Thursday, November 21, 2024
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कांग्रेस पास कर पाएगी प्रियंका की ‘अग्नि परीक्षा’ !

मनीष शुक्ल

वरिष्ठ पत्रकार

कांग्रेस महसचिव और उत्तर प्रदेश प्रभारी प्रियंका वाड्रा गांधी ने चुनावी मौसम में ‘लड़की है, लड़ सकती है’ नारा देकर राजनीति के मैदान में मास्टर स्ट्रोक चला है। उन्होने ऐलान किया कि यूपी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 40 फीसदी महिला उम्मीदवार उतारेगी। देखने- सुनने में प्रियंका का यह दांव शानदार नजर आ रहा है। राजनीतिक विश्लेषक प्रिंयका के इस कदम को एतिहासिक बताकर विरोधियों में बेचैनी पैदा करने वाला बता रहे हैं। प्रियंका ने कहा भी है कि वो जाति-धर्म से हटकर सक्षम महिलाओं को उम्मीदवार बनाएँगी लेकिन क्या यह वादा पूरा हो पाएगा या फिर प्रियंका के मास्टर स्ट्रोक पर कांग्रेस हिट विकेट हो जाएगी, ये गंभीर सवाल है।

फिलहाल तो प्रियंका वाड्रा गांधी ने अमेठी के प्रधान पति का किस्सा सुनाकर अपने ही ऐलान पर सवाल खड़े कर दिये हैं। साथ ही यह सवाल भी खड़ा कर दिया है कि क्या कांग्रेस प्रियंका के वादे को गम्भीरता से लेते हुए उत्तराखंड और पंजाब जैसे राज्यों में भी 40 फीसदी महिलाओं को टिकट देगी या फिर कांग्रेस कि अन्तरिम अध्यक्षा सोनिया गांधी और होने वाले संभावित अध्यक्ष राहुल गांधी कांग्रेस के अन्य दिग्गज और  वरिष्ठ नेताओं की तरह प्रियंका की मांग और ऐलान को अनसुना कर देंगे। इतिहास तो कम से कम यही कह रहा है। महिला आरक्षण कि कवायद पर नजर डालें तो सबसे पहले प्रियंका वाड्रा कि दादी और देश की पूर्व प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के समय में महिलाओं को राजनीतिक भागेदारी देने की कवायद शुरू हुई थी। 1975 में ‘टूवर्ड्स इक्वैलिटी’ नाम की एक रिपोर्ट में हर क्षेत्र में महिलाओं की स्थिति का विवरण दिया गया था और आरक्षण पर भी बात की गई थी। लेकिन धरातल पर इस रिपोर्ट का विरोध भी होने लगा था। अस्सी के दशक में प्रियंका वाड्रा के पिता जी और देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने पंचायत और स्थानीय निकाय चुनाव में महिलाओं को एक तिहाई आरक्षण दिलाने के लिए विधेयक पारित करने की कोशिश की थी लेकिन उनका वादा भी पूरा नहीं हो सका था। तब राज्य की विधानसभाओं ने इसका विरोध किया था। महिला आरक्षण विधेयक को एचडी देवेगौड़ा की सरकार ने पहली बार 12 सितंबर 1996 को पेश करने की कोशिश की थी। तब ये सरकार कांग्रेस के समर्थन से ही चल रही थी लेकिन बिल की बात आते ही विरोध शुरू हो गया था। इसके बाद जून 1997 में भी बिल का विरोध हुआ। साल 1998 में 12वीं लोकसभा में अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए की सरकार ने इस विधेयक को पेश करने की असफल कोशिश की। एनडीए सरकार इसके बाद 1999 और 2003 में महिला आरक्षण बिल लाई लेकिन वो कभी पारित नहीं हो पाया। देश में एकबार फिर कांग्रेस के नेतृत्व में गठबंधन की सरकार बनी और 2010 में ये विधेयक राज्यसभा में पारित भी गया लेकिन लेकिन लोकसभा में पारित न होने के कारण 15वीं लोकसभा भंग होने के साथ ही यह विधेयक भी ख़त्म हो गया। ऐसे में हर बार देश के सभी राजनीतिक दल महिलाओं को सत्ता में भागेदारी देने के दावे, वादे और प्रतिज्ञा तो करते रहे लेकिन धरातल पर आधी आबादी को उनका हक कभी नहीं मिल सका।

हालांकि पिछले एक दशक में चुनावी राजनीति में महिलाओं की स्थिति में खासा बदलाव आया है। खास उत्तर प्रदेश के चुनावी आंकड़ों में महिला भागेदारी पर नजर डालें तो 2007 के विधानसभा चुनाव मे महिला वोटर पुरुषों से पीछे थीं। चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक 2007 पुरुषों के 49.35 फीसदी वोट (30392935 वोट) और महिलाओं के 41.91 फीसदी वोट (21784164 वोट) पड़े थे। वहीं 2017 के विधानसभा चुनाव में पुरुषों के 59.14 फीसदी वोट (45570067 वोट) पड़े और महिलाओं के 63.30 फीसदी वोट (40906123 वोट) पड़े। यानी महिला वोटर पुरुषों से ज्यादा जागरूक और सक्षम दिखी।

इस बार प्रियंका वाड्रा गांधी ने इस गणित को समझा। 40 फीसदी महिलाओं को चुनाव में टिकट देने का वादा कर उत्तर प्रदेश के राजनीतिक दलों में खलबली पैदा कर दी है। लेकिन उसके साथ ही अमेठी के प्रधान पति की कहानी सुनाकर अपने ही फैसले को संदेह के दायरे में ला दिया है। गौरतलब है कि जब प्रियंका से पूछा गया कि कई बार देखने को मिलता है कि नेता अपने घर की महिलाओं को चुनाव लड़वा देते हैं और फिर निर्णय खुद लेते हैं। इस पर प्रियंका ने कहा कि यह कोई बड़ी बात नहीं है. महिलाएं सक्षम भी हो जाती हैं। ऐसे में बैकडोर से सुपर विधायक बनने वाले पतियों को कैसे रोका जाएगा यह सवाल है।

उधर हाल ही में सोनिया गांधी ने पार्टी की बैठक में साफ कर दिया था कि वो कांग्रेस कि स्थायी अध्यक्ष की तरह हर रोज कार्य कर रही हैं। ऐसे में नेताओं को मीडिया के जरिये अपनी बात नहीं कहनी चाहिए। इस बैठक में राहुल गांधी के स्थायी अध्यक्ष के तौर पर दोबारा पद संभालने के संकेत दिये गए हैं। लेकिन क्या राहुल और सोनिया गांधी का शीर्ष नेतृत्व प्रियंका के फैसले के साथ खड़ा होगा। क्या पार्टी समूचे देश में महिलाओं को चुनावी राजनीति में 40 फीसदी हिस्सेदारी देने की पहल कर पाएगी। अगर कांग्रेस इस अग्नि प्ररीक्षा को पास कर सकी तो यह देश के लिए नई सुबह होगी।

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