लेखक : मनीष शुक्ल
गरीब और गरीबी भारत की बहुसंख्यक आबादी है| भारत की सबसे विकट समस्या यही हैं| देश की आजादी से लेकर आज तक गरीबी हटाओ चिर स्थायी नारा रहा है| समय- समय पर केंद्र की सरकारों ने गरीब, बेरोजगारों के लिए योजनाएं शुरू की| पर 2 फरवरी 2006 को केंद्र की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम यानि नरेगा योजना शुरू कर गरीब मजदूरों के लिए उम्मीद की किरण जगाई| इसके साथ ही राजनीति के सबसे बड़े वोट बैंक को अपने पाले में खींच लिया| 2009 के लोकसभा चुनाव में इसी योजना ने यूपीए सरकार की सत्ता में वापसी करा दी| फिर कांग्रेस ने नरेगा को और भी बड़ा बनाते हुए 2 अक्टूबर 2009 को महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम में बदल दिया । तब किसी ने सोचा नहीं होगा कि यही योजना यूपीए के विरोधी गठबंधन एनडीए के लिए मास्टर स्ट्रोक बन जाएगी|
2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनी और मोदी ने मनरेगा के जरिये मजदूरों के लिए रोजगार के अलग- अलग क्षेत्रों में नए दरवाजे खोल दिए| लगातार तीसरी बार सत्ता में वापसी के लिए मोदी सरकार ने मनरेगा को और भी भव्य रूप दे दिया है| सरकार ने चुनाव से ठीक पहले श्रमिकों को मिलने वाली मज़दूरी दर में बदलाव किया है| बीते एक अप्रैल से शुरू हुए नए वित्तीय वर्ष में मनरेगा की मज़दूरी दर को कई राज्यों में 3.04% से 10.44% तक बढ़ा दिया गया है| पीएम मोदी योजना के जरिए 14.34 करोड़ श्रमिकों को लाभ मिलने की गारंटी दे रहे हैं| तो राजनीतिक के जानकार इसे मोदी का मास्टर स्ट्रोक करार दे रहे हैं|
देश में इस समय लोकसभा चुनाव 2024 का माहौल है| पहले चरण की वोटिंग अगले सप्ताह होने जा रही है लेकिन वहीं विपक्षी कांग्रेस और समाजवादी पार्टी से लेकर मोदी सरकार बढ़- चढ़कर मनरेगा जैसी सफल योजना के नाम वोट मांग रही है| खुद पीएम मोदी आगामी वर्षों में मनरेगा, पीएम आवास, उज्ज्वला योजना, किसान सम्मान निधि, मुफ्त राशन जैसी योजनाओं के जरिये गरीबी समाप्त करने की गारंटी दे रहे हैं| वो जनता को 2047 तक देश को विकसित भारत का सपना भी दिखा रहे हैं| भले ही आगामी चार जून को आने वाला लोकसभा का चुनाव परिणाम कुछ भी हो लेकिन बहुसंख्यक गरीब आबादी मोदी की गारंटी पर विश्वास जरूर जता रहा है|
अगर योजना का आंकल्न करें तो साफ हो जाता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसरों को बढ़ावा देने के साथ मनरेगा गरीब लोगों की आय में वृद्धि करता है। दलित और आदिवासी समुदायों को सामाजिक न्याय प्रदान करता है। महिलाओं को भी आर्थिक रूप से सशक्त बनाता है। दूसरी ओर मनरेगा में काम मांगने वाले लोगों की संख्या ग्रामीण क्षेत्रों में शारीरिक श्रम की मांग को दर्शाती है। अधिक माँग बढ़ती बेरोज़गारी या अल्प-रोज़गार का संकेत दे सकती है। क्योंकि योजना के तहत प्रत्येक वर्ष 100 दिन के ही रोजगार की गारंटी है| मनरेगा जॉब कार्ड में नाम जोड़ने के लिए आवेदक की आयु 18 वर्ष से अधिक होनी चाहिए। हालांकि प्रत्येक मनरेगा जॉब कार्ड में अधिकतम 5 सदस्यों के नाम जोड़ सकते है| जिससे परिवार का अधिकतम वयस्कों को रोजगार के अवसर देता है|
हालांकि मनरेगा में काम की माँग कई कारणों से प्रभावित भी होती है| मसलन मौसम पर आधारित कृषि, प्रशासनिक खामियाँ, वेतन में देरी समेत कई स्थानीय कारण योजना के क्रियान्वयन को प्रभावित करती हैं| आंकड़ों के अनुसार फरवरी 2021 में 3.3 मिलियन लोगों ने मानरेगा में काम की मांग की| जबकि मार्च 2023 में 2.6 मिलियन लोगों को काम की आवश्यकता थी। केंद्र सरकार मनरेगा के महत्व को समझती है इसीलिए मजदूरों को रोजगार की गारंटी दे रही है| इसी कारण लोक सभा चुनावों से पहले मोदी सरकार अकुशल हाथ से काम करने वाले मजदूरों को मिलने वाली राशि में बदलाव किया है| अब मजदूरी दर दस फीसदी तक बढ़ गई है| राज्य बारी देखें तो हरियाणा और सिक्किम के लिए सबसे ज्यादा मज़दूरी दर 374 रुपया तय की गयी है| गोवा में मज़दूरी दर 356 रुपया लागू की गई है| उत्तर प्रदेश में मनरेगा के तहत मिलने वाली मज़दूरी दर को तीन फीसद बढ़ाकर 237 रुपया किया गया है| हालांकि विपक्षी गठबंधन में शामिल समाजवादी पार्टी ने अपनी सरकार बनने पर प्रदेश में मनरेगा के तहत मिलने वाली मजदूरी को 450 रुपए करने की वायदा किया है|
दूसरी ओर केंद्र सरकार ने यूपी समेत बिहार के लिए मनरेगा की मज़दूरी दर 228 रुपये से बढ़ाकर 245 रुपये कर दी है| मध्य प्रदेश में 9.95 फीसद बढ़ोत्तरी के साथ 243 रुपया कर दिया गया है| इसी प्रकार कर्नाटक में 316 रुपये से बढ़कर 349 रुपया मजदूरी दर हो गई है| केंद्र सरकार ने प्रत्येक राज्य की मनरेगा दर में बढ़ोत्तरी की है| केंद्र सरकार ने मनरेगा के तहत हो रहे फर्जीवाड़े पर लगाम लगाने की भी पहल की है| केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने वर्ष 2022-23 में 5.48 करोड़ से अधिक फर्जी जॉब कार्ड हटाए जिससे वास्तविक मजदूरों को लाभ मिल सके| निश्चित रूप से मोदी सरकार ने कांग्रेस नित यूपीए सरकार की योजना को अपनाया बल्कि गरीब मजदूरों को कार्य के नए क्षेत्र खोलकर रोजगार के ज्यादा अवसर प्रदान किए| मनरेगा और मजदूर मोदी की इस गारंटी पर मुहर लगाते हैं या नहीं इसका नतीजा चार जून को सामने आ जाएगा|