Monday, September 16, 2024
Homeविशेषविशेष : बाल विवाह से आज भी अभिशप्त देश

विशेष : बाल विवाह से आज भी अभिशप्त देश

अरविंद जयतिलक

यह बेहद चिंताजनक है कि आजादी के साढ़े सात दशक गुजर जाने के बाद भी आज देश बाल विवाह जैसी सामाजिक बुराई से अभिशप्त है। नेशनल फैमिली हैल्थ सर्वे-2016 से खुलासा हुआ है कि तमाम जागरुकता भरे कार्यक्रम और कड़े कानूनी प्रावधानों के बावजूद भी देश में बाल विवाह जारी है। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की ही बात करें तो 30 फीसद लड़कों का विवाह 21 साल से पहले हो जाता है। सर्वे के मुताबिक प्रदेश में सिर्फ 27.5 फीसद लड़के और 24.6 फीसद लड़कियां यौन एवं प्रजनन संबंधी जानकारी रखते हैं। याद होगा गत वर्ष राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग और गैर सरकारी संगठन यंग लाइव्स की रिपोर्ट से भी खुलासा हुआ था कि गांव के साथ महानगर भी बाल विवाह जैसी सामाजिक बुराई की चपेट में हैं। इस रिपोर्ट में रेखांकित किया गया था कि उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और जम्मू-कश्मीर में बड़े पैमाने पर बाल विवाह हो रहे हैं। देश की राजधानी दिल्ली भी इस कुरीति से बची नहीं है। रिपोर्ट के मुताबिक 2001 से लेकर 2011 की अवधि में देश में एक करोड़ बीस लाख बच्चे (21 फीसद) बाल विवाह के शिकार हुए। यह स्थिति तब है जब देश में बाल विवाह निरोधक कानून मौजूद हैं और सरकार एवं स्वयंसेवी संगठनों द्वारा बाल विवाह के विरुद्ध जागरुकता कार्यक्रम चलाया जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक भारत बाल विवाह के मामले में दूसरे स्थान पर है। भारत में दुनिया के 40 फीसद बाल विवाह होते हैं। 49 फीसद लड़कियों का विवाह 18 वर्ष से कम आयु में हो जाता है। यूनिसेफ के अनुसार राजस्थान में 82 प्रतिशत विवाह 18 साल से पहले ही हो जाते हैं। जबकि भारतीय संविधान में विभिन्न कानूनों एवं अधिनियमों के माध्यम से बाल विवाह रोकने के प्रावधान हैं। इतिहास में जाएं तो वर्ष 1929 में बाल विवाह रोकने का अधिनियम पारित किया गया। यद्यपि इससे पूर्व भी छोटे-छोटे बच्चों के विवाह पर रोक लगाने के लिए 1860 तथा 1891 में अधिनियम पारित कर विवाह की आयु लड़कियों के लिए 10 तथा 12 वर्ष कर दी गयी थी लेकिन 1929 में हरविलास शारदा के प्रयत्नों से बाल विवाह निरोधक अधिनियम पारित हुआ जिसे शारदा एक्ट के नाम से भी जाना जाता है। इस अधिनियम में प्रावधान किया गया कि विवाह के समय लड़के की आयु 18 वर्ष तथा लड़की की आयु 15 वर्ष होनी चाहिए। इससे कम आयु के विवाह को बाल विवाह माना जाएगा। इस कानून के उल्लंघन पर 15 दिन का कारावास तथा एक हजार रुपया जुर्माना सुनिश्चित किया गया। लेकिन यह अधिनियम बाल विवाह रोकने में सफल नहीं हुआ। सदियों से भारतीय समाज में बाल विवाह की प्रथा दृढ़ता से स्थापित हो चुकी थी अतः लोग कानून का उलंघन करके प्रथा का पालन करना अपना अधिकार समझते थे। इसके अलावा कानून में भी कई खामियां थी जिससे कानून का कड़ाई से पालन नहीं हो सका। उदाहरण के लिए एक बार विवाह हो जाने पर उसे रद्द घोषित नहीं किया जा सकता था। अतः लोग सोचते विवाह तो हो गया दंड भी भुगत लेंगे। हिंदू विवाह अधिनियम 1955 में भी लड़के व लड़की के विवाह की आयु 18 वर्ष और 15 वर्ष ही रखी गयी। मई, 1976 में इस अधिनियम में संशोधन कर विवाह की आयु 21 वर्ष और 18 वर्ष कर दी गयी। एक दूसरा कानून जो अस्तित्व में है वह बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 है। इस अधिनियम में बाल विवाह निरोधक अधिनियम में व्याप्त खामियों को दूर कर सुनिश्चित किया गया है कि एक ऐसी लड़की का विवाह जो 18 साल से कम की है और लड़के का विवाह जो 21 साल से कम का है बाल विवाह कहलाएगा। इस अधिनियम में बाल विवाह के आरोपियों को दो साल तक का कठोर कारावास या एक लाख रुपए तक का जुर्माना अथवा दोनों का प्रावधान है। बाल विवाह कराने वाले माता-पिता, रिश्तेदार, विवाह कराने वाला पंडित और काजी को भी तीन महीने तक की कैद