बहरो को सुनाना हैं तो आवाज तेज करनी होगी…. शहीदे आजम भगत सिंह के ये बोल आज भी जिंदा क़ौमों के कानों में गूँजते हैं। देश की आजादी के इस परवाने ने कोर्ट के सामने कहा था कि “जब हमने बम फेका था तब हमारा इरादा किसी को जान से मारने का नहीं था। हमने ब्रिटिश सरकार पर बम फेका था। ब्रिटिश सरकार को भारत छोड़ना होगा और उसे स्वतंत्र करना होगा। “ शहीद भगत सिंह का लक्ष्य स्पष्ट था, देश कि आजादी और इसी लक्ष्य को हासिल करने के लिए उन्होने अपने जीवन की आज के ही दिन 23 मार्च 1931 को आहुती दे दी थी।
अंग्रेजों ने इस दिन सिर्फ भगत सिंह ही नहीं, राजगुरु और सुखदेव को भी फांसी दी थी। ऐसा माना जाता है कि तीनों की फांसी की तारीख 24 मार्च थी, लेकिन उस समय समूचे देश में उनकी रिहाई के लिए प्रदर्शन हो रहे थे। इस कारण ब्रिटिश सरकार को डर था कि कहीं फैसला बदल ना जाये। जिससे उन लोगों ने 23 व 24 की मध्यरात्रि में ही तीनों को फांसी दे दी और अंतिम संस्कार भी कर दिया।
भगत सिंह देश से प्यार करते थे। उन्होने अपनी जवानी और जीवन देश के नाम कर दिया था इसीलिए वो शादी नहीं करना चाहते थे। ऐसे में उनके माता-पिता ने उनकी शादी करने की कोशिश की, तो वह अपना घर छोड़कर कानपुर चले गए थे। उन्होंने यह कहते हुए घर छोड़ दिया था कि “अगर मेरा विवाह गुलाम भारत में हुआ, तो मेरी वधु केवल मृत्यु होगी”।
उनको देश से तब प्यार हुआ जब वे लाहौर के नेशनल कॉलेज से बीए कर रहे थे। इसी समय उनकी मुलाकात सुखदेव थापर, भगवती चरन और भी कुछ लोगों से हुई। इसके बाद आजादी की लड़ाई के लिए उन्होने कॉलेज की पढाई छोड़ दी। फिर नौजवान भारत सभा ज्वाइन की। जब उनके घर वालों ने उन्हें विश्वास दिला दिया, कि वे अब उनकी शादी का नहीं सोचेंगे, तब भगत सिंह अपने घर लाहौर लौट गए। वहां उन्होंने कीर्ति किसान पार्टी के लोगों से मेल जोल बढ़ाया।
1926 में नौजवान भारत सभा में भगत सिंह को सेक्रेटरी बना दिया गया। 1928 में उन्होंने हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन ज्वाइन कर ली। जिसको चन्द्रशेखर आजाद ने बनाया था। पूरी पार्टी ने साथ में मिलकर 30 अक्टूबर 1928 को भारत में आये सइमन कमीशन का विरोध किया। जिसमें लाला लाजपत राय लाठी चार्ज में बुरी तरह घायल हुए और फिर उनकी म्रत्यु हो गई। भगत सिंह ने लाला जी की मौत के लिए ज़िम्मेदार ऑफीसर स्कॉट को मारने का प्लान बनाया लेकिन भूल से उन्होंने असिस्टेंट पुलिस सांडर्स को मार डाला। इसके बाद वो लाहौर से भेष बदलकर निकल गए। ब्रिटिश सरकार ने उनको ढूढ़ने के लिए चारों तरह जाल बिछा दिया।
बाद में चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राजदेव व सुखदेव ने मिलकर कुछ बड़ा धमाका करने का विचार किया। भगत सिंह कहते थे अंग्रेज बहरे हो गए, उन्हें ऊँचा सुनाई देता है, जिसके लिए बड़ा धमाका जरुरी है। इस बार उन्होंने फैसला किया कि वे लोग कमजोर की तरह भागेंगे नहीं बल्कि अपने आपको पुलिस के हवाले करेंगे। जिससे देशवासियों को सही सन्देश पहुंचे। दिसम्बर 1929 को भगत सिंह ने अपने साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर ब्रिटिश सरकार की असेंबली हॉल में बम ब्लास्ट किया। जो सिर्फ आवाज करने वाला था। इसको खाली स्थान पर फेंका गया था। उन्होंने इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाते हुए यहाँ पर पर्चे बाटें फिर गिरफ्तारी दे दी। लेकिन अंग्रेज़ सरकार ने भगत सिंह, शिवराम राजगुरु व सुखदेव पर मुकदमा चलाया। उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई। कोर्ट में भी तीनों इंकलाब जिंदाबाद का नारा लगाते रहे. भगत सिंह ने जेल में रहकर भी बहुत यातनाएं सहन की लेकिन कभी भी झुके नहीं। पूरा देश आज शहीदी दिवस पर वीरों को नमन करता है।