भारत की गिनती अभी तक दुनियाँ के सबसे जवान देशों में होती है। यानि विश्व की सबसे युवा आबादी हमारे देश की है लेकिन आने वाले समय में ये तमगा हमसे छिन सकता है। ‘नैशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस-5) की रिपोर्ट के अनुसार न सिर्फ हमारी आबादी की दर कम हो रही है बल्कि आने वाले समय में बुजुर्गों की संख्या में 20 फीसदी तक बढ़ोतरी हो सकती है।
रिपोर्ट के मुताबिक देश का टोटल फर्टिलिटी रेट 2.2 के पिछले रेट से घटकर 2.0 हो गया है। गौरतलब है कि फर्टिलिटी रेट 2.1 रहे तो माना जाता है कि आबादी कमोबेश स्थिर रहती है। चूंकि देश में राष्ट्रीय प्रजनन दर 2.0 पर आ गई है, यानी बैलेंसिंग रेट से भी नीचे चला गया है तो कुछ हलकों में ऐसी चिंता भी जताई जाने लगी है कि देश की आबादी अब बढ़ने के बजाय कहीं घटने न लगी हो। गौरतलब है नैशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट और जनगणना के आंकड़ों में फर्क होता है। जनगणना में देश की पूरी आबादी शामिल रहती है जबकि एनएफएचएस के दायरे में रिप्रॉडक्टिव उम्र के लोग ही आते हैं। इसलिए एनएफएचएस की रिपोर्ट को उतना प्रामाणिक नहीं माना जाता, जितना सेंसस के आंकड़े माने जाते हैं। इसके बावजूद इन आंकड़ों की सचाई में संदेह नहीं किया जा सकता। वजह यह कि ये आंकड़े ऐसी कोई बात नहीं कह रहे, जो अप्रत्याशित हो। इससे पहले की तमाम रिपोर्टों में यह बात आती रही है कि देश में फर्टिलिटी रेट कम हो रहा है। इसलिए मोटे तौर पर कहा जा सकता है कि एनएफएचएस-5 के आंकड़े देश की वास्तविक स्थिति ही दिखा रहे हैं। फिर भी फर्टिलिटी रेट के 2.1 से जरा सा नीचे जाने का यह मतलब नहीं है कि देश की आबादी तत्काल प्रभाव से कम होने लगेगी। इसकी वजह यह कि भले लोग बच्चे कम पैदा करें, लेकिन रिप्रॉडक्टिव एज में लोग अभी ज्यादा हैं। इसलिए देश की जनसंख्या तुरंत कम नहीं होगी। हां, यह जरूर है कि अगर यह ट्रेंड जारी रहा तो कुछ वर्षों में पीक पर पहुंचने के बाद आबादी कम होने लगेगी। मगर यह कोई नई या अनोखी बात नहीं है। ऐसा होता है। दुनिया के अलग-अलग देशों में देखा गया है, आबादी पहले तेजी से बढ़ती है, उसके बाद इसकी रफ्तार कम होने लगती है और फिर धीरे-धीरे वह बिंदु आता है जहां से आबादी घटने लगती है। ऐसे में जब प्रजनन दर घटेगी तो देश के युवा जब वृद्धावस्था की ओर जाएंगे तो फिर देश में युवाओं की संख्या खुद ब खुद कम हो जाएगी। ऐसे में आने वाले समय में भारत भी बुजुर्ग देशों में शुमार हो जाएगी।