और जुर्माना भुगतना पड़ सकता है। इस कानून के तहत किसी महिला को कारावास की सजा नहीं दी जा सकती। माता पालक को भी इस अपराध के लिए कैद नहीं किया जा सकता। हां, उन्हें जुर्माना जरुर भरना होगा। इस कानून के अंतर्गत यह भी प्रावधान किया गया है कि बच्चे अपनी इच्छा से वयस्क होने के दो साल के अंदर अपने बाल विवाह को अवैध घोषित कर सकते हैं। चिंता की बात यह भी है कि बाल विवाह के कारण महिलाओं के स्वास्थ पर खतरनाक प्रतिकूल असर पड़ रहा है। कम उम्र में गर्भाधान के मामलों में लगातार वृद्धि हो रही है। समय से पहले प्रसव की घटनाओं में इजाफा हो रहा है। मातृ मृत्यु दर में वृद्धि हो रही है। गर्भपात और मृत प्रसव की दर भी बढ़ रही है। मेटरनल मोर्टलिटी रेशिओ (एमएमआर) और इंटरनेशनल प्रेग्नेंसी एडवाइजरी सर्विसेज की रिपोर्ट की मानें तो भारत में असुरक्षित गर्भपात से हर दो घंटे में एक स्त्री की जान जाती है। गत वर्ष पहले सरकारी संस्था नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (एनएसएसओ) की एक रिपोर्ट से उद्घाटित हुआ था कि शहरों में 20 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों में हर सातवें गर्भधारण का अंत गर्भपात के रुप में होता है। 20 साल से कम उम्र की शहरी युवतियों में गर्भपात का रुझान राष्ट्रीय औसत के मुकाबले काफी अधिक है। इस रिपोर्ट के मुताबिक देश भर में ग्रामीण क्षेत्रों में गर्भपात का फीसद 2 तथा शहरी क्षेत्रों में 3 है। 20 साल से कम उम्र की शहरी युवतियों में गर्भपात 14 फीसद तक है जबकि गांवों में 20 साल से कम आयुवर्ग में गर्भपात का प्रतिशत मात्र 0.7 है। अगर दूसरे आयु वर्ग की महिलाओं पर नजर दौड़ाएं तो गर्भपात का फीसद इतना अधिक नहीं है। मसलन 30 से 34 वर्ष उम्र की शहरी महिलाओं में गर्भपात का फीसद 4.6 है जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह 2.9 है। इसी तरह 35 से 39 वर्ष उम्र की शहरी महिलाओं में गर्भपात का फीसद 2.0 जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह 5.4 है। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि शहरों में तो कम लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी असुरक्षित गर्भपात कराए जा रहे हैं जिसकी कीमत युवतियों को जान देकर चुकानी पड़ रही है। बाल विवाह के कारण शिशु मृत्यु दर और अस्वस्थता दर में भी वृद्धि हो रही है। इसके अलावा घरेलू हिंसा, लिंग आधारित हिंसा, बच्चों के अवैध व्यापार, लड़कियों की बिक्री में वृद्धि, बच्चों द्वारा पढ़ाई छोड़ने की आंकड़ों में वृद्धि, बाल मजदूरी और कामकाजी बच्चों का शोषण तथा लड़कियों पर समय से पहले जिम्मदारी संभालने का दबाव भी बढ़ रहा है। चिकित्सकों की मानें तो बाल विवाह की वजह से शिशु को जन्म देते वक्त दुनिया भर में होने वाली कुल मौतों में 17 फीसद मौतें अकेले भारत में होती है। कम उम्र में विवाह से प्रसव के दौरान इन महिलाओं में 30 फीसद रक्तस्राव, 19 फीसद एनीमिया, 16 फीसद संक्रमण, और 10 फीसद अन्य जटिल रोगों की संभावना बढ़ जाती है। यहीं नहीं वे गंभीर बीमारियों की चपेट में भी आ जाती हैं। सेव द चिल्ड्रेन संस्था की मानें तो भारत मां बनने के लिहाज से दुनिया के सबसे खराब देशों में शुमार है। संयुक्त राष्ट्र की विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट पर गौर करें तो भारत में प्रत्येक वर्ष गर्भधारण संबंधी जटिलताओं के कारण और प्रसव के दौरान तकरीबन 5 लाख से अधिक महिलाएं दम तोड़ती हैं जिसका एक प्रमुख वजह बाल विवाह है। विडंबना यह है कि कड़े कानूनी प्रावधानों और जागरुकता कार्यक्रम के बावजूद भी पिछले दो दशकों से बाल विवाह की गिरने की दर हर वर्ष एक प्रतिशत है जो कि बहुत ही कम है। इस तरह तो बाल विवाह खत्म होने में 50 वर्ष से अधिक का समय लगेगा। उचित होगा कि सरकार बाल विवाह निरोधक कानूनी प्रावधानों का सख्ती से पालन कराए और बाल विवाह से पड़ने वाले दुष्प्रभावों से भी लोगों को अवगत कराए।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments