Tuesday, December 3, 2024
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पाकिस्तान का चरित्र दर्शाती है नए पीएम शहबाज की बयानबाजी

भारत विरोध पर टिका पाक का वजूद

आनन्द अग्निहोत्री

पाकिस्तान में इमरान खान की सत्ता चली गयी। सेना से 36 का आंकड़ा होते ही तय हो गया था कि उनकी विदाई हो ही जायेगी। लेकिन यह बात थोड़ा हैरत पैदा कर रही थी कि सत्ता जाती देख इमरान को बार-बार भारत याद आ रहा था। कई मौकों पर उन्होंने भारत के कसीदे पढ़े। कई बार उनके मुख से निकला कि भारत स्वाभिमानी है। उसकी विदेश नीति पुख्ता है। अमेरिका के दबाव के बाद भी वह रूस से बराबर कच्चा तेल खरीद रहा है। और तो और, उन्होंने यहां तक कह दिया कि वह भारत से दुश्मनीं नहीं चाहते, इसके लिए उन्होंने प्रयास भी किये। सत्य क्या है, यह तो इमरान ही जानते होंगे।

सत्ता में आते समय उन्होंने भी कश्मीर राग अलापा था। इमरान ही नहीं, पाकिस्तान में अब तक जितने भी हुक्मरान आये, सभी के पास सिर्फ एक ही राग था और वह था कश्मीर। शहबाज शरीफ ने अभी पाकिस्तान की सत्ता नहीं संभाली है लेकिन इसके पहले ही उन्होंने कश्मीर राग अलापना शुरू कर दिया है। शायद यह पाकिस्तान की सिफत है कि सत्ता में वही आता है जो भारत के कश्मीर को पाकिस्तान में शामिल करने का राग अलाप सके। हकीकत में पाकिस्तान कभी भारत से कश्मीर नहीं छीन सकता, यह जरूर है कि वह कश्मीर को मुद्दा बनाकर भारत से दुश्मरी का रवैया जरूर कायम रख सकता है।

पाक के नए पीएम शहबाज शरीफ  भी पुरानी राह पर ही रहे हैं। जुल्फिकार अली भुट्टो से लेकर पाकिस्तान में अब तक जितने भी वजीरे आजम सत्ता में आये, चाहे वह जम्हूरियत के तरीके से आये हों या तख्ता पलट के जरिये सेना के रहे हों, सभी ने कश्मीर को मुख्य मुद्दा बनाया। सन 65 का युद्ध रहा हो, 71 का या कारगिल का, इरादा साफ था। वह यह कि किसी तरह भारत से कश्मीर छीनना है। यह दीगर बात है कि आजादी के तत्काल बाद उसने कश्मीर के जिस हिस्से पर कब्जा कर लिया था, उससे ज्यादा एक इंच जमीन नहीं ले पाया। इसके विपरीत वह पूर्वी पाकिस्तान गंवा बैठा जो अब स्वतंत्र बांग्लादेश के रूप में स्थापित है। और तो और, पाकिस्तान के कई प्रांतों से भी आजादी की मांग उठ रही है। उसके कई इलाके ऐसे हैं जहां कुछ कर पाने में सेना भी लाचार हो जाती है क्योंकि इन इलाकों में कबीले स्थापित हैं जो स्वतंत्र रूप से अपनी सत्ता चलाते हैं। लेकिन पाकिस्तानी आकाओं को इनके बजाय सिर्फ कश्मीर की फिक्र सताती है।

शहबाज शरीफ भी कश्मीर राग अलाप रहे हैं। यह पाकिस्तान की चाल और चरित्र को दर्शाता है। भारत में जहां आवाज उठ रही है कि पाक अधिकृत कश्मीर को मुक्त कराना है, वहीं पाकिस्तान फिर से कश्मीर की खाई में गिरने को बेताब है। शायद वहां शुरू से एक ही चीज पढ़ाई जाती है कि भारत दुश्मन नम्बर एक है और कश्मीर को पाकिस्तान में मिलाना मुख्य मकसद है। एक कहावत कही जाती है कि कुत्ते की पूंछ 12 बरस बांस की नली में रखी गयी लेकिन जब निकली तो टढ़ी ही निकली। कुछ ऐसी ही स्थिति पाकिस्तान की भी है। काश पाकिस्तान के नये प्रधानमंत्री इमरान खान के आखिरी शब्दों से ही कुछ सबक ले लेते। लेकिन सम्भवत: उन्होंने ठान लिया है कि हमें कश्मीर मुद्दा नहीं छोड़ना है। भारत से दुश्मनी नहीं समाप्त करनी है। पाकिस्तान के अस्तित्व में रहते वहां का कोई हुक्मरान ऐसा शायद ही कर सके क्योंकि उनके मुल्क की बुनियाद ही रक्त और रंजिश पर टिकी हुई है। ऐसे में देश के विकास और अमन से उनका क्या वास्ता। वैसे भी शहबाज शरीफ पूर्व पीएम नवाज शरीफ के भाई हैं। जाहिर है कि वे उन्हीं की नीतियों पर चलेंगे। हालांकि इमरान समर्थक अभी पैतरेबाजी कर रहे हैं कि वे सामूहिक रूप से इस्तीफा दे दें और शहबाज को पीएम बनने का अवसर न मिले। लेकिन ऐसा होना मुमकिन नजर नहीं आता क्योंकि सेना शहबाज के साथ है और पाकिस्तान में सेना जिसका साथ दे उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता।

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