चंद्रयान 3 का मून लैंडर पहुंचा है, वो स्थान, आज से शिव-शक्ति प्वाइंट कहलाएगा। पीएम ने कहा, मैं चाहूंगा कि इसरो, केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालय और राज्य सरकारों के साथ मिलकर ‘गवर्नेंस में स्पेस टेक्नोलॉजी’ पर एक नेशनल हैकाथॉन का आयोजन करें। इस हैकॉथ़ॉन में ज्यादा से ज्यादा युवा, ज्यादा से ज्यादा युवा शक्ति, ज्यादा से ज्यादा नौजवान, वो शामिल हों, जुड़ें। मुझे विश्वास है, ये नेशनल हैकॉथॉन, हमारी गवर्नेंस को और प्रभावी बनाएगा, देशवासियों को मॉर्डन सॉल्यूशंस देगा। आपके अलावा मैं अपनी युवा पीढ़ी को एक और Task अलग से देना चाहता हूं। और होमवर्क दिए बिना बच्चों को काम करने का मजा नहीं आता है। आप सब जानते हैं कि भारत वो देश है, जिसने हजारों वर्ष पूर्व ही धरती के बाहर अनंत अन्तरिक्ष में देखना शुरू कर दिया था। हमारे यहाँ सदियों पहले अनुसंधान परंपरा के आर्यभट्ट, ब्रह्मगुप्त, वराहमिहिर और भाष्कराचार्य जैसे ऋषि मनीषी हुए थे। जब धरती के आकार को लेकर भ्रम था, तब आर्यभट्ट ने अपने महान ग्रंथ आर्यभटीय में धरती के गोलकार होने के बारे में विस्तार से लिखा था। उन्होंने axis पर पृथ्वी के rotation और उसकी परिधि की गणना भी लिख दी थी। इसी तरह, सूर्य सिद्धान्त जैसे ग्रन्थों में भी कहा गया है- सर्वत्रैव महीगोले, स्वस्थानम् उपरि स्थितम्। मन्यन्ते खे यतो गोलस्, तस्य क्व ऊर्ध्वम क्व वाधः॥ अर्थात्, पृथ्वी पर कुछ लोग अपनी जगह को सबसे ऊपर मानते हैं। लेकिन, ये गोलाकार पृथ्वी तो आकाश में स्थित है, उसमें ऊपर और नीचे क्या हो सकता है?  ये उस समय लिखा गया था। ये मैंने सिर्फ एक श्लोक बताया है। ऐसी अनगिनत रचनाएं हमारे पूर्वजों ने लिखी हुई हैं। सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी के एक दूसरे के बीच में आने से ग्रहण की जानकारी हमारे कितने ही ग्रन्थों में लिखीं हुई पाई जाती हैं। पृथ्वी के अलावा अन्य ग्रहों के आकार की गणनाएं, उनके मूवमेंट से जुड़ी जानकारी भी हमारे प्राचीन ग्रन्थों में मिलती है। हमने ग्रहों और उपग्रहों की गति को लेकर इतनी सूक्ष्म गणनाएँ करने की वो काबिलियत हासिल की थी, कि हमारे यहाँ सैकड़ों वर्ष आगे के पंचांग, यानी कैलेंडर्स बनाए जाते थे। इसलिए मैं इससे जुड़ा एक Task अपनी नई पीढ़ी को देना चाहता हूं, स्कूल-कॉलेज के बच्चों को देना चाहते हूं। मैं चाहता हूं कि भारत के शास्त्रों में जो खगोलीय सूत्र हैं, उन्हें साइंटिफिकली प्रूव करने के लिए, नए सिरे से उनके अध्ययन के लिए नई पीढ़ी आगे आए। ये हमारी विरासत के लिए भी जरूरी है और विज्ञान के लिए भी जरूरी है। आज जो स्कूल के, कॉलेज के, यूनिवर्सिटीज के Students हैं, रिसर्चर्स हैं, उन पर एक तरह से ये दोहरा दायित्व है। भारत के पास विज्ञान के ज्ञान का जो खजाना है, वो गुलामी के लंबे कालखंड में दब गया है, छिप गया है। आजादी के इस अमृतकाल में हमें इस खजाने को भी खंगालना है, उस पर रिसर्च करनी है और दुनिया को भी बताना है। दूसरा दायित्व ये कि हमारी युवा पीढ़ी को आज के आधुनिक विज्ञान, आधुनिक टेक्नोलॉजी को नए आयाम देने हैं, समंदर की गहराईयों से लेकर आसमान की ऊंचाई तक, आसमान  की ऊंचाई से लेकर अंतरिक्ष की गहराई तक आपके लिए करने के लिए बहुत कुछ है। आप Deep Earth को भी देखिए और साथ ही  Deep Sea को भी  explore करिए। आप Next Generation Computer बनाइये और साथ ही Genetic Engineering में भी अपना सिक्का जमाइये। भारत में आपके लिए नई संभावनाओं के द्वार लगातार खुल रहे हैं। 21वीं सदी के इस कालखंड में जो देश साइंस और टेक्नोलॉजी में बढ़त बना ले जाएगा, वो देश सबसे आगे बढ़ जाएगा।

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