Sunday, September 8, 2024
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पंजाब : बसपा- अकाली दल का गठजोड़ कर सकता है खेल

पंजाब की राजनीति में आने वाले दिनों में भरी उलटफेर हो सकता है| विधान सभा चुनाव के बाद आया आम आदमी पार्टी का तूफान जैसे- जैसे थम रहा है| विपक्ष खुद को मजबूत करने के रस्ते तलाश रहा है| राज्य में अपना जनाधार बनाने की कवायद में जुटी भाजपा दलों के नेताओं को पार्टी से जोड़ने में जुटी है तो बसपा ने अकाली दल के साथ गठजोड़ करके आगामी लोक सभा चुनाव 2024 से पहले नए समीकरण बनाने की कवायद की है|

उत्तर प्रदेश की चार बार मुख्यमंत्री रह चुकीं बहन मायावती और पंजाब के शिरोमणि अकाली दल के नेता सुखबीर सिंह बादल के बीच समझौते ने राजनीतिक हलकों में इन्हें फिर चर्चा में ला दिया है| दोनों दल अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव मिलकर लड़ेंगे| 32 फीसद दलित वोट वाले पंजाब की राजनीति में नया गठजोड़ सत्ता की राह बना सकता है|

मायावती पिछले दिनों प्रदेश में सत्तारूढ़ बीजेपी और विपक्षी दल समाजवादी पार्टी दोनों पर समाज को बांटने का आरोप लगा चुकी है. जाहिर है पिछले विधानसभा चुनाव में एक सीट पर सिमटी बसपा नेता की इस बात में उत्तर प्रदेश में दलित राजनीति की जमीन खिसकने का दर्द भी शामिल है. उनका आरोप है कि रामचरितमानस को लेकर उठे ताजा विवाद ने समाज को दो भागों में बांट दिया है. दलितों का एक बहुत बड़ा वर्ग जिसकी मायावती खुद को अपना नेता मानती हैं और जो सवर्ण जातियों का विरोधी रहा है, अपने को सपा से जुड़ा पा रहा है. खासकर रामचरितमानस पर समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य की विवादित टिप्पणी के बाद सपा की ओर झुक गया है. उसी तरह एक बड़ा वर्ग जो समाज को धार्मिक दृष्टि से देखता है और अयोध्या व रामचरितमानस की बात करता है, वह पहले से बीजेपी के साथ लामबंद है. सपा के माई MY यानी मुस्लिम यादव समीकरण को बीजेपी के मजबूत होने से मजबूती मिली है. जैसे-जैसे बीजेपी उत्तर प्रदेश में स्ट्रांग हुई. वैसे ही सौंपा का का वोट बैंक भी मायावती की तुलना में मजबूत होता गया| यही स्थिति पंजाब में शिरोमणि अकाली दल की भी है. बीजेपी और शिरोमणि अकाली दल की बात करें तो दोनों दल अपने-अपने राज्य में बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना चुके हैं. दोनों को इसकी कीमत भी चुकानी पड़ी है. कभी दल दोनों दलों की अपने-अपने वोट बैंक पर अच्छी खासी पकड़ थी. वर्तमान स्थिति यह है कि पिछले चुनाव में  बसपा को सिर्फ एक सीट मिली थी, वह भी अगड़ी जाति की. उत्तर प्रदेश में दलित कार्ड बिल्कुल नहीं चल पाया. उसी तरह से पिछले चुनाव में. वर्ष 2022 में हुए चुनाव में पंजाब में शिरोमणि अकाली दल. 15 सीटों से घटकर 3 सीटों पर आ गया. इस दल को जहां वर्ष 2017 में बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने पर. 25.2 फीसद वोट मिले थे. इस बार घटकर 18.3 फीसद पर आ गया है. वर्ष 2012 की बात करें तो उस समय शिरोमणि अकाली दल ने 56 सीटें जीत कर बीजेपी के साथ सरकार बनाई. उसके बाद के चुनाव में घटकर15 सीटों पर आ गई और पिछले साल हुए विधानसभा चुनावों में 3 सीटों पर|

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