- -बदला नजर आयेगा विधानसभा का नजारा, हंसी-मजाक की जगह दिख सकती है तल्खी
आनन्द अग्निहोत्री
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने नयी टीम तैयार कर चुनावी वायदे पूरी करने की दिशा में सक्रियता दिखानी शुरू कर दी है। चुनाव में प्रचण्ड बहुमत हासिल करना निश्चित रूप से उनकी ऐतिहासिक कामयाबी है लेकिन इस बार विधानसभा में विपक्ष का सामना कर पाना उनके और उनकी सरकार के लिए इतना आसान नहीं होगा जितना पिछली विधानसभा में था। पिछली विधानसभा में तो कार्यवाहियों के दौरान वह विपक्षी खेमे तक पहुंच जाते थे, उनकी कुशल क्षेम पूछते थे और नेता प्रतिपक्ष सपा के राम गोविंद चौधरी से शायराना अंदाज में हंसी-मजाक भी कर लेते थे। लेकिन इस बार माहौल एकदम विपरीत दिखायी देगा। कारण यह कि इस कार्यकाल में मौजूदा मुख्यमंत्री को पूर्व मुख्यमंत्री का सामना करना होगा। सदन में हंसी-मजाक का स्थान तल्खी ले सकती है। राज्यपाल आनंदी बेन पटेल ने रमापति शास्त्री को प्रोटेम स्पीकर की शपथ दिला दी है। एक-दो दिन में विधानसभा में सभी विधायकों का शपथ ग्रहण समारोह होगा और सम्भवत: 30 मार्च तक विधानसभा अध्यक्ष का चुनाव भी हो जाये। इसके बाद जब भी सदन बैठेगा, नजारा देखने लायक होगा।
पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव सत्ता हासिल करने में जरूर नाकाम रहे लेकिन पिछली बार की तुलना में इस बार ज्यादा ताकतवर बनकर उभरे हैं। पिछली बार सपा के पास मात्र 47 विधायक थे। तब अखिलेश यादव लोकसभा के सदस्य थे। इस बार सपा के पास 111 विधायक हैं और गठबंधन दलों में शामिल विधायकों को भी जोड़ दें तो अखिलेश के साथ 125 विधायक हैं। भाजपा के 273 विधायकों के सामने यह संख्या बहुत बड़ी नहीं है लेकिन इतनी छोटी भी नहीं है कि सरकार की नीतियों का विरोध न किया जा सके। अखिलेश यादव और उनके पिता के करीबी साथी आजम खान ने लोकसभा से इस्तीफा देकर विधान सभा में अपनी भूमिका निभाने का फैसला किया है।
भाजपा विधायक दल ने तो अपना नेता चुन लिया। सपा विधायक दल को अपना नेता चुनना शेष है लेकिन तय है कि अखिलेश यादव ही नेता प्रतिपक्ष की भूमिका में होंगे। उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती यह होगी कि वे स्वयं को कैसे सक्षम नेता प्रतिपक्ष साबित करें। पूरे पांच साल उन्हें इसी भूमिका में रहना है और यही साबित करना है। वहीं मुख्यमंत्री योगी के सामने चुनौतियों का अम्बार है। उन्हें सरकार तो चलानी ही है, चुनावी वायदे पूरे करने के साथ जनहित के कार्य भी करने हैं। सबसे बड़ी चुनौती उनके लिए वर्ष 2024 में होने वाले आम चुनाव हैं। आम चुनाव में केन्द्र सरकार के साथ-साथ उनकी सरकार के कार्यों का मूल्यांकन भी मतदाता करेगा। जाहिर है कि योगी को चुनौती-दर-चुनौती का सामना करना है।
अब थोड़ा पीछे चलते हैं। चुनाव प्रचार के दौरान के परिदृश्य याद करें। योगी आदित्यनाथ और अखिलेश यादव ने एक-दूसरे पर जमकर प्रहार किये थे। पार्टियों की आलोचना तो चुनाव प्रचार के दौरान होती ही रहती है, इस बार तो दोनों ने एक दूसरे पर व्यक्तिगत प्रहार भी किये। काफी हद तक मान-मर्यादाओं को ठेस पहुंचायी। जाहिर है कि इन टिप्पणियों को न योगी भूल सकेंगे और न ही अखिलेश यादव। वर्ष 2027 तक जब भी विधानसभा बैठेगी योगी आदित्यनाथ और अखिलेश यादव आमने-सामने होंगे। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने धारदार भाषणों के लिए जाने जाते हैं, वहीं अखिलेश यादव भी कम नहीं हैं। सदन में अखिलेश यादव के पास नेता सदन की बातों का माकूल जवाब देने का पूरा मौका होगा। अखिलेश यादव पहली बार विधायक बने हैं और पहली बार ही वह नेता प्रतिपक्ष बनने जा रहे हैं। अपने मुख्यमंत्री के पिछले कार्यकाल में वह विधान परिसद के सदस्य थे। सदन की परंपरा है कि नेता सदन व नेता प्रतिपक्ष के बोलने की समय सीमा तय नहीं होती है और वह कभी भी अध्यक्ष की अनुमति से किसी मुद्दे को उठा सकते हैं। साफ है कि जिस तरह के कड़वाहट भरे रिश्ते दोनों के बीच हैं उससे लगता है कि अब सदन में तल्खी और बढ़ सकती है।